साकिब सलीम
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग ने मार्च 1940 में अपने लाहौर अधिवेशन में पाकिस्तान के गठन को अपना लक्ष्य घोषित करते हुए प्रस्ताव पारित किया.यह पहली बार था कि सामान्य रूप से किसी धर्म और विशेष रूप से इस्लाम के नाम पर एक राष्ट्र की मांग की जा रही थी.
राष्ट्र बल्कि एक आधुनिक विचार है जो पुनर्जागरण के मद्देनजर सदियों के साम्राज्य निर्माण अभ्यास के बाद विकसित हुआ है.एक राष्ट्र में लोगों की जातीयता, इतिहास या भाषा एक जैसी होती है.इस प्रस्तावित पाकिस्तान में कई जातियों के लोग थे.अलग-अलग भाषाएं बोलते थे और मुस्लिम लीग के अनुसार एकमात्र बाध्यकारी शक्ति इस्लाम था.यह विचार, हालांकि सैद्धांतिक रूप से असंगत था.
14 अगस्त 1947 को बनाया गया पाकिस्तान पहला राष्ट्र था जिसने अपना अस्तित्व एक धर्म से प्राप्त किया था और इजरायल उसके बाद दूसरे स्थान पर था.नव निर्मित पाकिस्तान में बहुत जल्द ही सांस्कृतिक दरार दिखाई देने लगी.कुछ ही महीनों के भीतर, उर्दू को राष्ट्रभाषा घोषित करने के मोहम्मद अली जिन्ना के प्रयास का पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले लोगों ने उचित विरोध किया.
इस विसंगति को प्रसिद्ध पाकिस्तानी लेखक इब्न-ए-इंशा ने अपनी पुस्तक उर्दू की आखिरी किताब में उजागर किया था.इंशा ने पूछा कि अगर राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी, बंगाली आदि जातीय समूह भारत में भी रहते तो पाकिस्तान क्यों बनाया गया.उन्होंने खुद इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि यह एक गलती थी और इसे दोहराया नहीं जाएगा.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलाना हसरत मोहानी, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, शौकतुल्ला शाह बुखारी और कई अन्य भारतीय नेताओं ने 1940से पाकिस्तान के विचार का विरोध किया.उनका विचार था कि इस्लाम किसी राष्ट्र के लिए एकमात्र बाध्यकारी शक्ति नहीं हो सकता है.भारत का एक साझा इतिहास है.इस प्रकार यह एक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है.
ऐसे में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अपने गठन के 25वर्ष से भी कम समय में पाकिस्तान एक खूनी गृहयुद्ध के बाद विभाजित हो गया.पाकिस्तान के गठन के बाद, विभिन्न जातीय समूहों ने दूसरों पर शासन करने की कोशिश की.जिन्ना का इस्लाम को एक संयुक्त शक्ति बताने का तर्क गलत साबित हुआ.
वास्तव में, यही वह समय था जब अरब राष्ट्र भी पूरे उम्माह (मुसलमानों) के लिए एक ही खिलाफत की शब्दावली के बाहर अपनी राष्ट्रीय पहचान का दावा कर रहे थे.दिलचस्प बात यह है कि मोहम्मद इकबाल, जिन्हें कई लोग पाकिस्तान के वैचारिक पिता के रूप में मानते हैं, ने खुद उन विविध देशों के दमन के लिए इस्लाम की पिछली शताब्दियों के अरब साम्राज्यवाद को दोषी ठहराया है, जहां मुसलमान रहते थे.
विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से, अरब राष्ट्रों ने एकजुट ओटोमन खिलाफत के विरोध में अपनी राष्ट्रीय पहचान का दावा करना शुरू कर दिया.सऊदी अरब, इराक, सीरिया आदि जैसे इन नए राज्यों ने अपने राष्ट्रवाद को इस्लाम पर आधारित नहीं किया, बल्कि साझा इतिहास और वंशावली पर आधारित किया.
जिन्ना के उर्दू थोपने के प्रयास के बाद पूर्वी पाकिस्तान में गर्मी महसूस होने लगी.रवीन्द्रनाथ टैगोर को पाठ्यक्रम से हटाने और बांग्ला की लिपि बदलने के प्रयास किये गये.बंगालियों को जल्द ही समझ आ गया कि इस्लाम उनका धर्म है,लेकिन एक राष्ट्र के लिए साझा इतिहास, संस्कृति, भाषा और जातीयता बहुत महत्वपूर्ण हैं.
इस्लाम के नाम पर, पाकिस्तानी जनरलों, जिनमें अधिकतर पंजाबी थे, ने आतंक का राज फैलाया.लोग मारे गए, घर जला दिए गए.महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया.विधानसभा में बहुमत हासिल करने के बाद शेख मुजीबुर रहमान को प्रधानमंत्री पद से वंचित कर दिया गया
26 मार्च 1971 को रहमान की गिरफ्तारी के परिणामस्वरूप उनके अनुयायियों द्वारा उनकी ओर से स्वतंत्रता की एकतरफा घोषणा की गई.कुछ ही महीनों में भारत की मदद से देश को आज़ादी मिल गयी.यह केवल बंगाली लोगों की जीत नहीं थी.यह एक सबक था कि धर्म राष्ट्रीय राजनीति का आधार नहीं हो सकता.किसी राष्ट्र को किसी धर्म से जोड़ने के किसी भी प्रयास का परिणाम हमेशा पाकिस्तान जैसी आपदा ही होगा.