आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
फिल्म में एक नायिका के लिए ‘स्टंट’ करने वाले के तौर पर सिनेमा में कदम रखने वाले राज खोसला वास्तव में एक गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. खोसला ने ‘सीआईडी’ एवं ‘वो कौन थी?’ जैसी सफल ‘संस्पेस’ फिल्मों के जरिए फिल्मी दुनिया में निर्देशक के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी.
राज खोसला ने वहीदा रहमान जैसी अभिनेत्री को बॉलीवुड में कदम रखने का मौका दिया. वह एक ऐसे निर्देशक थे जिनकी बॉलीवुड में शुरुआत अप्रत्याशित रही. राज की 31 मई को 100वीं जयंती है. उन्होंने 34 साल के अपने करियर में 25 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया. इन फिल्मों को देखने के लिए सिनेमाघरों में दर्शकों की लंबी-लंबी कतारें लगती थीं और इनके गीत आज भी लोकप्रिय हैं. फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (एफएचएफ) ने लेखक एवं फिल्म निर्माता राज खोसला की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में उनकी फिल्मों की मुंबई में एक दिवसीय विशेष प्रदर्शनी आयोजित करने की घोषणा की. ‘मिलाप’ से 1955 में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत करने वाले राज खोसला की आखिरी फिल्म 1989 में आई ‘नकाब’ थी. राज खोसला ने कई सफल फिल्मों का निर्देशन किया। उन्होंने ‘वो कौन थी?’, ‘मेरा साया’ और ‘अनीता’ फिल्मों में अभिनेत्री साधना को मौका दिया जो उनकी तीन बेहतरीन फिल्में रहीं. राज खोसला ने देव आनंद के साथ ‘काला पानी’ एवं ‘सोलहवां साल’ जैसी यादगार फिल्मों में काम किया और गुरु दत्त के मार्गदर्शन में फिल्म बनाई.
राज खोसला ने अपनी दूसरी फिल्म ‘सीआईडी’ के साथ एक सफल निर्देशक के रूप में अपनी जगह पक्की कर ली और इस फिल्म को आज भी याद किया जाता है। वर्ष 1956 में आई इस फिल्म में देव आनंद एवं शकीला ने अभिनय किया था. इस फिल्म में वहीदा रहमान ने भी काम किया था. राज खोसला ने हिंदी सिनेमा को अपनी फिल्मों के जरिए कई यादगार गीत दिए, जिनमें ‘लग जा गले’, ‘मेरा साया’, ‘झुमका गिरा रे’, ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’, ‘ये है बंबई मेरी जान’ और ‘है अपना दिल तो आवारा’ शामिल हैं. ‘मेरा साया’ और ‘झुमका गिरा रे’ गीतों को करण जौहर ने 2023 में अपनी फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में फिर से इस्तेमाल किया था.
राज खोसला का जन्म 31 मई, 1925 को अविभाजित पंजाब के राहोन में हुआ था. राज खोसला जब सिर्फ तीन साल के थे तब उनके माता-पिता मुंबई चले गये थे. उन्होंने अंजुमन-ए-इस्लाम स्कूल में पढ़ाई की। राज ने ‘एलफिंस्टन कॉलेज’ से अपनी पढ़ाई पूरा की, जहां रंगमंच में उनकी रुचि पैदा हुई. राज ने छोटी उम्र से ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था और वह स्नातक होने के बाद संगीत में अपना करियर बनाना चाहते थे लेकिन जीवन ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था. वह महान गायक कुंदन लाल सहगल के प्रशंसक थे और कभी-कभी वे दोनों साथ में ‘रियाज’ भी करते थे.
खोसला की बेटी सुनीता भल्ला ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘माटुंगा में मेरे पुश्तैनी घर के पास के एल सहगल रहा करते थे और हर दिन सुबह, पिताजी उनके पास जाकर रियाज करते थे। वह उन्हें गाते हुए सुनते थे। वह उनके साथ रियाज भी करते थे। यह एक रोजमर्रा का काम था.’’ उन्होंने कहा, ‘‘बाद में के एल सहगल साहब ने पिताजी से कहा कि आप रेडियो या फिल्मों में क्यों नहीं गाते? उन्हें फिल्मों में गाने के दो-तीन मौके मिले और उन्होंने गाया भी।’’ सुनीता ने बताया कि यह ‘मिलाप’ के निर्देशन से पहले की बात है. उन्होंने बताया कि राज खोसला के लिए सिनेमा का मतलब सब कुछ था और वह अंत तक काम करते रहे. सुनीता ने कहा, ‘‘उन्होंने पूरी जिंदगी बस काम किया। उन्हें अपना काम बहुत पसंद था। वह अपने काम से बहुत खुश थे. सिनेमा उनके लिए सब कुछ था.’’