दिल्ली हाईकोर्ट का फिल्म 'फराज' की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 02-02-2023
'फराज'
'फराज'

 

 

नई दिल्ली. दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को 2016 में ढाका में हुए आतंकी हमलों पर आधारित फिल्म 'फराज' की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. दो पीड़ितों की माताओं ने फिल्म की रिलीज को चुनौती देते हुए निषेधाज्ञा की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हंसल मेहता द्वारा निर्देशित यह फिल्म 3 फरवरी को रिलीज होने वाली है.


जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह की खंडपीठ ने फिल्म निमार्ताओं को निर्देश दिया था कि वे फिल्म में पेश किए गए डिस्क्लेमर का 'गंभीरता से पालन' करें. डिस्क्लेमर में कहा गया है कि फिल्म एक सच्ची घटना से प्रेरित है लेकिन इसमें निहित तत्व पूरी तरह से काल्पनिक हैं.

 

उच्च न्यायालय ने 24 जनवरी को नोटिस जारी किया था और फिल्म के निर्देशक और निमार्ताओं को एक याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. इसी बेंच ने पांच दिन में जवाब दाखिल करने की बात कही थी. पिछली सुनवाई के दौरान माताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने अदालत को सूचित किया था कि फिल्म निर्माता मेहता और निमार्ताओं ने उन्हें रिलीज से पहले फिल्म देखने की अनुमति नहीं दी है. उन्होंने कहा था, 'उन्होंने इसका पूरी तरह से खंडन किया है.'

 

सिब्बल ने तर्क दिया था कि उन्होंने फिल्म निमार्ताओं से फिल्म का नाम बदलने के लिए कहा था, लेकिन वे नहीं माने. उन्होंने कहा, हमें नहीं पता कि फिल्म में किन नामों का इस्तेमाल किया गया है. 2021 में उन्होंने हमें आश्वासन दिया था कि पीड़ित दो लड़कियों का नाम नहीं लिया जाएगा.

 

इस पर कोर्ट ने पूछा था कि इसका फिल्म के नाम से क्या संबंध है? सिब्बल ने कहा था कि यह उस शख्स का नाम है जो हमले का शिकार हुआ था. इससे पहले, खंडपीठ ने कहा था कि फिल्म निर्माता को पहले विश्लेषण करना चाहिए कि उर्दू कवि अहमद फराज ने क्या रुख अपनाया था. अदालत ने कहा था, अगर आप फिल्म का नाम 'फराज' रख रहे हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि अहमद फराज किसके लिए खड़ा था. अगर आप एक मां की भावनाओं के प्रति संवेदनशील हैं, तो उससे बात करें.

 

हालांकि, मेहता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील शील त्रेहान ने तर्क दिया कि वे रिलीज से पहले फिल्मों को देखने की इजाजत देने का उदाहरण नहीं देना चाहते हैं. मेहता के वकील ने कहा, 'सारी जानकारी पहले से ही पब्लिक डोमेन में है.' इस पर सिब्बल ने तर्क दिया था, पब्लिक डोमेन और पब्लिक रिकॉर्ड दो अलग-अलग चीजें हैं. सिब्बल ने त्रेहान का विरोध करते हुए कहा, क्या बात है? माताओं को आघात के साथ फिर से जीना होगा.