अर्सला खान/नई दिल्ली
दोस्ती — एक ऐसा रिश्ता जो खून के रिश्तों से परे होते हुए भी दिल के सबसे करीब होता है. यह वो बंधन है जो सुख-दुख में साथ देता है, बिना किसी शर्त के. भारतीय सिनेमा ने इस रिश्ते को समय-समय पर बड़े पर्दे पर जीवंत किया है. दोस्ती पर बनी फिल्मों ने दर्शकों के दिलों को छुआ है, उन्हें हंसाया, रुलाया और यह भी सिखाया कि सच्चा दोस्त क्या होता है। आइए नज़र डालते हैं कुछ बेहतरीन बॉलीवुड फिल्मों पर, जो दोस्ती के रंग में पूरी तरह डूबी हुई हैं.
शोले (1975)
अगर दोस्ती की बात हो और जय-वीरू का जिक्र न हो, तो यह लिस्ट अधूरी रह जाएगी. शोले सिर्फ एक एक्शन फिल्म नहीं थी, यह दोस्ती की मिसाल बन गई थी। जय और वीरू की जुगलबंदी आज भी दोस्ती के प्रतीक के रूप में मानी जाती है.
दिल चाहता है (2001)
तीन दोस्तों की कहानी जो अलग-अलग रास्तों पर निकलते हैं, लेकिन उनकी दोस्ती कभी नहीं टूटती. आकाश, समीर और सिड की ये कहानी आज भी युवा वर्ग की सबसे पसंदीदा फिल्मों में गिनी जाती है। इस फिल्म ने दोस्ती को एक नया और मॉडर्न दृष्टिकोण दिया.
ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा (2011)
यह फिल्म न केवल दोस्ती की बात करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे दोस्त हमें हमारी असल पहचान से मिलाते हैं. अर्जुन, कबीर और इमरान की यात्रा स्पेन में उनकी आत्मिक यात्रा बन जाती है, जिसमें दोस्ती ही सबसे बड़ा सहारा बनती है.
याराना (1981)
अमिताभ बच्चन और अमजद खान की यह फिल्म दोस्ती की अनकही परिभाषा बनकर उभरी थी. एक दोस्त अपने साथी के लिए अपनी पहचान और करियर दांव पर लगा देता है — इससे बढ़कर समर्पण और क्या हो सकता है?
रॉक ऑन!! (2008)
म्यूज़िक बैंड के चार दोस्तों की कहानी, जो वक्त के साथ बिछड़ जाते हैं और फिर मिलते हैं. ये फिल्म दोस्ती, सपनों और अधूरे रिश्तों की कहानी को बेहद संवेदनशीलता से पेश करती है.
छिछोरे (2019)
इस फिल्म ने दोस्ती के साथ-साथ जिंदगी में हार और सफलता के मायनों को भी बड़ी खूबसूरती से दिखाया. कॉलेज की दोस्ती, मस्ती और जिम्मेदारियों का मेल इसे एक दिल को छू लेने वाली फिल्म बनाता है.
3 इडियट्स (2009)
रणछोड़दास चांचड़, राजू और फरहान — इनकी दोस्ती ने हमें सिर्फ इंजीनियरिंग ही नहीं, जिंदगी जीने का तरीका भी सिखाया। "अल्ल इज वेल" अब सिर्फ डायलॉग नहीं, दोस्ती की पहचान बन गया है.
रंग दे बसंती (2006)
यह फिल्म दोस्ती को एक देशभक्ति के भाव से जोड़ती है. कॉलेज के दोस्तों की ये कहानी हमें यह समझाती है कि दोस्त सिर्फ मस्ती के लिए नहीं, बदलाव लाने के लिए भी एकजुट हो सकते हैं.
आनंद (1971)
राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की यह फिल्म सिर्फ एक दोस्ती नहीं, जिंदगी की खूबसूरती की कहानी है. जब मौत सामने हो, तब भी मुस्कुराना और एक दोस्त को जीने का नया नजरिया देना — यही थी आनंद की दोस्ती.
दोस्ती पर बनी ये फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि भावनाओं की पराकाष्ठा हैं. जब हम इन फिल्मों को देखते हैं, तो हमें अपने दोस्तों की याद आती है, और वो हर पल जो हमने उनके साथ जिया। भारतीय सिनेमा ने दोस्ती को एक संवेदनशील, प्रेरणादायक और कभी-कभी भावुक रिश्ते के रूप में पेश किया है — और यही कारण है कि ये फिल्में कभी पुरानी नहीं होतीं.
इस #happyfriendshipday पर आप भी अपने दोस्तों के साथ इनमें से कोई फिल्म ज़रूर देखें — क्योंकि सच्चे दोस्त और अच्छी फिल्में, दोनों बार-बार नहीं मिलते.