रसूलुल्लाह ﷺ के वंशजों का भारत से क्या है रिश्ता ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] • 2 Months ago
What is the relation of Rasulullah ﷺ's descendants with India?
What is the relation of Rasulullah ﷺ's descendants with India?

 

सैयद तालिफ हैदर

मुसलमान इमाम हुसैन के वंशजों को सैयद कहते हैं. इमाम हुसैन अल्लाह के दूत थे और इमाम जैनुल आबदीन उनके बेटे. कुछ विश्वसनीय ग्रंथों के ऐतिहासिक विवरण के अनुसार, इमाम जैनुल आबदीन की मां सिंधी महिला थीं. किताब ‘अल-मारीफ’ में इमाम इब्न कुतिबा द्वारा इसका संदर्भ दिया गया है. इसमें इमाम जैनुल अबदीन की मां के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है.

प्रसिद्ध भारतीय शोधकर्ता सैयद सुलेमान नदवी ने अरब-भारतीय संबंधों पर अपनी पुस्तक में सादात को आधा भारतीय बताया है. इसमें कहा गया है-मुसलमान आधे भारतीय हो सकते हैं और नहीं भी, लेकिन अल जैनुल आबदीन अली के बेटे सादात ने हमेशा आधे भारतीय रहे. संभवत यही कारण है कि हदीस में दावा किया गया है कि उन्हें भारत से ठंडी हवाएं मिलीं और हज़रत अली (आरए) ने कहा, यह भूमि सबसे अच्छी हवा के लिए है.

भारत और अल्लाह के पैगंबर के बीच यह घनिष्ठ संबंध यहीं तक सीमित नहीं . एक हदीस में, अल्लाह के पैगंबर ने दावा किया कि आदम ( उन पर शांति हो ) को भारत के क्षेत्र में ले जाया गया था. सैयद सुलेमान नदवी के मुताबिक, जब हज़रत आदम को आसमान की जन्नत से उठाकर इस दुनिया की जन्नत में लाया गया तो उन्हें भारत की धरती पर भी उतारा गया.

इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है. इन उदाहरणों में कहा गया है कि हजरत उस्मान बिन अबी अल-अस थकाफी, हजरत हुकम बिन अबी अल-अस, हजरत मुगीरा, हजरत रबीआह बिन जियाद, हजरत अब्दुल्ला अंसारी, हजरत उमर बिन उस्मान और हजरत असीम बिन उमर शामिल ने भारत की यात्रा की. उनकी शिक्षाओं का प्रसार भारत में हुआ.

कथित तौर पर एक यात्री से पैगंबर के करीबी दोस्त हजरत उमर ने पूछा कि खलीफा चुने जाने के बाद वह भारत के बारे में क्या सोचते हैं. मुसाफिर ने उत्तर दिया- माणिक के पहाड़ हैं. इसकी नदियां मोती है. इसके पेड़ सुगंधित हैं.

एक किवदंती के अनुसार, उस समय अरब क्षेत्र में कई भारतीय निवासी थे. अल्लाह के रसूल ने अपनी नबूवत का ऐलान किया और वहां भारतीय अच्छी तरह से बस गए. पैगंबर नबी के समय से पहले अरब में भारतीय तलवार की अपार प्रसिद्धि का यही कारण है.

तलवार के अलावा, अरब में विभिन्न प्रकार की भारतीय वस्तुएं खोजी गईं. वे वहां इतनी बड़ी मात्रा में थीं कि सैयद सुलेमान नदवी ने नोट किया कि अबला का बंदरगाह, जो बसरा के करीब है, इतनी बड़ी मात्रा में भारतीय सामान मिलता था कि स्थानीय अरब लोग अबला को भारत का लघु संस्करण मानने लगे .

भारत से अरब को निर्यात किए जाने वाले सामानों में सागौन की लकड़ी, तलवारें, सूती और रेशमी कपड़े, नींबू, संतरे, केले, दालचीनी, लौंग, माणिक, मोती और अन्य वस्तुएं शामिल थीं. काजी अतहर की रचनाओं में अल्लाह के दूत के समय भारतीयों और अरबों के बीच संबंधों, सैयद सुलेमान नदवी, अकबर अली खान आदि के प्रमाण मिले हैं .

संभवत यही कारण है कि इब्न कुतिबा ने, अन्य इतिहासकारों के विपरीत, दावा किया कि हजरत जैनुल-अबदीन की मां एक भारतीय थीं. इस समय अवधि में भारत में कई सूफियों ने अल्लाह के दूत और उनके भारतीय सहयोगियों की शिक्षाओं को फैलाने के लिए काम किया.

वे पहुंचे, घर पर खुद को तैयार किया और अपने पाठों से लाभान्वित हुए. एक हजार साल से भी पहले किताब अल-हिंद में अल-बैरूनी द्वारा जांचे गए हिंदू धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि वे उल्लेखनीय रूप से इस्लामी शिक्षाओं के समान हैं, जिनका श्रेय अल्लाह के दूत की शिक्षाओं को दिया जाता है.

सूफियों और शिक्षाविदों के एक बड़े समूह के अनुसार, भारत के लोगों की धार्मिक प्रथाएं, अल्लाह के दूत के वहदत के वर्णन के साथ उल्लेखनीय रूप से तुलनीय हैं. यही वजह है कि इस्लाम आज भी भारत में प्रमुख आस्थाओं में से एक है.