बॉलीवुड के 'जेलर साहब' को सलाम: गोवर्धन असरानी - एक कालजयी हास्य कलाकार

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 21-10-2025
Salute to Bollywood's 'Jailer Saheb': Govardhan Asrani - a timeless comedian
Salute to Bollywood's 'Jailer Saheb': Govardhan Asrani - a timeless comedian

 

 आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली 

 सिनेमा जगत को अपनी हास्य कला से गुदगुदाने वाले और भारतीय फिल्मों में 'जेलर' के किरदार को अमर कर देने वाले अनुभवी अभिनेता, गोवर्धन असरानी अब हमारे बीच नहीं रहे. 84 वर्ष की आयु में उनका निधन मनोरंजन जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. हाल ही में, जब वह 'द कपिल शर्मा शो' में शक्ति कपूर सहित अपने साथी कलाकारों के साथ आए थे, तो उनकी हाज़िरजवाबी और कहानियों ने दर्शकों को खूब हंसाया था और यह कल्पना करना भी कठिन था कि कुछ ही दिनों बाद वह हमारे बीच नहीं रहेंगे. इस दौरान उन्होंने फिल्मों में अपने आने के शुरुआती संघर्ष से लेकर ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' में जेलर बनने तक के अपने सफर पर विस्तार से बात की थी.

'शोले' के जेलर, जिसके लिए हुआ था जन्म

असरानी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, 'शोले' के निर्देशक रमेश सिप्पी ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया. सिप्पी कहते हैं, "अनुभवी अभिनेता असरानी को हमेशा 'शोले' में तानाशाह जेलर का किरदार निभाने के लिए याद किया जाएगा, क्योंकि यह एक ऐसी भूमिका थी जिसे निभाने के लिए ही उनका जन्म हुआ था." सिप्पी ने एक साक्षात्कार में कहा, "यह (निधन) अचानक लगता है.

उन्होंने बहुत काम किया, लेकिन यह (जेलर का रोल) सबसे अलग है. मैं उन्हें बहुत लंबे समय तक याद रखूंगा. यह एक ऐसी भूमिका है जिसे निभाने के लिए उनका जन्म हुआ था.लेकिन ऐसे दिन ये सब कहना अच्छा नहीं लगता. शायद यही उन्हें याद करने का सबसे अच्छा तरीका है."

निर्देशक के अनुसार, 'शोले' में असरानी का किरदार, जो इस अगस्त में 50 साल पूरे करने वाली है, विश्व प्रसिद्ध अभिनेता चार्ली चैपलिन की फिल्म 'द ग्रेट डिक्टेटर' से प्रेरित था. इस कालजयी फिल्म की पटकथा लेखक जोड़ी सलीम खान और जावेद अख्तर ने लिखी थी. सिप्पी ने याद किया कि उन्होंने असरानी के साथ पहली बार 'सीता और गीता' में काम किया था और उनके अभिनय से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्हें 'शोले' के लिए चुना गया.

सिप्पी ने याद किया, "फिर 'शोले' आई और इस हिस्से को सलीम-जावेद ने लिखा था और उन्होंने मेरे साथ इस पर चर्चा की. हम सभी ने सोचा कि असरानी इसके लिए सही व्यक्ति होंगे. हमने उन्हें बुलाया, उनसे चर्चा की. वह आकर यह भूमिका करने के लिए बहुत खुश थे। वह उस किरदार के निर्माण का हिस्सा थे."

संघर्ष से लेकर अभिनय की ऊँचाइयों तक

गोवर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी, 1941 को ब्रिटिश भारत के जयपुर रियासत में एक मध्यम वर्गीय सिंधी परिवार में हुआ था. भारत के विभाजन के बाद उनके पिता जयपुर आ गए और कालीन बेचने की दुकान खोली. हालांकि, असरानी का मन कारोबार में बिल्कुल नहीं लगता था और वह गणित में कमजोर थे.

उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा सेंट ज़ेवियर्स स्कूल से पूरी की और राजस्थान कॉलेज, जयपुर से ग्रेजुएशन किया. एक अभिनेता बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए, उन्होंने अपनी शिक्षा का खर्च उठाने के लिए ऑल इंडिया रेडियो, जयपुर में वॉयस आर्टिस्ट के तौर पर काम किया.

उनके अभिनय करियर की नींव 1960 से 1962 के बीच पड़ी, जब उन्होंने साहित्य कल्पभाई ठक्कर से अभिनय सीखा. 1962 में वह सपनों की नगरी बॉम्बे (अब मुंबई) पहुँचे, लेकिन 1963 में ऋषिकेश मुखर्जी की सलाह पर उन्होंने पेशेवर प्रशिक्षण लेने का फैसला किया. 1964 में, उन्होंने पुणे के प्रतिष्ठित फिल्म संस्थान (FTII) में दाखिला लिया. 1966 में कोर्स पूरा किया. 1967 में एक गुजराती फिल्म से उनके अभिनय करियर की शुरुआत हुई.

हिंदी फिल्मों में उनकी पहली उपस्थिति 'हरे काँच की चूड़ियाँ' में बिस्वजीत के दोस्त के रूप में थी, लेकिन 1971 से ही उन्हें मुख्य हास्य कलाकार या हीरो के करीबी दोस्त की भूमिकाएँ मिलने लगीं.
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70 के दशक का शिखर और राजेश खन्ना से दोस्ती

असरानी का करियर 1970 के दशक में अपने शिखर पर था. 1972 से 1979 के बीच उन्होंने 96 फिल्में कीं. ऋषिकेश मुखर्जी, गुलज़ार और आत्मा राम जैसे निर्देशकों ने उन्हें लगातार अपनी फिल्मों में कास्ट किया. 'आज की ताज़ा खबर', 'रोटी', 'चुपके चुपके', 'छोटी सी बात', 'राफ़ू चक्कर', 'शोले', 'पति पत्नी और वो' जैसी फिल्मों में उनकी हास्य भूमिकाएँ अविस्मरणीय रहीं.

उनकी मांग इतनी अधिक थी कि 1970-1979 तक उन्होंने 101 फिल्मों में प्रभावी भूमिकाएँ निभाईं. वह सुपरस्टार राजेश खन्ना के करीबी दोस्त थे. उन्होंने खन्ना के साथ 25 फिल्मों में काम किया, जिनमें 21 हिट फिल्में शामिल थीं. 'बावर्ची' के सेट पर शुरू हुई यह दोस्ती 'घर परिवार' (1991) तक चली.

परिवर्तन और पुनरुत्थान (80 और 90 के दशक)

1980 के दशक में, असरानी ने 107 से अधिक फिल्में कीं. हालांकि, 1985 से 1993 के बीच एक्शन फिल्मों के बढ़ते चलन और हीरो द्वारा खुद कॉमेडी करने के कारण, कॉमेडियन की भूमिकाएँ छोटी होती गईं. इस दौरान उन्होंने गुजराती फिल्मों में मुख्य हीरो के रूप में काम करना जारी रखा और 'अहमदाबाद नो रिक्शावालो' जैसी फिल्मों में सफलता हासिल की.

उन्होंने 1988 से 1993 तक पुणे के फिल्म संस्थान (FTII) के निदेशक के रूप में भी कार्य किया. 90 के दशक में, उन्हें काम करने के अच्छे मौके कम मिले, जिस कारण उन्होंने केवल 73 हिंदी फिल्मों में काम किया. 1995 में डी. रामा नायडू की फिल्म 'तक़दीरवाला' में महत्वपूर्ण भूमिका मिलने के बाद उनका करियर फिर से पटरी पर आया.

2000 के दशक में कॉमेडी का अटूट हिस्सा

1993 से 2012 तक, असरानी को डेविड धवन और प्रियदर्शन की कॉमेडी फिल्मों में लगातार अच्छे रोल मिलते रहे. 2000 के दशक में वह 'हेरा फेरी', 'चुप चुप के', 'हलचल' और 'दीवाने हुए पागल' जैसी ब्लॉकबस्टर कॉमेडी फिल्मों का अभिन्न हिस्सा बने रहे. उन्होंने साजिद नाडियाडवाला और प्रियदर्शन के साथ कई सफल फिल्मों में काम किया. उन्होंने 'क्योंकि' में एक गंभीर भूमिका भी निभाई थी.

असरानी ने अपने निजी जीवन में साथी अभिनेत्री मंजू असरानी से विवाह किया.अपने शानदार अभिनय और हास्य कला से दशकों तक दर्शकों का मनोरंजन करने वाले, 'शोले' के वह आइकॉनिक जेलर, जिन्होंने पर्दे पर 'अंगरेज़ों के ज़माने के जेलर' के किरदार को अमर कर दिया, हमेशा हमारी यादों में ज़िंदा रहेंगे. उनका जाना भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत है, लेकिन उनके द्वारा निभाए गए किरदार सदा मुस्कुराने और प्रेरणा देने के लिए मौजूद रहेंगे.