राकेश चौरासिया
रमजान का पवित्र महीना चल रहा है और इस दौरान कई लोग यात्रा की योजना बना सकते हैं. इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि रमजान में यात्रा के दौरान रोजा रखें या न रखें? यात्रा के समय रोजा रखना एक जटिल मुद्दा हो सकता है, क्योंकि यात्रा में थकान, भूख और प्यास जैसी चुनौतियां आती हैं.
रोजा रखने के फायदे
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रमजान के दौरान रोजा रखना ईश्वर की नजदीकी पाने का एक जरिया माना जाता है.
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रोजा रखने से आत्म-संयम और अनुशासन विकसित होता है.
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कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि रोजा रखने से स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं.
रोजा न रखने के कारण
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यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, जैसे मधुमेह, हृदय रोग या गर्भवती हैं, तो रोजा रखने से पहले डॉक्टर से सलाह लें.
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यदि यात्रा कठिन और थका देने वाली है, तो रोजा रखने से आपकी थकान बढ़ सकती है.
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यात्रा के दौरान पानी की कमी हो सकती है, जो रोजा रखने में मुश्किल पैदा कर सकती है.
क्या करें
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किफायतुल मुफ्ती के मुताबिक यात्रा की हालत में रोजा तभी छोड़ा जा सकता है, जब 48 मील यानी 70.25 किलोमीटर या उससे अधिक दूरी का सफर हो.
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सफर की हालत में रोजा छोड़ने की इजाजत के साथ ही नमाज भी आधी हो जाती है.
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यदि सफर के बाद व्यक्ति 15 दिनों तक एक जगह ठहरता है, तो वह मुकीम हो जाता है और उसका रोजा रखना फर्ज है.
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यदि व्यक्ति कुछ दिन सफर में है और कुछ दिन ठहर रहा है, तो वह मुसाफिर कहलाएगा.
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रोजा रखने से पहले अपनी स्वास्थ्य स्थिति का खुद मूल्यांकन करें और अपनी स्वास्थ्य स्थिति का डॉक्टर से भी मूल्यांकन करवाएं.
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यात्रा की योजना बनाते समय सावधानी बरतें. यात्रा की अवधि, मौसम और गंतव्य स्थान को ध्यान में रखें.
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नमाज और कुरान पढ़ने पर ध्यान दें. रोजा न रखने पर भी नमाज और कुरान के जरिए इबादत की जा सकती है.
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जरूरतमंदों की मदद करें. यदि आप रोजा नहीं रख सकते हैं, तो जरूरतमंदों की मदद करके पुण्य कमा सकते हैं.
निष्कर्षः
रमजान यात्रा के दौरान रोजा रखना एक व्यक्तिगत निर्णय है. अपनी स्वास्थ्य स्थिति, यात्रा की कठिनाई और धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखकर निर्णय लें. आप इसके लिए किसी आलिम और उलमा एकराम से भी मशविरा ले सकते हैं.
(नोटः यह लेख केवल जानकारीपूर्ण उद्देश्यों के लिए है.)