डॉ. आयशा अशरफ अहमद
इस्लामिक कैलेंडर में बारह महीने होते हैं. इस 12 महीने का नौवां महीना रमजान का महीना है. सभी महीनों में इस महीने का दर्जा सबसे ऊंचा है. यही कारण है कि सभी धर्मनिष्ठ मुसलमानों को इसका बेसब्री से इंतजार है. पवित्र कुरान से लिए गए बकाराह की आयत 183 में उल्लेख है, ‘‘हे ईमान लाने वालों! आप पर रमजान के महीने का रोजा रखना अनिवार्य है, क्योंकि यह आपके पूर्वजों पर अनिवार्य था, ताकि आप उदार और पवित्र हो सकें.’’
रमजान के महीने का चांद आते ही रमजान के रोजे की घोषणा हो जाती है. हजरत मोहम्मद, अल्लाह के रसूल ने कहा, ‘‘चाँद पर उपवास करना और चाँद को समाप्त करना (ईद मनाना). आसमान में बादल हों, तो महीने के 30 दिन पूरे करें. एक बात तो यह है कि उस समय वैज्ञानिक गणना का कोई स्रोत नहीं था. आज कई विद्वानों का मानना है कि चूंकि वर्तमान समय में वैज्ञानिक गणनाओं से आकाश में चंद्रमा की स्थिति आसानी से निर्धारित की जा सकती है. इसलिए वैज्ञानिक तरीके से उपवास और ईद के दिनों का निर्धारण करना संभव है.
रोजा का अर्थ है उपवास. सूर्योदय से सूर्यास्त तक कोई भोजन नहीं, पानी की एक बूंद भी नहीं ली जाती. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, रोजा के दौरान उपवास करने वाले व्यक्ति का शरीर अपने आप शरीर में जमा अतिरिक्त वसा या कार्बोहाइड्रेट को जलाकर ऊर्जा उत्पन्न करता है. उपवास का मुख्य लाभ विषहरण या हानिकारक पदार्थों का उत्सर्जन है. हालांकि, उपवास यहीं तक सीमित नहीं है. उपवास का अर्थ है धैर्य, दया, क्षमा का महीना. इस महीने, शरीर और मन में आमूल-चूल परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है. उपवास का उद्देश्य बुरे शब्दों और कर्मों जैसे आंख, कान, मुंह की बुराईयों आदि से बचना है.
इस्लाम के अनुयायियों द्वारा मनाए जा रहे इफ्तार का दृश्य
हमें याद रखना चाहिए कि दुनिया में सभी लोगों को एक ईश्वर ने बनाया है. अत्यधिक भक्ति के साथ रोजा करने से रोजेदार को धैर्य रखने और दूसरों के प्रति सहानुभूति रखने के साथ-साथ मानवता को जगाने में मदद मिलती है.
समाज का पहला आवश्यक पहलू शांति है. समाज में शांति बनाए रखना सभी का कर्तव्य है. आज कल कट्टरता बढ़ रही है. इससे समाज में अशांति फैल गई है. साम्प्रदायिकता भी बढ़ रही है. जो लोग ईश्वर से डरने वाले हैं, यानी निर्माता से डरते हैं, वे ऐसा कभी नहीं कर पाएंगे. ऐसा इसलिए है, क्योंकि सभी धर्म शांति और एकता के साथ-साथ अन्य धर्मों के प्रति सम्मान की शिक्षा देते हैं. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रोजा का अर्थ उपवास रखना है ताकि आप आत्म-संयम और पवित्र हो सकें. बिना सांप्रदायिकता के एक स्वस्थ और जीवंत समाज के निर्माण में उपवास के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता. रमजान के महीने में जकात, फितरा यानी भिक्षा देना भी अनिवार्य है.
मुसलमानों द्वारा रमजान के दौरान तराबीह की नमाज के दृश्य
रोजा अल्लाह की इबादत के पसंदीदा कार्यों में से एक है. अल्लाह कहते हैं, ‘‘रोजा केवल मेरे लिए है और मैं अपने हाथों से इनाम देता हूं.’’ इस महीने का हर पल बहुत ही सुंदर, धन्य और दयालु होता है. दूसरे शब्दों में, हर अच्छे काम के लिए, अल्लाह उसे गुणा करता है और उसे पुरस्कृत करता है. इस तरह साल भर दान दिया जा सकता है. लेकिन रमजान के महीने में इसकी खूबियां ज्यादा होती हैं. विशेष रूप से रमजान के महीने में जकात-ए-फितरा देना अनिवार्य है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक वयस्क मुस्लिम पुरुष और महिला को आवश्यक खर्चों का भुगतान करना होगा. संचित संपत्ति का 25 प्रतिषत. सभी मुसलमानों को उनका बकाया चुका दिया जाता, यानी जकात अदा कर देते.
आज मानव जाति एक कठिन परिस्थिति का सामना कर रही है. कोरोना के कारण देश में गरीबी, सेवानिवृत्ति दर में तेजी से वृद्धि हुई है. इसके अलावा, कई देशों में इंसानों को युद्ध की भयावहता का सामना करना पड़ा है. सीरिया और फिलिस्तीन जैसे युद्धग्रस्त देशों में लाखों लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ऐसे भूखे व्यक्ति की भूख को समझने के लिए उपवास प्रासंगिक है. ऐसा लगता है कि ऐसे सभी लोगों की सहायता के लिए आने के लिए हमारे मन को दोगुना प्रोत्साहन मिलता है. ऐसे उत्पीड़ित लोगों की मदद से ही उपवास का उद्देश्य प्राप्त होगा. यह इस तथ्य के कारण है कि उपवास का उद्देश्य इस संदेश को पूरा करना है कि रमजान व्यक्ति और पूरे समाज की भलाई के लिए है.
(लेखक शिलांग कॉलेज में सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं.)