हरियाणा में धूम्रपान से धुआं-धुआं जिंदगी!

Story by  सलमान अब्दुल समद | Published by  [email protected] | Date 24-07-2021
धुआं-धुआं जिंदगी
धुआं-धुआं जिंदगी

 

नई दिल्ली / सलमान अब्दुस समद

हरियाणा उन राज्यों में से एक है, जहां अन्य राज्यों की तुलना में धूम्रपान की दर अधिक है. खासतौर पर यहां बीड़ी पीने वालों की संख्या ज्यादा है. एक अनुमान के मुताबिक यहां की 25 फीसदी आबादी तंबाकू का सेवन करती है.

लगभग 18-20 प्रतिशत लोग बीड़ी पीते हैं, 4 प्रतिशत सिगरेट पीते हैं और लगभग 7 प्रतिशत हुक्का पीते हैं. हर साल हजारों लोग तंबाकू के सेवन से मर जाते हैं और सैकड़ों बच्चे हर दिन बीड़ी पीना सीख रहे हैं. जबकि भारत सरकार ने 2003 में बीड़ी नियंत्रण अधिनियम बनाया था. 2004 में पहली बार इसे प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन सच्चाई यह है कि इसका समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसलिए यह कहा जा सकता है कि सामाजिक कुरीतियों पर नियंत्रण पाने के लिए समाज को जागरूक होना होगा.

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कैसे जमाएं हुक्के की महफिल

हम नें जब साठ वर्षीय हाजी इब्राहिम से धूम्रपान के मुद्दे पर बात-चीत की, तो उन्होंने कहा, “मैंने बीड़ी पीनी कब शुरू की, मुझे याद नहीं, मगर बीड़ी के बगैर अब गुजारा नहीं, उसके बगैर न नींद आती हे और न ही थकान जाती है.“

जब उनसे पूछा गया कि लोग कहते हैं कि बीड़ी के तुलना हुक्के से कम शारीरिक क्षति होती है. इस प्रशन का उत्तर उन्होंने कुछ यूँ दिया, “समय बदल गया है, पहले लोगों के पास अधिक समय था, एक दूसरे के पास बैठते थे, मगर अब सब व्यस्त हैं या फिर लोगों के बीच मुहब्बत कम हो गई हे, इसी कारण हुक्के के रिवाज में कमी आई है. एक समय था कि हुक्का सुलगा कर कई लोग साथ बैठते थे और एक दूसरे के दुख-दर्द को जानते थे, मगर अब किसी से पास समय नहीं है. मान लें अगर हम हुक्का ले कर बैठ जाएं, एक तो लोग ही नहीं आएँगे (हुक्का वास्तव में अकेले पीने की चीज नहीं), अगर आ भी गये, तो डर है कि समय की कमी के कारण हम उनके साथ बहुत समय बिता नहीं पाएंगे, जब हम उन्हें ठीक ढंग से टाइम नहीं देंगे, तो वह नाराज हो जाएँगे, उनका नाराज होना उचित भी होगा. इसलिए धीरे-धीरे हुक्के का रिवाज खत्म होता गया और लोगों ने बीड़ी को अपनाना शुरू कर दिया.”

पलवल जिले में स्थित खटेला सराय के निवासी मास्टर त्रिलोक कहते हैं, “अगर गंभीरता से हरियाणा के समाज का विश्लेषण करें, तो ज्ञात होगा कि बीड़ी पीने वालों की तायदाद में कमी आ रही हे. पहले हुक्के का चलन था, बीच के कुछ वर्षों में हुक्के से दूरी देखी गई, मगर एक बार फिर लोग हुक्के की ओर बढ़ रहे हैं. विशेषकर नई पीढ़ी में हुक्के के प्रति एक प्रकार की रूचि देखी जा रही है. मैं यह नहीं कहता की हुक्के से कोई शारीरिक क्षति नहीं होती, मगर बीड़ी-सिगरेट से तुलना में कम है.”

नंगला अहसानपुर (पलवल) के निवासी और दो दशकों से बीड़ी पीने वाले खुर्शीद कहते हैं, “मुझे मालूम है कि तम्बाकू सेवन से बीमारयां पैदा होती हैं, लेकिन अब हमारी आदत हो गई है, छूटती ही नहीं. हरियाणा में कई कंपनी की बीड़ी मिलती है, मगर हम पताका 502 नंबर की बीड़ी पीते हैं. साथ ही यह बात भी बता दूँ कि 502 नंबर सुलगती अच्छी है, इसका कारण यह है कि इस में मजबूत तम्बाकू डाला जाता है, जिससे सुलगती भी अच्छी है और बहुत से लोग कहते है उस तंबाकू का नुकसान भी अधिक है.”

तंबाकू से आर्थिक और शारीरिक क्षति

वैज्ञानिकों और डाक्टरों का कहना है कि तंबाकू में ऐसे हजारों रसायन होते हैं, जो फेफड़ों के सेल के डीएनए को भी प्रभवित करते हैं, उससे धीरे-धीरे कैंसर की संभावना बढ़ जाती हैं. 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में तंबाकू और गुटखा से प्रभावित कैंसर के मरीजों की तादाद 3.7 है, जो कैंसर के कुल रोगीयों का 27 फीसद है. मुंह और फेफड़े के कैंसर का आम कारण तंबाकू का सेवन है. 70दृ80ः फेफड़े का कैंसर तंबाकू से होता है. कैंसर के अलावा धूम्रपान से आर्थिक नुकसान भी होता है, और धूम्रपान से प्रभावित होने वाले मरीजों के उपचार में सरकार का भी बहुत पैसा बर्बाद होता. इसी के साथ धूम्रपान करने वाले अपने धुंआ से उनको भी प्रभावित कर देते हैं, जो धूम्रपान नहीं करते है. यानि धूम्रपान करने वाले खुद अपने घर, समाज और देश सब केलिए हानिकारक है.

डॉलर वाली बीड़ी

केंद्रीय सकरार की तरह राज्य सरकार ने भी तंबाकू के सेवन पर नियंतरण पाने केलिए कानून बनाया. 20 जुलाई 2012 को राज्य में तम्बाकू पर पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन कभी इस कानून का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिला. हद तो उस वक्त हो गई, जब लॉक डॉन के समय कालाबाजारी से हरियाणा में एक बंडल बीड़ी 80-90 रुपए की बिकी, और लोगों की जबानों पर यह वाक्य मशहूर हो गया ‘डॉलर वाली बीड़ी’. क्यूंकि उस समय एक अमरीकी डॉलर लगभग 80-90 रुपए के बराबर था.

ऐसे कहाँ जागरूक होगा समाज

कई व्यक्तियों से जब यह सवाल किया गया कि धूम्रपान या नशे से होने वाले नुकसान के बारे आप लोगों को किसी ने कुछ नहीं बताया, सरकार और बहुत से संस्था धूम्रपान पर नियंतरण पाने के लिए काम कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि हमें कभी किसी ने कुछ नहीं बताया या समझाया. धूम्रपान को लेकर सरकार ने क्या कानून बनाए, कब बनाए, हम लोगों को मालून नहीं. वर्षों पहले जैसे हमें बीड़ी या तम्बाकू मिल जाते थे, वैसे आज भी मिल रहे हैं, अगर हमें तम्बाकू या बीड़ी-सिगरेट खरीदने में कभी कोई परेशानी आती, तो हमें लगता कि सरकार तम्बाकू रोकने का कोई कार्य कर रही है.

एक बात और यह है कि हम कभी-कभी सुनते हैं कि किसी स्कूल-कॉलेज में धूम्रपान के विरुद्ध कोई कार्यक्रम हुआ. मगर केवल कॉलजों और स्कूलों में इस प्रकार के कार्यक्रमों का क्या आवश्यकता हैं. धूम्रपान सामाजिक बुराई है, उसके रोक-थाम केलिए समाज के बीच आकर लोगों को जागरूक करना जरूरी है. बार-बार समाज के लोगों से मिल कर धूम्रपान मुक्त समाज कि बात की जाए तो संभव है कि लोग कुछ समझे. कॉलेज के समझे-समझाए लोगों को समझाने का क्या फायदा?