नवरात्रि के बाद जवारे का क्या करें ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 23-10-2023
Jware (barleygrass) in Navratri
Jware (barleygrass) in Navratri

 

राकेश चौरासिया

इन दिनों शारदीय नवरात्रि चल रहे हैं, जो 15 अक्टूबर 2023, रविवार से प्रारंभ हुए और 24 अक्टूबर 2023, मंगलवार के दिन नवदुर्गा का अंतिम नवरात्र है. नवरात्रों को मां दुर्गा की उपासना और उनका आशीर्वाद पाने के लिए विशेष काल माना गया है. पवित्र मन से दुर्गा मां की आराधना करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. अंतिम दिवस में मां दुर्गा को धूमधाम के साथ विदा किया जाएगा.

हम प्रथम नवरात्र को मंदिरों और घरों में देवी दुर्गा का आह्वान करके उनका चित्र या प्रतिमा स्थापित करते हैं. पूजा के अन्य अंगों के रूप में हम कलश स्थापन और जवारे भी बोते हैं. एक परंपरा चली आ रही है कि नवरात्रि के पश्चात जवारों का जल प्रवाह कर दिया जाता है.

नवरात्र के दोरान नौ दिनों तक श्रद्धालु अपने घरों में अखंड ज्योति जलाते हैं. साथ ही मां दुर्गा के प्रतिदिन एक स्वरूप यानी नौ स्वरूपों की प्रातःकाल एवं सायंकाल में पूजा करते हैं. नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना यानी कलश स्थापना की जाती है, साथ ही जौ बोए जाते हैं. नवरात्र में कलश स्थापना और ज्वारे (Jaware) यानी जौ का बहुत अधिक महत्व होता है.

कहा जाता है कि जवारे बोने के बिना मां की पूजा अधूरी रह जाती है. कलश स्थापना के साथ जौ बोने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.

आज हम मुख्य खाद्यान्न के रूप में गेहूं के आटे से बनी रोटी का उपभोग करते हैं. किंतु अब से 100 साल पहले तक गेहूं भारत भूमि का मुख्य अनाज नहीं माना जाता था. भारत के मुख्य अनाजों में जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी (मडुआ), कोदो, सामा / सांवा, लघु धान्य या कुटकी,चौलाई, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल हैं. भारतीय जन इन्हीं अनाजों का सेवन करते थे. इन अनाजों में गर्मियों में सबसे ज्यादा ठंडी तासीर वाले जौ और सर्दियों में गर्म तासीर वाले अनाज बाजरे का सर्वाधिक सेवन किया जाता था.

नवरात्र में जौ क्यों बोए जाते हैं? नवरात्र में जौ बोने का क्या धार्मिक महत्व है?

नवरात्र में बीजे जाने वाले जवारे को ज्वारे, जुआरे, झुवारे, खेतड़ी, खेत्री और हरेला भी अन्य अंचलों में कहा जाता है. इसे नवरात्र में एक रस्म की भांति मनाया जाता है. नवरात्रों में जौ ही क्यों बोए जाते हैं? नवरात्रि के पर्व पर कोई अन्य अनाज क्यों नहीं बोया जाता है?

इसकी पौराणिक मान्यता यह है कि जौ को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है. जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी, तो मानव को वनस्पतियों में सबसे पहले जौ का उपहार दिया था और यही फसल सबसे विकसित हुई थी.

इसीलिए नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के समय जौ की सबसे पहले पूजा की जाती है और फिर एक मृदा पात्र में बोया जाता है. यही कारण है कि सृष्टि की पहली फसल होने के नाते जब भी देवी-देवताओं का पूजन या हवन किया जाता है, तो जौ ही अर्पित किए जाते हैं. ये भी कहा जाता है कि जौ अन्न ब्रह्मा के समान है और अन्न का हमेशा सम्मान करना चाहिए.

जो को अन्नपूर्णा भी कहा गया है, क्योंकि खाद्यान्न की देवी अन्नपूर्णा को यह सर्वाधिक प्रिय है. इसके अतिरिक्त न केवल नवरात्रि, अपितु अन्य ऐसे अवसरों और पर्वों पर भी जौ बोने की परंपरा भारत में देखने को मिलती है, जो पर्व कई दिनों के होते हैं. नवजात शिशु के आगमन पर विधि-विधान और सुहागिनों के मंगलगान के साथ एक बड़े घड़े में पानी के साथ औषधीय जड़ी-बूटियों का रखा जाता है.

किरयाना की दुकानों पर चरुआ का पैकेट रेडीमेड मिलता है. इस परंपरा को ‘चरुआ रखाई’ की रस्म कहते हैं. इस चरुआ के औषधीय जल से ही जच्चा और बच्चा को नहलाने का प्रावधान है, ताकि दोनों को कोई प्रसव बाद सर्दी या रोग न लगे. इस घड़े पर मिट्टी और गोबर का लेपन किया जाता है, उस पर जवारे बोए जाते हैं. इस प्रकार, विभिन्न अंचलों में भिन्न-भिन्न पर्वों पर जवारे बोने की परंपरा देखने को मिलती है. कुल मिलाकर, शुभ कार्य में सुख-समृद्धि की कामना के साथ जवारे बोए जाते हैं.

हिंदू धर्म की प्रत्येक मान्यता के पीछे कोई न कोई महत्वपूर्ण कारण अवश्य होता है, क्योंकि सहस्राब्दियों से ऋषियों और मुनियों ने परमात्मा, आत्मा, प्रकृति, ब्रह्माण्ड, मानव और अन्य जीवों में जिस संबंध और तादात्मय को समझा है, उसमें जीवों की उदरपूर्ति आवश्यक अंग है, बड़ी मात्रा में सोना-चांदी और मूल्यवान वस्तुओं के अर्जन के बावजूद पेट की अग्नि का शमन अनाज से ही संभव है.

अनाज का अंकुरण और खेती मानव सभ्यता की खुशहाली का भी प्रतीक है. इसीलिए जवारे का महत्व इतना गहरा है और हमारे पूर्वजों ने इसकी सराहना की है कि इसे सम्मान, पवित्रता और भक्ति के प्रतीक के रूप में देवी के चरणों में चढ़ाया जाता है और फिर देवी के पराक्रम से आशीर्वाद के चिह्न के रूप में अपने सिर पर रखा जाता है.

नवरात्र में बोए गए जौ अंकुरित होकर जवारे का आकार ले लेते हैं. जवारे का अंतिम दिन विसर्जन किया जाता है.

नवरात्रि में जवारे (Jaware) कैसे बोए जाते हैं?

जवारे के लिए मृद भांड यानी मिट्टी के बड़े एवं चौड़े पात्र का उपयोग किया जाता है. उसमें मिट्टी और गोबर की खाद का मिश्रण किया जाता है. उसे छान लें, ताकि गैर जरूरी कंकड़-पत्थर हट जाएं. फिर मिट्टी को मृद भांड में डाला जाता है.

उसमें जौ बोकर जल का छिड़काव कर दिया जाता है. फिर मिट्टी की एक परत डालें और ऊपर से एक बार फिर जौ को हल्के हाथों से मिट्टी में मिला दें. फिर रोली-चंदन-अक्षत अर्पित का मृद भांड का पूजन किया जाता है.

आवश्यकतानुसार प्रतिदिन में जल दिया जाता है. जब जौर अंकुरित होकर जवारे का आकर लेने लगें और उनकी लंबाई बढ़ जाए, तो इन्हें बिखरने से बचाने के लिए मौली द्वारा हल्के हाथ से बांध दें. ऐसे स्थान पर रखें कि इन्हें चूहे न कुतर पाएं. जवारों का स्थान परिवर्तित नहीं करना चाहिए. इसलिए पहले से जवारों का स्थान निश्चित कर लेना चाहिए.

नव दुर्गा और जवारे (Jaware) का विसर्जन 2023 में कब करें? जवारे का विसर्जन कैसे करें? जवारा विसर्जन कब होगा? जवारे विसर्जन कब है 2023?

2023 के शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा की प्रतिमा और जवारे का विसर्जन 24 अक्टूबर 2023 को किया जाएगा. इसी दिन दशहरा भी मनाया जाएगा. यह दिन नौ दिनों के उपवास के बाद दुर्गा माता को विदाई देने के समय है. उसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है.

पंचांग के अनुसार अश्विन शुक्ल दशमी तिथि 23 अक्टूबर 2023 को शाम 05 बजकर 44 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 अक्टूबर 2023 को दोपहर 03 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी. दुर्गा विसर्जन एक निश्चित शुभःकाल में किया जाता है. दशमी तिथि के विद्यमान रहते हुए दोपहर या फिर प्रातःकाल के समय किया जाता है. इसलिए उदया तिथि के अनुसार दुर्गा प्रतिमा और जवारे विसर्जन 24 अक्टूबर 2023 को होगा.

विसर्जन मुहूर्त - सुबह 06.27 - सुबह 08.42 (24 अक्टूबर 2023)

अवधि - 2 घंटे 15 मिनट

श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ - 22 अक्टूबर 2023, शाम 06.44

श्रवण नक्षत्र समाप्त - 23 अक्टूबर 2023, शाम 05.14

विसर्जन उत्सवपूर्वक करें

बंधु-बांधवों, ढोल नगाड़े की मंगल ध्वनि और सिंदूर खेलने के साथ दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन करने के लिए नदी, तालाब के पास जाएं और मुख्य यजमान मन में ‘गच्छ-गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि. पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च..’ मंत्र बोलता चले. नदी में दुर्गा प्रतिमा को विधि-विधान से विसर्जित करें.

जवारे के शुभाशुभ संकेत क्या हैं? क्या जवारे (Jaware) का रंग बताता है कि कैसा रहेगा आने वाला साल?

नवरात्र में कलश स्थापना के दौरान बोए गए जौ दो-तीन दिन में ही अंकुरित होने लगते हैं और नौ दिनों में इनकी बढ़वार एक फुट तक या उससे ज्यादा हो जाता है. यदि जवारे की वृद्धि अपेक्षित या आशानुकूल न हो या उगें ही नहीं, तो यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. ऐसी मान्यता है कि दो-तीन दिन बाद भी जवारे अंकुरित नहीं होते, तो इसका आशय है कि आपको कड़े श्रम के बाद ही फल मिलेगा.

जवारे का हरा-भरा होना इस बात का प्रतीक है कि जीवन भी हरा-भरा रहेगा और साथ ही मां दुर्गा की कृपा भी बनी रहेगी. जौ बोने के पीछे एक विश्वास है कि इससे आने वाला साल कैसा रहेगा, इसका पता लग जाता है.

जवारों के रूप-रंग और आकार को कई बार शुभ-अशुभ संकेतों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है. कई बार मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी या जल की अनियमितता के चलते जवारे ठीक से पनप नहीं पाते.

ऐसे में इसे अपशगुन या त्रुटि के रूप में न देखते हुए मन में सकारात्मकता का भाव रखें. अमूमन जवारों के निचले हिस्से का रंग पीला या सफेद होता है जिसे लेकर मन में चिंता बनी रहती है, लेकिन शास्त्रों में जवारों का निचला सफेद रंग धन और समृद्धि के देवता कुबेर का प्रतीक माना जाता है.

मान्यता है कि यदि जौ के उग गए हैं, लेकिन उनका रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा हो, इसका मतलब आने वाले साल का आधा समय आपके लिए ठीक रहेगा, लेकिन बाद में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.

यदि आपका बोया हुआ जौ सफेद या हरे रंग में उग रहा है, तो ये बहुत ही शुभ माना जाता है. इसका मतलब ये होता है कि आपके द्वारा की गई पूजा सफल हो गई. आने वाला पूरा साल आपके लिए खुशियों से भरा होगा.

यह भी माना जाता है कि जवारे का रंग नीचे से पीला और ऊपर से हरा हो तो इसका अर्थ होता है कि वर्ष के 6 महीने व्यक्ति के लिए ठीक नहीं हैं परंतु बाद में सब कुशल मंगल होगा.

नवरात्रि के जवारे का उपयोग/सेवन कैसे करें? नवरात्रि के बाद जवारों का क्या करें? नवरात्रि के बाद खेत्री का क्या करें? नवरात्रि में उगे हुए जौ का क्या करना चाहिए?

इस अनुष्ठान में जवारे उगाना और उसे देवी करना भर पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसे पूरे वर्ष उगाया जाना चाहिए और हमारे आहार के हिस्से के रूप में सेवन किया जाना चाहिए. सलाद ड्रेसिंग के रूप में या पाउडर के रूप में या इसका रस निकालकर आदि के रूप में दैनिक आधार पर इसका सेवन करने के जबरदस्त स्वास्थ्य लाभों की कल्पना करें.

जवारों का विसर्जन और उपयोग कैसे करें?

प्रतिमा विसर्जन के साथ ही मृद भांड में बोए गए जवारों को मिट्टी से पृथक कर जलराशि से धो लें. विसर्जन करने से पहले माता जी के स्वरूप तथा जवारों का विधिपूर्वक पूजन करें. इन जवारों में नौ दिनों के जप-तप और माता की शक्ति व्याप्त होती है.

अतः कुछ जवारों को अपने कोषागार और घर की तिजोरी में रख लें. शेष जवारों को अपने बंध-बांधवों में वितरित करके प्रसाद समझकर ग्रहण करें, जो आध्यात्मिक शक्ति के साथ अपने औषधीय गुणों से आपके तन-मन को पुष्टि प्रदान करेंगे. हालांकि अधिकांश इन जवारों को भी प्रतिमा के साथ प्रवाहित कर देते हैं.

कुछ लोग जवारों को मंदिर में पीपल अथवा बरगद की छाया में भी रख देते हैं. ऐसा अज्ञानतावश किया जा रहा है. अगर आप भी ऐसा करते हैं, तो इस बार न करें. इस बार जवारे को जल में प्रवाहित करने की बजाय आप इसे प्रसाद रूप में परिवार के लोगों को दें.

इसके लिए आप जवारे का रस निकाल सकते हैं. जवारे के जूस में फाइबर, सेलेनियम, आयोडिन, फ्लेवोनोइड्स, विटामिन-सी, ई, क्लोरोफिल, जिंक और आयरन जैसे तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं. ये जूस सेहत का खजाना माना जाता है.  

जवारे (Jaware) के औषधीय फायदे क्या हैं?

आजकल मेडिकल स्टारों पर जवारे देखने को मिल जाते हैं. आधुनिक विज्ञान ने इसके महत्व को अब जाना है, जबकि जवारे हमारी परंपरा का अंग रहे हैं. जौ-गेहूं घास के स्वास्थ्य लाभों को महसूस करते हुए कई जैविक और आयुर्वेदिक कंपनियों ने संचालित गेहूं घास से लेकर स्वादयुक्त जूस तक विभिन्न प्रकार के उत्पादों की पेशकश शुरू कर दी है.

ये छोटे साग विटामिन एसीआईकेबी कॉम्प्लेक्स और प्रोटीन से भरपूर होते हैं. इसमें सत्रह प्रकार के अमीनो एसिड हैं जो, इन पौधों में मौजूद हैं. इस चमत्कारी साग में 70 प्रतिशत क्लोरोफिल होता है, जो मानव शरीर में रक्ताल्पता / लैस हीमोग्लोबिन संबंधी अधिकांश समस्याओं से निपटता है. जवारों में ऑक्सीजन से भरपूर मात्रा होती है और इसलिए एक प्राकृतिक विषहरण एजेंट है.

वे शरीर से भारी धातुओं को भी हटा सकते हैं और कई रक्त विकारों से निपट सकते हैं. चूंकि अब दुनिया भर में स्वास्थ्य कंपनियों  द्वारा इनका जोरदार विपणन किया जाता है, इसलिए लोग इन्हें किसी भी कीमत पर खरीदते हैं क्योंकि बाबा रामदेव इसका सुझाव दे रहे हैं या एमवे इसकी वकालत कर रहे हैं.

जवारे को व्हीटग्रास भी कहते हैं, क्योंकि आधुनिक वैज्ञानिक जौ के स्थान पर गेहूं के जवारे की वकालत करते हैं. जवारे को ऐसे भी खा सकते हैं और इसका े 1 से 2 औंस जूस भी ले सकते हैं. जवारे में कैलोरी कम होती है, लेकिन पोषक तत्व उच्च होते हैं, जिनमें ग्लूटाथियोन, विटामिन सी और विटामिन ई जैसे एंटीऑक्सिडेंट शामिल होते हैं.

एंटीऑक्सिडेंट शरीर में मुक्त कणों से लड़ते हैं, ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करते हैं और गठिया, कैंसर और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों जैसी स्वास्थ्य स्थितियों से बचाते हैं.

कैंसर की रोकथाम

अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण, जवारे कैंसर को रोकने में मदद कर सकता है. कुछ अध्ययन दिखा रहे हैं कि यह कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद कर सकता है. इनमें से अधिकांश अध्ययन टेस्ट-ट्यूब अध्ययन हैं.

हालांकि जवारे के कैंसर-विरोधी प्रभावों को साबित करने के लिए अतिरिक्त शोध की आवश्यकता है. एक अध्ययन से पता चलता है कि जवारे पारंपरिक कैंसर उपचारों के नकारात्मक दुष्प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है. फिर, और अधिक शोध की आवश्यकता है.

संक्रमण से लड़ता है

जवारे में मौजूद क्लोरोफिल में जीवाणुरोधी गुण होते हैं. त्वचा पर लगाने से यह संक्रमण को रोककर जलन और घावों का इलाज करने में मदद कर सकता है. कुछ शोध यह भी संकेत देते हैं कि ज्वारे का रस पीने से एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमण के इलाज में मदद मिल सकती है.

कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम हो सकता है

कई अध्ययन जवारे में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करने की क्षमता दिखाते हैं, जो हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है. हालाँकि, अब उपलब्ध एकमात्र अध्ययन पशु अध्ययन हैं.

एक अध्ययन से पता चला है कि जवारे एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स को एटोरवास्टेटिन के समान कम कर सकता है, जो एक सामान्य कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली दवा है. हालाँकि परिणाम आशाजनक हैं, यह निर्धारित करने के लिए मानव अध्ययन की आवश्यकता है कि क्या व्हीटग्रास वास्तव में कोलेस्ट्रॉल के स्तर पर प्रभाव डालता है.

सूजन कम करता है

कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि जवारे पुरानी सूजन को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे हृदय रोग और कैंसर जैसी स्थितियों के विकसित होने का खतरा कम हो सकता है. एक छोटे से अध्ययन में पाया गया कि एक महीने तक प्रतिदिन आधा कप जवारे जूस पीने से अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित लोगों में रक्तस्राव को कम करने में मदद मिली. अन्य, टेस्ट-ट्यूब, अध्ययनों से पता चलता है कि व्हीटग्रास में मौजूद क्लोरोफिल शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकता है.

स्वस्थ पाचन में सहायक

जवारे में एंजाइम होते हैं, जो आपके शरीर को भोजन को तोड़ने और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करते हैं, जो अच्छे पाचन में सहायता कर सकते हैं. जवारे जूस पीने से आपके सिस्टम को डिटॉक्सीफाई करने में मदद मिल सकती है, जिससे सूजन, गैस और पेट की खराबी कम हो सकती है.

रक्त शर्करा विनियमन

कुछ शोध बताते हैं कि ज्वारे का रस रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, और मधुमेह वाले लोगों को उनके रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रण में रखने में मदद कर सकता है. चूँकि इन अध्ययनों में चूहे शामिल हैं, इसलिए यह पता लगाने के लिए लोगों के साथ अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या व्हीटग्रास और रक्त शर्करा प्रबंधन के बीच कोई वास्तविक संबंध है.

संज्ञानात्मक कार्य में सुधार हो सकता है

व्हीटग्रास में न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण हो सकते हैं, जिसका अर्थ है कि यह संज्ञानात्मक कार्यों को बेहतर बनाने और अल्जाइमर रोग जैसी स्थितियों के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है.

पोषण

जवारे को सुपरफूड कहा जाता है. इसमें कई आवश्यक विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सिडेंट और अन्य पोषक तत्व हैं जो महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं. जवारे में विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन बी, कैल्शियम, लोह, मैगनीशियम के अलावा महत्वपूर्ण एंजाइम, फाइटोन्यूट्रिएंट्स और क्लोरोफिल भी शामिल होता है. जवारे ताजा अंकुर है.