आजमी खानदानः मनोरंजन की दुनिया में फनकारों का गुलदस्ता

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 14-01-2022
आजमी खानदान
आजमी खानदान

 

कैफी आजमीः जन्म 14 जनवरी 1919. मृत्यु 10 मई 2002

 

गौस सिवानी / नई दिल्ली

 

तुम इतना जो मुस्करा रहे हो.

क्या गम है जिसको छुपा रहे हो..

गीत-संगीत में रुचि रखने वालों ने इस गाने को अवश्य सुना होगा.. जगजीत सिंह ने इसे अपनी आवाज से सजाया है, लेकिन इसे अतहर अली रिजवी उर्फ कैफी आजमी ने लिखा है. उनकी एक और गजल बहुत लोकप्रिय है

झुकी-झुकी सी नजर

बेकरार है के नहीं,

दबा.दबा सा सही

दिल में प्यार है के नहीं.

कैफी आजमी एक शायर और गीतकार के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं, लेकिन वह एक व्यक्ति नहीं. एक विचारक थे. उनसे पहले उनका परिवार आजमगढ़ में ही जाना जाता था, लेकिन उनके बाद इस परिवार को पूरी दुनिया में पहचान मिली.

कैफी आजमी उनकी पत्नी शौकत आजमी, बेटी शबाना आजमी, दामाद जावेद अख्तर, बेटा बाबा आजमी और तन्वी आजमी इस परिवार के सदस्य हैं. परिवार के रिश्तेदारों में अभिनेत्री तब्बू और फराह भी शामिल हैं.

दुनिया ने शायरी का लोहा माना

जहां कैफी आजमी अपने साहित्यिक कौशल के लिए जाने जाते हैं और सबसे मकबूल शायरों में शुमार हैं, वहीं बॉलीवुड में एक गीतकार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा विश्व प्रसिद्ध है. इसलिए कुछ साल पहले उनके 101वें जन्मदिन पर गूगल ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए डूडल बनाया था.

मदरसा से साम्यवाद तक

कैफी आजमी का जन्म 14 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मजवां गांव में एक संपन्न परिवार में हुआ था. पिता जमींदार थे. वह चाहते थे कि उनका बेटा उच्च शिक्षा प्राप्त करे. शुरुआत में कैफी को कोलकाता के प्रसिद्ध सुल्तान मदरसे में भेजा गया था. हालाँकि उनके डीएनए में शायरी का स्वाद था. इसीलिए उन्होंने केवल ग्यारह साल की उम्र में नज्म लिखना शुरू कर दिया था.

घर में साहित्यिक माहौल भी था. बड़े भाई नज्म लिखा करते थे. कैफी के व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह था कि एक धार्मिक मदरसा में शिक्षित होने के बावजूद उन्होंने नास्तिकता का रास्ता अपनाया और साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव में कविता लिखी.

जब एक हसीना ने मंगनी तोड़ दी

जब कैफी आजमी हैदराबाद के मुशायरे में एक कविता सुना रहे थेए तो उनकी पढ़ने की शैली ने एक खूबसूरत महिला को अपनी सगाई तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. युवती ने उस दिन सफेद हैंडीक्राफ्ट शर्ट, सफेद सलवार और एक इंद्रधनुषी दुपट्टा पहना हुआ था.

कैफी आजमीए जो उस समय एक लंबे, छरहरे और सुदर्शन युवक थे, ने उस दिन 'ताज़' शीर्षक से अपनी तेज आवाज में इस गजल का पाठ किया था. मुशायरा खत्म होने पर कैफीए अली सरदार जाफरी और घायल सुल्तान पुरी की ओर ऑटोग्राफ बुक के साथ भीड़ जमा हो गईए तो वह हसीना भी उस भीड़ में थी.

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उन्होंने कैफी को एक ऑटोग्राफ बुक सौंपीए जिस पर केफी ने एक साधारण सी नज्म लिखी. लड़की ने पूछाए तुमने मेरी ऑटोग्राफ बुक पर एक साधारण सी नज्म क्यों लिखीए तो कैफी ने जवाब दियाए अली सरदार जाफरी से आपको सबसे पहले ऑटोग्राफ क्यों मिलाघ् यहीं से दोनों के बीच प्यार की शुरुआत हुई. यह लड़की बाद में कैफी की पत्नी बनींए वे हैदराबाद छोड़कर मुंबई आ गई और दुनिया उन्हें शौकत आजमी के नाम से जानती है. युगल का प्रेम प्रतीक अभिनेत्री शबाना आजमी और छायाकार बाबा आजमी हैं.

रोमांस से क्रांतिकारी कविता तक

कैफी आजमी के शुरुआती गीत और कविताएं उन्हें एक रोमांटिक शायर के रूप में चित्रित करते हैंए लेकिन वे जल्द ही एक प्रगतिशील और क्रांतिकारी शायर बन गए. उन्होंने अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई. वे एक कविता में महिलाओं के पक्ष में आवाज उठाते हैं और मजदूर की आवाज बनते हैं. उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर एक कविता लिखी थी, जो प्रसिद्ध हुई थी.

कैफी की सबसे लोकप्रिय कविताओं में से एक 'कैफ़ियत' है. शबाना आजमी और जावेद अख्तर के प्रयासों के परिणामस्वरूपए भारत सरकार ने दिल्ली से आजमगढ़ के लिए 'कैफ़ियत एक्सप्रेस' नामक एक ट्रेन शुरू की.

कैफी ने कई फिल्मों के लिए गाने लिखे. उनके लिखे गीत उनके अपने उदाहरण हैं, लेकिन कुछ फिल्मी गीत आज भी लोकप्रिय हैं.

फिल्म हकीकत के गीत की तरहः

कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियो,

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो.

फिल्म 'नोनिहाल' का गानाः

मेरी आवाज सुनो, प्यार का राज सुनो,

मेरी आवाज सुनो.

इसी तरह, फिल्म ‘हीर-रांझा’ के गाने आज भी लोकप्रिय हैं. फिल्म का दिलचस्प पहलू यह है कि इसके सभी संवाद शायरी में हैं और इन्हें कैफी आजमी ने लिखा है. कैफी ने अपने अंतिम वर्षों में एक फिल्म में भी काम किया. फिल्म का नाम 'नसीम' था.

शौकत आजमी

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शौकत आजमी (21 अक्टूबर, 1926 - 22 नवंबर, 2019) एक थिएटर और फिल्म अभिनेत्री थीं. वह इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (आईपीटीए) से संबद्ध थीं. वह 'गर्म हवा' और 'उमराव जान' जैसी प्रमुख प्रस्तुतियों सहित लगभग एक दर्जन फिल्मों में दिखाई दीं. 2002 में कैफी आजमी की मृत्यु के बाद शौकत आजमी ने एक आत्मकथा भी लिखी. उनकी फिल्मों में सलाम बॉम्बेए अंजुमनए लोरीए बाजारए धूप छांवए हीर.रांझा और हकीकत शामिल हैं.

शबाना आजमी

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शबाना आजमी (जन्म 18 सितंबर 1950) एक प्रसिद्ध हिंदी फिल्मए टेलीविजन और थिएटर अभिनेत्री हैं. वह पारंपरिक महिला पात्रों के चित्रण के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने रिकॉर्ड पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारए पांच फिल्मफेयर पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए अन्य पुरस्कारए साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं.

1998 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया और 2012 में उन्हें तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

अभिनय के अलावाए वह एक सामाजिक और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं. वह संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की सद्भावना राजदूत हैं. आजमी के जीवन और कार्य की मान्यता में, भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें संसद के ऊपरी सदन, राज्य सभा में एक मनोनीत (अनिर्वाचित) सीट दी थी.

बाबा आजमी

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सैयद बाबा आजमी एक फिल्म छायाकार हैं. उन्हें अर्जुनए बेटाए दिलए तेजाबए मिस्टर इंडियाए अलोन वी अलोन यू और कॉल जैसी फिल्मों में उनके काम के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1970 के दशक के मध्य में अपनी तेलुगु फिल्मों में सहायक के रूप में की थी. 2020 मेंए उन्होंने नसीरुद्दीन शाह अभिनीत ‘मेरी कसम’  के साथ निर्देशन शुरू किया. इसे 21 अगस्तए 2020 को जारी किया गया था.

तन्वी आजमी

बाबा आजमी की पत्नी तन्वी आजमी एक फिल्म और टेलीविजन अभिनेत्री हैं. वह मराठी.हिंदी अभिनेत्री आशा करण और मनोहर खेर की बेटी हैं. उन्होंने हिंदीए तेलुगुए मराठी फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में अभिनय किया है. आजमी ने टेली सीरीज जीवन रेखा में एक डॉक्टर की भूमिका निभाई. उन्होंने टेलीफिल्म राव साहिब (1986) में एक युवा विधवा की भूमिका निभाई.

उन्होंने गोपाल कृष्णन द्वारा निर्देशित मलयालम भाषा की फिल्म वाध्यान (1993) में भी अभिनय किया. उन्हें फिल्म अकेले हम अकेले तुम (1995) में उनकी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था. 2014 मेंए उन्हें संजय लीला भंसाली की फिल्म बाजी राव मस्तानी में बाजी राव प्रथम की मां राधा बाई की भूमिका निभाते हुए देखा गया था.

फिल्म में अपने किरदार के लिए उन्हें गंजा होना पड़ा था. उन्होंने फिल्म बाजी राव मस्तानी में अपने प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. उन्होंने और भी काम किए हैं.