लॉकडाउन में बच्चों के घरों तक ले गए थे स्कूल जलगांव के रियाज अहमद

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 27-05-2022
बच्चों को पढ़ाते रियाज अहमद
बच्चों को पढ़ाते रियाज अहमद

 

शाहताज खान/ पुणे

जलगांव महाराष्ट्र में इकरा उर्दू हाई स्कूल के एक अध्यापक हैं रियाज़ अहमद जाफर शाह. शिक्षक रियाज़ अहमद मात्र एक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं हैं. उनकी सोच और कोशिश ने साबित किया कि वह एक गुरु हैं.

रियाज़ अहमद ने लॉकडॉउन के दौरान बच्चों की शिक्षा के हो रहे नुक्सान को न केवल महसूस किया बल्कि उसका हल तलाश करने का प्रयास किया. उनकी योजना दूसरों से भिन्न थी. बच्चे स्कूल नहीं आ सकते थे तो रियाज़ अहमद पूरा स्कूल लेकर बच्चों तक पहुंच गए.

उस्तादों का उस्ताद हैं रियाज़ अहमद

ट्रैक्टर ट्रॉली में दो ब्लैक बॉर्ड, विज्ञान प्रयोगशाला, गणित, भूगोल और विज्ञान के मॉडल, मराठी, अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा की किताबों का छोटा-सा पुस्तकालय और विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिकों के चित्रों से सजा यह स्कूल रियाज़ अहमद अपनी मोटर बाईक से बांध कर जहां चाहते हैं लेकर चल देते हैं. इसे कहते हैं जहां चाह वहां राह.

एक शिक्षक की इस पहल को लोगों ने हाथों हाथ लिया. "तालीम हमारी हर हाल में जारी" का पैग़ाम लेकर रियाज़ अहमद जहां रुके तब बच्चे तो बच्चे बड़े भी खिंचे चले आए. स्लम बस्तियों में रहने वाले लोगों ने इस "इनोवेटिव मोबाइल स्कूल" का स्वागत पूरे जोश के साथ किया.

इल्म की शम्मा जलाते हैं रियाज़

शिक्षक वह होता है जो जीवन की वास्तविक समस्याओं का सामना करने के लिए अपने विद्यार्थियों को सक्षम बनाता है. वह नई पीढ़ी को भविष्य की अबूझ चुनौतियों के लिए तैयार करता है.

रियाज़ अहमद कहते हैं, “लॉकडॉउन शिक्षकों के लिए एक चुनौती से कम नहीं था. सभी ने इसे अपने तौर पर लिया और समाधान तलाश किया. मैं ने भी अपनी एक छोटी सी कोशिश की.”

रियाज़ अहमद ने स्वयं तो मॉडल बनाए ही साथ ही बच्चों को प्रोत्साहित किया कि वह अपने आसपास के सामानों से कैसे वर्किंग मॉडल बना सकते हैं. जिसका नतीजा यह हुआ कि बच्चों ने अपने अपने घरों में मिनी लेब तैयार कर लीं.

रसोईघर में मौजूद नमक, हल्दी, बेकिंग सोडा और ऐसे ही बहुत सी आम चीज़ों के फॉर्मूला तलाश कर के बच्चों ने अपने उस्ताद को हैरान नहीं बल्कि खुश किया.

हमारी दरसगाह में जो यह उस्ताद होते हैं

हकीकत में यही कौम की बुनियाद होते हैं

रियाज़ अहमद बताते हैं, “मैं बच्चों में साइंस की रुचि और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करने का हरसंभव प्रयास करता हूं. स्कूल के अंदर भी मेरी यही कोशिश थी और जब स्कूल साथ लेकर निकला तब भी मेरी कोशिश यही थी कि तालीम किसी भी हालत में रुकना नहीं चाहिए.”

वह बताते हैं कि जब बच्चे इन मॉडलों को अपने हाथों से इस्तेमाल करते हैं तो उनके चेहरों पर आने वाली खुशी और उनकी आंखों की चमक मेरे लिए किसी ईनाम से कम नहीं होती.

अब स्कूल खुल चुके हैं. बच्चे स्कूल आने लगे हैं. लेकिन रियाज़ अहमद का कारवां थमा नहीं है. अब इनका मोबाईल स्कूल बस्तियों, गलियों में जाने के साथ साथ स्कुलों से मिलने वाले निमंत्रण पर स्कूल भी जाता है.

रियाज़ अहमद की मोटर बाईक से बंधे ट्रैक्टर ट्राली पर सजे इनोवेटिव मोबाइल स्कूल का सफ़र लगातार जारी है. क्योंकि रियाज़ अहमद जाफर शाह खुद कहते हैं कि" तालीम हमारी हर हाल में जारी" . उम्मीद है कि शिक्षा का यह सफ़र यूं ही जारी रहेगा.