जामिया मिल्लिया इस्लामिया में डिजिटल हिंसा पर गहन मंथन

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 05-12-2025
Jamia Millia Islamia holds a discussion on digital violence
Jamia Millia Islamia holds a discussion on digital violence

 

नई दिल्ली

सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र (SNCWS), जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने 29 नवंबर को डिजिटल युग में जेंडर-आधारित हिंसा विषय पर एक महत्वपूर्ण एक्सटेंशन लेक्चर का आयोजन किया। यह कार्यक्रम ‘महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के तहत होने वाले 16 दिनों के वैश्विक एक्टिविज़्म अभियान का हिस्सा था। यह पहल CWDS तथा देशभर की 16 विश्वविद्यालयों के सहयोग से आयोजित की गई, जिसे डॉ. अमीना हुसैन ने समन्वित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत SNCWS की निदेशक प्रो. निशात जैदी के स्वागत वक्तव्य से हुई। उन्होंने कहा कि डिजिटल स्पेस ने नुकसान, सुरक्षा, प्रतिनिधित्व और न्याय—इन सभी क्षेत्रों को गहराई से प्रभावित किया है। उन्होंने केंद्र के उस संकल्प को रेखांकित किया जिसके तहत बदलती तकनीक के साथ-साथ जेंडर हिंसा के नए रूपों को समझने और उनसे निपटने के लिए संस्थागत कार्य को मजबूत करने की ज़रूरत है।

सेशन एक पैनल चर्चा के रूप में आयोजित हुआ, जिसका संचालन SNCWS की पीएचडी स्कॉलर चैताली पंत ने किया। उन्होंने आज के फेमिनिस्ट विमर्शों और डिजिटल वल्नरेबिलिटीज़ से सबसे अधिक प्रभावित समुदायों के अनुभवों के बीच संवाद स्थापित किया। उन्होंने कहा कि अब हिंसा केवल भौतिक दुनिया तक सीमित नहीं है—डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी एल्गोरिदमिक भेदभाव, डीपफेक, समन्वित ऑनलाइन उत्पीड़न, डेटा दुरुपयोग और पब्लिक–प्राइवेट सीमाओं के धुंधलेपन ने जाति, वर्ग, जेंडर और श्रम आधारित असमानताओं को और गहरा किया है।

पैनल में व्हाइटशील्ड, UAE की सलाहकार पल्लवी महाजन और सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों की प्रैक्टिशनर एडवोकेट आयशा जमाल शामिल रहीं। उन्होंने वैश्विक और जमीनी दृष्टिकोणों से यह समझाया कि कानूनी कमियों, बदलते डिजिटल व्यवहार और रोज़मर्रा के ऑनलाइन अनुभवों का संगम किस तरह जेंडर न्याय को प्रभावित करता है।

चर्चा में प्लेटफॉर्म-आधारित जोखिमों में बढ़ोतरी, मज़बूत जवाबदेही तंत्र की आवश्यकता, सर्वाइवर-केंद्रित सुरक्षा ढाँचे और अधिकार-आधारित तकनीकी इकोसिस्टम की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया गया। वक्ताओं ने तदर्थ कानूनी प्रतिक्रियाओं, डिजिटल साक्ष्यों की चुनौतियों, पुलिसिया व्यवहार, समकालीन हास्य–मीम संस्कृति की विघटनकारी प्रवृत्तियों, मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों और आम लोगों के लिए बेहतर कानूनी जागरूकता व सुलभ निवारण तंत्र की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला।

चर्चा के निष्कर्ष में जेंडर-संवेदनशील AI सिस्टम, स्पष्ट एवं सुदृढ़ कानूनी ढांचे, स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से डिजिटल साक्षरता, निवारक सुरक्षा मॉडल और सामुदायिक समर्थन संरचनाओं की अहमियत को रेखांकित किया गया।

कार्यक्रम का समापन अमीना हुसैन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि साइबरस्पेस में जेंडर आधारित हिंसा से निपटने के लिए कानून, नीति, तकनीक और समुदाय—चारों स्तरों पर सामूहिक प्रयास अनिवार्य हैं, ताकि भविष्य की डिजिटल दुनिया सुरक्षित, न्यायपूर्ण और अधिक उत्तरदायी बन सके।