उर्दू पत्रकारिता का द्विशताब्दी उत्सव
सलमान अब्दुस समद
पिछले लेख में, मैंने उर्दू के प्रारंभिक इतिहास, पहले अखबार और कुछ प्रसिद्ध समाचार पत्रों का उल्लेख किया था. इसे पढ़कर उर्दू अखबारों का सफर हमारे सामने आ जाता है. इन ऐतिहासिक कड़ियों के बयान के बाद, हम यहां वर्तमान युग के कुछ उर्दू समाचार पत्रों का उल्लेख करेंगे, ताकि इसकी गतिविधियों का अंदाजा लगाया जा सके और यह भी मालूम हो कि उसकी संख्या कितनी है.
विश्व स्तर पर उर्दू का दायरा कितना बढ़ रहा है, यह शोध का विषय है. हालांकि आरएनआई की सूची में उर्दू अखबारों और पत्रिकाओं की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. देश भर में प्रकाशित समाचार पत्रों में उर्दू अक्सर शीर्ष पांच में होती है.
2010 के आस-पास आरएनआई से जारी होने वाली सूचि में उर्दू तीसरे नंबर पर थी. इसका का अर्थ यह है कि उर्दू पत्रकारिता हिंदुस्तान की दूसरी भाषओं की तुलना में बहुत ज्यादा कमजोर नहीं है. साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि उर्दू कोई क्षेत्रीय भाषा नहीं है, क्योंकि क्षेत्रीय भाषा का अखबार नम्बर तीन पर कैसे आ जाएगा.
1957 और 2015 के बीच 6,723 उर्दू समाचार पत्र पंजीकृत हुए. जबकि हिंदी के (50,766), अंग्रेजी (18,754), बंगाली के (9,761) और मराठी के (9,166) समाचार पत्रों को मंजूरी दी गई. अर्थात उर्दू पांचवे नम्बर पर है. इस आंकड़े से यह भी स्पष्ट होता है कि इन पांच भाषाओं के समाचार पत्रों की संख्या इतनी है, जो देश भर की सभी भाषओं के पंजीकरण अखबारों का 71 प्रतिशत हिस्सा है. यदि हम अपना ध्यान 2014-15 में वार्षिक विवरण दाखिल करने वाले समाचार पत्रों तक सीमित रखते हैं, तो उर्दू प्रिंट मीडिया हिंदी (12,723) और अंग्रेजी (2,296) के बाद 1,675 प्रकाशनों के साथ देश में तीसरा सबसे बड़ा है, यानि वो बंगाली (1,045) और मराठी से आगे है.
इन आंकड़ों से दो-चार बातें सामने आती हैंः
1. उर्दू समाचार पत्र सर्कुलेशन या पंजीकरण के संदर्भ में तीसरे और कभी-कभी पांचवें स्थान पर होता है.
2. पंजीकृत उर्दू समाचार पत्र भी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं. 2015 में वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले अन्य भाषा के समाचार पत्रों में उर्दू को तीसरा स्थान दिया गया था.
3. जब इतने सारे उर्दू अखबार वार्षिक रिपोर्ट जमा कर रहे हैं, तो सवाल यह है कि यह अखबार बाजार में क्यों नजर नहीं आते? क्योंकि वार्षिक रिपोर्ट जमा करने का मतलब है कि यह अखबार निकल रहे हैं, मगर उनकी प्रतियां बाजार में पहुंच नहीं रही हैं?
4. अगर वार्षिक रिपोर्ट देने वाले अखबार बाजार में नहीं आते हैं, तो इसका मतलब है कि यह अखबार कागज और फाइलों पर निकल रहे हैं और बाजार या पाठकों से उनका रिश्ता नहीं है?
यह बात तो कड़वी है, लेकिन सच है कि उर्दू अखबारों के बढ़ते पंजीकरण और उर्दू में खुलने वाली छोटी न्यूज एजेंसियों ने भी उर्दू पत्रकारिता को नुकसान पहुंचाया है. इन दोनों पहलुओं को इस तरह समझा जा सकता है कि बहुत से ऐसे उर्दू अखबारों को भी सरकारी मदद मिल रही है, जो बाजार में नहीं आते हैं. और ऐसे अखबारों को भी मदद मिल रही है, जो बाजार में छप कर आते हैं. अर्थात मदद लेने में दोनों प्रकार के अखबारात एक हो गये, जबकि जो अखबार मार्किट में होते हैं, उन्हें जयादा आर्थिक मदद मिलनी चाहिए, मगर ऐसा नहीं हो रहा है. इसका साफ मतलब है कि बोरियों और फाइलों में बंद अखबारों ने बाजार में आने वाले अखबारों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है.
दूसरे, उर्दू में छोटी-छोटी न्यूज एजेंसियां खुल गई हैं. यह एजेंसियां छोटे अखबारों को बहुत कम पैसों में इतनी खबरें दे देती हैं कि पूरा अखबार तैयार किया जा सकता है. इसीलिए फाइलों तक सीमित रहने वाले समाचार पत्र, केवल एक-एक कंप्यूटर ऑपरेटर की मदद से पूरे अखबार तैयार करा लेते हैं. फिर गिनती की प्रतियां छाप-छाप कर वार्षिक रिपोर्ट भी जमा कर लेते हैं.
यह एजेंसियां हिंदी और अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की वेबसाइटों से समाचार ले लेती हैं और घटिया अनुवाद करके समाचार पत्रों को भेज देती हैं. इसका मतलब यह भी है कि उर्दू अखबारों में अनुवाद की जो परंपरा थी, उसको भी नुकसान पहुंचा है. क्योंकि समाचार पत्रों को अब अनुवादकों या उप-संपादकों की आवश्यकता नहीं रही, उन्हें केवल एक ऑपरेटर की आवश्यकता है, जो कॉपी-पेस्ट करके समाचार पत्र के पृष्ठ तैयार कर सके .
इस खेल का नुकसान यह भी है कि उर्दू पत्रकारिता में रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं. जाहिर है, जब रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे, तो सच्चे उर्दू अखबारों को नुकसान होगा और पत्रकारिता की गुणवत्ता कम होगी. ऐसा लगता है कि आज उर्दू पत्रकारिता में न तो पत्रकारों का सम्मान है और न ही अनुवादकों का.
ऊपर प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं कि भारत में उर्दू हजारों पंजीकृत समाचार पत्र हैं, लेकिन भिन्न शहरों से कुछ ही समाचार पत्र बाजार में नजर आते हैं. इनमें से कुछ समाचार पत्रों के नाम यहां प्रस्तुत हैं. उर्दू के दो प्रमुख समाचार पत्र सहारा ग्रुप के ‘राष्ट्रीय सहारा’ और जागरण ग्रुप का ‘इंकलाब’ हैं.
इनके अलावा और भी कई जाने-माने समाचार पत्र हैं. उदाहरण के तौर परः ‘हमारा समाज’ दिल्ली और पटना. ‘अखबार मशरिक’ दिल्ली, कोलकाता. ‘सहाफत’ दिल्ली, मुंबई और लखनऊ. ‘आग’, ‘वारिस-ए-अवध’, ‘अवध नामा’, ‘कौमी खबरीन’, लखनऊ. ‘कौमी तंजीम’, ‘फारूकी तंजीम’, ‘पिंदार’, पटना. ‘सियासत’ और ‘मुंसिफ’, हैदराबाद. ‘उर्दू टाइम्स’, ‘मुंबई उर्दू न्यूज’, मुंबई. ‘सालार’ बैंगलोर इत्यादि.
यह केवल कुछ महत्यपूर्ण उर्दू समाचार पत्र हैं, जिनका उल्लेख करना जरूरी है. यह कहा जा सकता है कि लगभग 70 प्रतिष अखबार का खर्च विज्ञापन से आता है. बाजार में आने वाले इन अखबारों को निश्चित तौर पर भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें सरकार से उतना नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए. इसलिए उर्दू पत्रकारिता को नुकसान पहुँचाने में जहाँ ऊपर दोनों पहलू आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं, वहीं सरकारी स्तर पर विज्ञापन के संदर्भ में उर्दू पत्रकारिता को अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे उर्दू अखबार में काम काने वालों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो पाती है.