गुलाम कादिर
इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम की शनिवार को 10 तारीख है. कर्बला की घटना के लिहाज से इस दिन को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस्लाम को मानने वाली दोनों कौमें, शिया और सुन्नी इस दिन को अपने-अपने ढंग से याद करती हैं.
दरअसल, यौम-ए-आशूरा कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. हुसैन पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे थे. इस दिन मुसलमान रोजा भी रखते हैं.इस दिन ताजिए निकाल और अलम जुलूस निकाले जाते हैं. शिया समुदाय मातम कर के 680 ईस्वी में आधुनिक इराक के कर्बला शहर में हुसैन की शहादत का गम मनाता है.शिया पुरुष और महिलाएं काले लिबास पहन कर मातम में हिस्सा लेते हैं.
कहीं-कहीं यह मातम जंजीरों और छुरियों से भी किया जाता है. मातम करने वाले खुद को लहूलुहान कर लेते हैं. इसी तरह सुन्नी समुदाय मोहर्रम के दसवें दिन ताजिए निकाल कर हुसैन को याद करता है.हाल में कुछ शिया नेताओं ने इस तरह की कार्रवाइयों को रोकने की भी बात कही है और उनका कहना है कि इससे बेहतर है कि इस दिन रक्तदान किया जाए.
यौम-ए-आशूरा का महत्व
मुहर्रम की यौम-ए-आशूरा को इराक के कर्बला शहर में पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने 72 साथियों के साथ कुर्बान हो गए थे. इस वजह से हर साल मुहर्रम की 10वीं तारीख को हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करके मातम मनाया जाता है.
क्यों हुई थी कर्बला की जंग?
पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के उत्तराधिकारी के रूप में यजीद के नाम की घोषणा उसके पिता ने की, लेकिन इसको पैगंबर साहब के परिवार ने स्वीकार नहीं किया. मान्यता न मिलने के कारण पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और यजीद के बीच यही जंग के आगाज का कारण बना.
यजीद कौन था ?
यजीद स्वयं को खलीफा मानता था. अपने अनुसार ही सभी लोगों को धार्मिक गतिविधियों को करने का दबाव डाला था. हजरत इमाम हुसैन ने यजीद के बातों को मनाने से साफ इंकार कर दिया. हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार और 72 साथियों के साथ कर्बला पहुंच गए.
आशूरा की और भी हैं मान्यताएं
बुजुर्गों की मान्यताएं हैं कि आशूरा के दिन का “आशूरा ” नाम इसलिए पड़ा कि इस रोज अल्लाह ताला ने 10 नबियों को 10 करामातें बख््शी और उन्हें इनाम देकर सम्मानित किया. इस दिन हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल की गई. इसी दिन हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम को बुलंद दर्जे तक पहुंचाया गया. और इसी दिन हजरत नूह अलाहिस्सल्लम की कश्ती पहाड़ी पर ठहरी थी
आशूरा के दिन हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम पैदा हुए. आशूरा के दिन ही अल्लाह ताला ने अपना दोस्त हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को बनाया. आशूरा के दिन हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को नमरूद की आग से निजात मिली.
आशूरा के दिन हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल हुई और आशूरा के दिन हजरत सुलेमान अलैहिस्सलाम के हाथ से निकला हुआ मुल्क इसी दिन उन्हें फिर दोबारा मिला. आशूरा के दिन हजरत अयूब अलैहिस्सलाम ने बीमारी से शिफा पाई.
इस दिन हजरत मूसा अलैहिस्सलाम नील नदी से पार हो गए और फिरौन अपनी कौम समेत नदी में डूब गया. आशूरा वाले दिन हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम को मछली ने पेट से बाहर निकाला. आशूरा के दिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को दुनिया से आसमान तक ले जाया गया.