मुस्लिम बच्चे चला रहे ठाणे के गांव में घूमती-फिरती लाइब्रेरी, विकसित हो रही है बच्चों में पढ़ने की आदत

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 21-03-2022
खुली लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चे (फोटोः शाहताज खान)
खुली लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चे (फोटोः शाहताज खान)

 

शाहताज बेगम/ पुणे

वसई गांव कोलीवाड़ा के बच्चों को हर हफ्ते बुधवार और रविवार का बेइंतहा इंतजार रहता है. महाराष्ट्र के ठाणे जिले में यह गांव उस दिन पढ़ने-लिखने के माहौल से गुलजार हो उठता है. वजहः हफ्ते के इन दो दिनों में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम गश्ती लाइब्रेरी का ट्रॉली बैग संभालकर लड़कों के एक समूह किताबें लिए गांव के फेरे पर निकलता है.

चलता फिरता पुस्तकालय

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम गश्ती लाइब्रेरी सामान्य पुस्तकालयों से एकदम अलग है. यहां किताबें आलमारियों में नहीं, बैग में रखी हुई होती हैं. यह लाइब्रेरी अपने पाठकों के पास स्वयं चलकर जाती है. मुन्तजिर, शहीद महबूब, अरमान, शाहिद और उनके कई साथी एक निश्चित समय पर अपने लाइब्रेरी बैग के साथ निकलते हैं. घर-घर जाकर बच्चों को बुलाते हैं और फ़िर किसी पेड़ के नीचे, किसी बगीचे में बैठ कर बच्चे अपनी रुचि अनुसार पुस्तक पढ़ते हैं.

बच्चे एक या दो किताबें घर पर भी ले जा सकते हैं. जिसकी पूरी जानकारी एक रजिस्टर में दर्ज कर ली जाती है. किताब एक सप्ताह बाद लाइब्रेरी में वापस जमा करने की हिदायत भी लाइब्रेरी के ज़िम्मेदार बच्चे देते हैं.

गश्ती लाइब्रेरी की जिम्मेदारी संभालने वाले बच्चों में से एक मुन्तजिर शेख़ कहते हैं, “बच्चे एक सप्ताह की प्रतीक्षा ही नहीं करते. अगर बुध को किताब लेकर जाते हैं तो रविवार को ही किताब वापस कर देते हैं और दूसरी किताब लेकर जाते हैं.”

लाईब्रेरी संभालने वाले बच्चों में मुंतजिर उम्र में सबसे बड़े हैं और हुज़ैफा उर्दू हाईस्कूल वसई में नवीं कक्षा में पढ़ते हैं. शहीद महबूब मंसूरी कहते हैं, “जब हम पहली बार गश्ती लाइब्रेरी के साथ निकले थे तो केवल चार बच्चों ने ही किताबें पढ़ने में दिलचस्पी दिखाई थी. लेकिन अब बड़ी संख्या में बच्चे गश्ती लाइब्रेरी की प्रतीक्षा करते हैं.”

लाइब्रेरी संचालक बच्चों में से एक अरमान सगीर अहमद खान बताते हैं, “हम अपने स्कूल के ही बच्चों का एड्रेस देख कर इलाक़े का चुनाव करते हैं लेकिन किताबें सभी को पढ़ते के लिए देते हैं.”

गश्ती लाइब्रेरी की स्थापना

लॉकडाउन के कारण जीवनशैली पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़े हैं. जिनमें शिक्षा को सबसे अधिक नुक्सान पहुंचा है. परन्तु इसी दौरान लोग सिर जोड़कर बैठे और जिन बातों को नजरंदाज किया जाता रहा था उन्हें जीवन में उचित स्थान दिलाने की कोशिश शुरू हुईं. 18 दिसम्बर से 18 जनवरी के एक माह लम्बे "आओ किताबों से दोस्ती करें" अभियान ने न केवल सफ़लता पाई बल्कि इस दौरान आईटा पालघर (ऑल इंडिया आइडियल टीचर्स असोशिएसन)ने एक गश्ती लाइब्रेरी बनाने का भी प्रबंध किया. जिसकी जिम्मेदारी अलग-अलग स्कूलों के कुछ बच्चों को दी गई. यह सभी बच्चे सातवीं, आठवीं और नवीं कक्षा में पढ़ते हैं.

ज़िला परिषद उर्दू स्कूल वसई के बच्चे समय-समय पर लाइब्रेरी की गश्त पर ज़िम्मेदार बच्चों का साथ देने पहुंच जाते हैं. सलमान और अब्दुल कलाम खुश होकर बताते हैं, “कई बच्चे तो ऐसे हैं कि उन्होंने गश्ती लाइब्रेरी की सारी किताबें ही पढ़ ली हैं. आज हम अपने सर से कहेंगे कि लाईब्रेरी में नई किताबों को शामिल कीजिए.”

मस्तिष्क को सक्रिय रखने का उपाय

प्रतिदिन पुस्तक पढ़ने से मस्तिष्क सक्रिय रहता है. शरीर की तरह मस्तिष्क को भी मजबूत रखने के लिए व्यायाम की आवश्यकता होती है. किताबें पढ़ने से केवल शब्दावली का विस्तार ही नहीं होता बल्कि किताबें विश्लेषणात्मक कौशल विकसित करती हैं, महत्वपूर्ण जीवन पाठ पढ़ाती हैं, आत्मविश्वास पैदा करती हैं. जीवन में कल्पना की दुनिया से परिचित कराने, बाहरी दुनिया का ज्ञान प्रदान करने और संचार कोशल में सुधार के साथ साथ स्मृति और बुद्धिमत्ता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

पुस्तकालय: एक बौद्धिक प्रयोगशाला

पी एन पणिकर ने 1926 में सनातनधर्म पुस्तकालय की स्थापना की थी. इन्हीं की याद में राष्ट्रीय पठन पाठन दिवस मनाया जाता है. इन्हें केरल में लाइब्रेरी मूवमेंट के जनक के रूप में जाना जाता है.  ऐसी ही एक मूवमेंट की फिर ज़रूरत है. जिस तरह किताबों से बच्चों ने दूरी बना ली है ऐसे समय में किताबों से बच्चों की दोस्ती कराने की यह छोटी सी कोशिश काफ़ी महत्त्व रखती है.

अब्दुल कलाम सातवीं कक्षा में पढ़ते हैं वह बच्चों की बढ़ती संख्या देख कर बहुत खुश हैं. उनका कहना है कि हम पहले यह सोच कर परेशान थे कि बच्चे टी वी और मोबाईल छोड़ कर किताबें पढ़ने आएंगे भी या नहीं! लेकिन अब देखिए कई बच्चे हमें अपने घर के आस पास बार बार आने की फरमाइश करते हैं.

पाठक की तलाश

जान डी वी ने लाईब्रेरी को विद्यालय का हृदय कहा है. किताबों और लाइब्रेरी के महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता. पाठय-पुस्तकों के साथ दूसरी किताबों को भी अगर अपने अध्यन में शामिल कर लिया जाए तो लाभ ही होगा.

डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम गश्ती लाइब्रेरी बच्चो के लिए और बच्चो के द्वारा संचालित की जा रही एक छोटी सी कोशिश मात्र है उम्मीद की जा सकती है कि यह कोशिश दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बनेगी.