मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
इस शनिवार को अमेजन प्राइम ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 'सरदार ऊधम' नाम की फिल्म रिलीज हो रही है. इस जमाने के बेहतरीन अदाकार विकी कौशल इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं. बेशक, सरदार ऊधम सिंह ऐसे क्रांतिकारी रहे हैं जिनके जीवन से जुड़ी घटनाओं पर लोगों का ध्यान जाएगा. ऐसा नहीं है कि सरदार ऊधम सिंह फिल्म माध्यम में पहली बार नजर आएंगे. ऊधम सिंह खुद भी फिल्मों में अभिनय कर चुके थे और वह भी हॉलीवुड की फिल्मों में.
26 दिसंबर, 1899 को जन्मे ऊधम सिंह स्वतंत्रता सेनानियों में ऐसी शख्सियत हैं जो देश के नौजवानों के लिए शक्ति और गौरव की भावना के प्रेरणा सरीखे हैं. 1933 में उन्हें माइकल ओ’ड्वायर की हत्या के लिए फांसी दी गई थी. ओ’ड्वायर पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था.
गौरतलब है कि जालियांवाला बाग में गोली चलाने के आदेश रेगिनाल्ड डायर ने दिए थे और ओ”ड्वायर ने उसके इस कृत्य की निंदा की थी. भारत की आजादी की लड़ाई में सरदार ऊधम सिंह का नाम क्रांतिकारियों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर रखा जाता है. ऊधम सिंह के पार्थिव देह के अवशेष जालियांवाला बाग, अमृतसर में सुरक्षित रखे गए हैं.
जाहिर है, ऊधम सिंह ने जालियांवाला बाग के दोषी के रूप में गलत इंसान को सजा दी थी और उन पर बनी फिल्म से उनके संघर्ष की कहानी आज के नौजवानों तक पहुंचेगी. लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि सरदार ऊधम सिंह ने हॉलीवुड की फिल्मों में काम किया था. वह भी एक नहीं, दो फिल्मों में उन्होंने अदाकारी की थी.
क्या उनकी दिलचस्पी अभिनय में थी? नहीं. अदाकारी का उनका एकमात्र मकसद गदर पार्टी—भारत के क्रांतिकारियों की पार्टी—के लिए पैसे जुटाना था. गदर पार्टी का गठन लाला हरदयाल ने भारत को ब्रिटिश कब्जे से छुड़ाने के लिए किया था. सरदार उधम सिंह ने 1937 में 'द एलिफेंट बॉय' नाम की फिल्म में अभिनय किया और उसके बाग 1939 में उन्होंने 'द फोर फीदर्स' में भी अदाकारी की.
एलिफैंट बॉय में सरदार ऊधम सिंह
एलेक्जेंडर कोर्डा की 'एलिफेंट बॉय' एक ऐसी फिल्म है जो 'तूमई ऑफ द एलीफेंट्स' नाम की कहानी पर आधारित है. यह कहानी रूडयार्ड किपलिंग की किताब 'द जंगल बुक' में शामिल है. इस फिल्म को वेनिस फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी हासिल हुआ था. जॉल्टन कोर्डा की 'द फोर फीदर्स' एक ऐसे ब्रिटिश अधिकारी के बारे में थी, जो खुद को एक अरब के छद्म रूप में छुपा लेता है ताकि अपने साथियों को बचा सके.
हालांकि, सरदार ऊधम सिंह का किरदार इन दोनों ही फिल्मों में काफी छोटा था और यह दोनों ही फिल्में भारत में कभी रिलीज नहीं हुई थीं.
एलिफैंट बॉय के एक दृश्य में सरदार ऊधम सिंह
सरदार ऊधम सिंह पर विकी कौशल की इस ताजी फिल्म के पहले भी उन पर काफी फिल्में बन चुकी हैं. पंजाबी में बनी 'सरफरोश- द स्टोरी ऑफ शहीद ऊधम सिंह' 1976 में रिलीज हुई थी. इसके एक साल बाद, 1977 में 'जालियांवाला बाग' रिलीज हुई जिसे गुलजार ने लिखा था और इसमें सरदार ऊधम सिंह का किरदार परीक्षित साहनी ने निभाया था. कई सालों के बाद, सन 2000 में 'शहीद ऊधम सिंह उर्फ राम मोहम्मद सिंह आजाद' नाम की फिल्म बनी, जिसमें सरदार ऊधम सिंह का किरदार राज बब्बर ने निभाया था.
ऊधम सिंह का बचपन का नाम शेर सिंह था और वह संगरूर जिले के सुनाम गांव में पैदा हुए थे. वह छोटे ही थे कि उनके माता-पिता का निधन हो गया था. इसके बाद उनका लालन-पालन पुतलीघर के केंद्रीय खालसा अनाथालय में हुआ था. ऊधम सिंह जालियांवाला बाग नरसंहार के चश्मदीद थे और उस घटना को भारतीय इतिहास में काले अध्याय के रूप में देखा जाता है. घटना 13 मार्च, 1940 की है जब लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया असोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक हो रही थी.
लंदन के कैक्सटन हॉल में गिरफ्तारी के बाद सरदार ऊधम सिंह
ऊधम सिंह उस बैठक में ड्वायर को मारने के लिए ही शामिल हुए थे. ऊधम सिंह ने एक किताब में पन्नों को काटकर उसमें अपना रिवॉल्वर छिपा रखा था.
बैठक के अंत में, ऊधम सिंह ने माइकल ओ’ड्वायर पर फायर किया लेकिन वह फायर करने के बाद वहां से भागे नहीं. उन्होंने ड्वायर पर दो गोलियां चलाई थी, और पंजाब का वह पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर मौके पर ही मारा गया. भागने की बजाए सिंह, अधिकारियों का इंतजार करते रहे कि वह लोग आकर उन्हें गिरफ्तार करें.
ब्रिटेन में उनपर मुकदमा चलाया गया और 4 जून, 1940 को उन्हें हत्या का दोषी करार दिया गया और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.