फरहान इसराइली/ अजमेर
ख्वाजा गरीब नवाज का सालाना 812वें उर्स की अनौपचारिक शुरुआत झंडे की रस्म के साथ शुरू हो गई.भीलवाड़ा शहर के लाल मोहम्मद गौरी के परिवार ने ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडे की रस्म अदा की .
वहीं, गरीब नवाज के उर्स की विधिवत शुरुआत रजब का चांद दिखाई देने के बाद से शुरू हो जाएगी.झंडे की रस्म के दौरान बड़ी संख्या में जायरीनों की भीड़ मौजूद रही.
इस झंडे को एक हिंदू टेलर तैयार करता है.पुष्कर रोड अद्वैत आश्रम स्थित ओमप्रकाश वर्मा और उनके पुत्र सुभाषचंद्र का परिवार 70 साल से झंडा तैयार कर रहे हैं.पहले ओमप्रकाश के पिता गणपतलाल फलोदिया झंडे की सिलाई करते थे.
सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जिला पुलिस और आरएसी का अतिरिक्त जाब्ता तैनात रहा. मेरा ख्वाजा हिंद का राजा और नारा ए तकबीर आदि की सदाओं के बीच शान और शौकत के साथ गाजेबाजे और सूफियाना कलाम की अदायगी के साथ झंडे का जुलूस अस्र की नमाज के बाद गरीब नवाज गेस्ट हाउस से शुरू हुआ.
जुलूस में बड़ी संख्या में जायरीन मौजूद थे.गौरी परिवार के सदस्य झंडा उठाए हुए थे.दरगाह गेस्ट हाउस, लंगर खाना गली, नला बाजार और दरगाह बाजार में झंडे के जुलूस को देखने के लिए बड़ी संख्या में अकीदतमंदों की भीड़ जमा थी.
इरशाद रिफाई की अगुवाई में कलंदर व मलंग हैरत अंग्रेज करतब पेश करते हुए चल रहे थे.सबसे आगे ढोल वादक थे.बता दे कि रजब का चांद दिखाई देने पर 12 या 13 जनवरी से और इसकी विधिवत शुरुआत होगी.
अंजुमन सैयदजादगान के उर्स कन्वीनर सैयद हसन हाशमी ने बताया कि चांद रात 12जनवरी को है.इस दिन तड़के 4.30बजे जन्नती दरवाजा खुलेगा. शाम को रजब का चांद नजर आ गया तो यह दरवाजा 18 तक लगातार खुला रहेगा.
अन्यथा रात को बंद कर दिया जाएगा और 13को फिर खुलेगा.यदि 12जनवरी को रजब महीने का चांद दिखाई दे गया तो रात से ही गरीब नवाज के उसे की महफिल शुरू हो जाएगी.
दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खान की सदारत में महफिल होगी. मध्य रात्रि को गुस्ल दिया जाएगा.12को चांद नहीं होने पर 13की रात से ये रसूमात शुरू होंगी.उर्स मेले में इस बार 400से ज्यादा पाक जायरीनों के आने की संभावना है.जिला प्रशासन के द्वारा सेंट्रल गर्ल्स स्कूल में व्यवस्था की गई है.
गौरी परिवार करता है झंडे की रस्म अदा
भीलवाड़ा से आए गौरी परिवार के अनुसार यह परंपरा काफी अरसे से चली आ रही है.साल 1928से फखरुद्दीन गौरी के पीरो मुर्शीद अब्दुल सत्तार बादशाह झंडे की रस्म अदा करते थे.
इसके बाद 1944से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई.उनके इंतकाल के बाद 1991से पुत्र मोईनुद्दीन गौरी यह रस्म निभाने लगे और साल 2007 से फखरुद्दीन इस रस्म को अदा कर रहे हैं.
बताया जाता है कि वर्षों पहले झंडे की रस्म शुरू हुई, तब बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया गया झंडा आस-पास के गांवों तक नजर आता था.उस वक्त मकान छोटे-छोटे और बुलंद दरवाजा काफी दूर से नजर आता था.इस दरवाजे पर झंडा देखकर ही लोग समझ जाते थे कि पांच दिन बाद गरीब नवाज का उर्स शुरू होने वाला है.
हिन्दू टेलर बनाता है झंडा
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है.यहां दरगाह में आने वाले हर शख्स का कोई भी धर्म मजहब हो, लेकिन दरगाह के भीतर आने के बाद वो केवल एक इंसान होता है.
दरगाह में सभी धर्म और समाज के लोग आते हैं.यही वजह है कि यहां पर गंगा जमुनी तहजीब की झलक देखने को मिलती है.यह गंगा जमुनी संस्कृति की झलक ही है कि उर्स से पहले झंडा चढ़ाने की रस्म अदा होती है और इस झंडे को एक हिंदू टेलर तैयार करता है.
पुष्कर रोड अद्वैत आश्रम स्थित ओमप्रकाश वर्मा और उनके पुत्र सुभाषचंद्र का परिवार 70 साल से झंडा तैयार कर रहे हैं.पहले ओमप्रकाश के पिता गणपतलाल फलोदिया झंडे की सिलाई करते थे.