फिल्म समीक्षाः गतिहीन तूफान, उम्दा फरहान

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 20-07-2021
कड़ी बातः तूफान फरहान की सबसे अच्छी फिल्म नहीं है
कड़ी बातः तूफान फरहान की सबसे अच्छी फिल्म नहीं है

 

आवाज विशेष । सिनेमा

मंजीत ठाकुर

कई बार बहुत सामान्य-सी कहानी भी ठीक लग जाती है, क्योंकि उसको बनाया सलीके से जाता है. सलीके-से बनाई गई फिल्म में सिर्फ निर्देशन नहीं आता है. इसलिए शुरू में यह मानकर न चला जाए कि तूफान में निर्देशक की तारीफ की जा रही है.

खैर. तूफान में फरहान अख्तर के परफॉर्मेंस से पहले मृणाल ठाकुर की बात करनी जरूरी है. बिला शक, तूफान मृणाल ठाकुर की पहली फिल्म नहीं है, पर वह उम्दा काम कर गुजरी हैं. जितना भी स्क्रीन स्पेस उनको मिला है, उसमें वह मजबूती से मौजूद नजर आई हैं.

बहरहाल, तूफान पहले बीस-पचीस मिनट तक देखते हुए आपको लगेगा कि आप गली बॉय देख रहे हैं, वहां से यह फिल्म वाया लव जिहाद, सुल्तान की पटरी पर चलने लगती है.

कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो नया लगेगा. जैसे ही आप आधी फिल्म तक कुछ ज्यादा ही चहकती-खिलखिलाती हुई अनन्या (मृणाल ठाकुर) को देखते हैं, और अगर आपने सौ-पचास बॉलीवुडिया फिल्में देख रखी हैं, तब आपको लग जाएगा कि हीरोइन मरेगी.

मृणाल ठाकुर

निखरता प्रदर्शनः पांच-छह फिल्में पुरानी मृणाल ने कमाल का अभिनय किया है


सवाल यह है कि दूसरे मजहब (फरहान अख्तर, बॉक्सर अजीज अली बने हैं) में अनन्या की शादी की मुखालफत करने वाले उसके बॉक्सिंग कोच पिता नाना भाई (परेश रावल) ऑनर किलिंग करेंगे. नहीं. ऐसा नहीं होता, रावल बहुत अच्छे शख्स बने हैं, जो थोड़ी देर के लिए बिटिया से नाराज जरूर होता है, पर वह अपनी बेटी के उनकी मर्जी के खिलाफ शादी करने से दुखी और उसकी मौत से टूटे हुए पिता दिखते हैं. बेशक, रावल की अभिनय में रेंज है और अपनी नातिन के साथ एक रेस्तरां का दृश्य फिल्म के सबसे प्रभावशाली और जज्बाती दृश्यों में से एक है.

निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा अपनी पिछली फिल्म भाग मिल्खा भाग के अपने ही प्रदर्शन से कोसों दूर हैं. हालांकि, वह शायद पहली बार परदे पर भी सुभाष घई की तर्ज पर कैमियो में नमूदार हुए हैं. पर इतना भावहीन चेहरा इससे पहले मैंने सिर्फ नब्बे की दशक की शुरुआत में फिल्म आशिकी में अनु अग्रवाल का देखा था. 

तूफान में फरहान

दर्शनीयः तूफान में कहानी नहीं, फरहान का कायान्तरण देखने लायक है. 


निर्देशक ने कई अच्छे कलाकारों को फिल्म में जाया कर दिया. विजय राज का किरदार फिल्म में है ही क्यों, यह समझ में नहीं आया. और अगर विजय राज को फिल्म में लेना ही था तो उनके किरदार में गहराई दी जा सकती है. ऐसा ही, मोहन अगाशे भी हैं. उनकी प्रतिभा के साथ मेहरा ने न्याय नहीं किया है.

हां, फिल्म के हर फ्रेम में फरहान अख्तर दिखे हैं और क्या खूब दिखे हैं. यह बात और है कि मांसपेशियों का उन्होंने बखूबी प्रदर्शन किया है, पर संपादन में हल्की चूक यह हुई है कि जिन दिनों उन्हें दुबला दिखाया जाना है, उन दिनों भी वह फूले हुए गालों के साथ नजर आते हैं.

फिल्म के अंत में फरहान के दोस्त हुसैन दलाल के किरदार को भी फिल्म के क्लाइमेक्स में तार्किक परिणति नहीं दी गई है. 

तूफान के हर फ्रेम में फरहान हैं

तूफान के हर फ्रेम में फरहान हैं


कहानी के साथ गड़बड़झाला यह है कि अगर यह बॉक्सिंग पर बनी फिल्म है तो अंतरधार्मिक विवाह का लोचा क्यों. और अगर, अंतरधार्मिक विवाह पर फिल्म बनी है तो उसके समाधान में कॉन्फ्लिक्ट का रजॉल्यूशन इतने सतही अंदाज में क्यों. जाहिर है, दो नावों की सवारी में निर्देशक छपाक हो गए हैं.

इस फिल्म के साथ दिक्कत यह है कि इसमें एक खलनायक नहीं है. किस्सागोई का सामान्य उसूल है, जितना बड़ा खलनायक होगा, उसको पराजित करने वाले नायक का कद भी उतना ही बड़ा होगा. पर, थोड़ी देर के लिए विलेन बने दर्शन कुमार छाप तो छोड़ते हैं पर फिल्म के क्लाइमेक्स में उनकी भूमिका नहीं है.

फिर भी यह फिल्म मुख्यधारा की फिल्मों के मामले में विकल्पहीनता की वजह से चल निकली है. फिल्म अमेजन प्राइम पर देखी जा रही है इसकी एक वजह यह भी है कि जिन झोलों का जिक्र मैंने किया है उसके अलावा, यह फिल्म सलीके से बनाई गई है. सिनेमैटोग्राफी अच्छी है और एक सीन में अपनी ही परछाईं से लड़ते फरहान का मेटाफर दिमाग पर असर करता है.

फरहान ही फरहान

फरहान ने कायदे से मांसपेशियां चमकाई हैं 


फिल्म की गति तेज है, ढाई गाने हैं, जिसमें से एक रैप है, जिसको सुनकर गली बॉय की याद आती है. फरहान की मुक्केबाजी के प्रशिक्षण वाले सीक्वेंस का संपादन कमाल का है.

पर तूफान न तो फरहान की सबसे बढ़िया फिल्मों में से एक है, न ही राकेश ओम प्रकाश मेहरा की याद रखी जाने वाले शाहकार में से एक है. और हां, बॉक्सिंग पर कहानी के मामले में यह मुक्काबाज जैसी अन्य फिल्मों से भी उन्नीस ही है.

ऐसे में इसके देख लेगें तो ज्यादा फायदा नहीं है पर नहीं देखेंगे तो कुछ नुक्सान भी नहीं.