संदर्भ फरमानी नाज विवाद : हिंदुओं की गाई कव्वाली और मुस्लिमों के गाए भजन देश की असली विरासत

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 02-08-2022
फिल्म बैराग में भजन गाते दिलीप कुमार
फिल्म बैराग में भजन गाते दिलीप कुमार

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

यूट्यूबर और सिंगर फरमानी नाज के भजन गाने को देवबंद के मौलाना ने गैर-इस्लामी करार दिया. सावन के महीने में भगवान शिव की स्तुति हर हर शंभू गाने की वजह से सोशल मीडिया पर इन दिनों फरमानी नाज को कुछ लोग ट्रोल कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा पहली बार हुआ कि दूसरे धर्मों के लोग किसी अन्य धर्म के गीत गाते हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.

कट्टरपंथी लोग पहले भी इस तरह की हरकते करते रहे हैं.

कुछ साल हुए जब एक टैलेंट प्रतियोगिता जीत कर लोकप्रिय हुईं नाहिद परवीन को भी ऐसे ही विवाद का सामना करना पड़ा था. उन्हीं दिनों कर्नाटक की एक मुस्लिम लड़की सुहाना सईद को एक कन्नड़ टीवी चैनल पर भगवान बालाजी का भजन गाने के लिए भी सोशल मीडिया पर बुरी तरह से ट्रोल किया गया. ट्रोलर्स का कहना था कि किसी मुस्लिम का भजन गाना गैर-इस्लामिक काम है.

साल 2012 में कश्मीर के मुफ्ती बशीरुद्दीन ने तीन कश्मीरी लड़कियों के खिलाफ दिसंबर, 2012 में एक रॉक बैंड में परफॉर्म करने पर भी फतवा जारी किया था. तब बशीरुद्दीन का कहना था कि इस्लाम में संगीत पर पाबंदी है. ऐसा लगता है कि कट्टरपंथी तत्व संगीत को ही गैर-इस्लामी साबित करने के लिए एक अभियान चला रहे हैं.

जबकि सचाई इसके उलट है. करीब सौ साल पहले अगस्त, 1915 में गौहर जान ने एक होरी की रिकॉर्डिंग की थी. गौहर जान अपने समय की सबसे बड़ी दरबारी गायिका थीं. उन्होंने जो होरी गाई थी उसमें पैगंबर मोहम्मद के मदीना में होली का त्योहार मनाने की बात कही गई थी! गीत के बोले थेः ‘मेरे हजरत ने मदीना में मनाई होली.’

तो क्या एक पाबंद मुस्लिम गायिका गौहर जान ऐसा गीत गाकर ईशनिंदा कर रही थीं? उस वक्त किसी ने ऐसा नहीं सोचा क्योंकि उस वक्त ऐसा गाकर वह भारत की गंगा जमुनी तहजीब में अपना योगदान कर रही थीं और धार्मिक कट्टरता संकीर्णता की आज जैसी पराकाष्ठा पर नहीं पहुंची थी.

आखिर, बड़े गुलाम अली खां के गाए भजन ‘हरि ओम तत्सत महामंत्र है, जपा कर, जपा कर’ को भी इसी कड़ी में रखा जा सकता है और इस गीत को तो आज भी काफी लोकप्रियता हासिल है.

हाल में, मुस्लिम साहित्यकारों के हिंदी साहित्य में योगदान पर किताब के विमोचन में चर्चा करते हुए इस्मामिक विद्वान प्रो. अख्तरउल वासे ने 1952 की फिल्म बैजू बावरा का जिक्र भी भारत की सामासिक संस्कृति के संदर्भ में किया था. इस फिल्म का कभी न भुलाया जा सकने वाला भजन ‘मन तड़पत हरिदर्शन को आज’ हमारे संगीत की धर्मनिरपेक्षता की चमकती हुई मिसाल है.

यह मिसाल इसलिए भी है क्योंकि इसे लिखा था शकील बदायूंनी ने और संगीत दिया था नौशाद ने. इसको गाय था मोहम्मद रफी ने. ये तीनों मुस्लिम थे. ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त भारतीय संगीतकार एआर रहमान भी एक मुस्लिम हैं, जिनके भजन जोधा अकबर और लगान जैसी फिल्मों में मनमोहना और ओ पालनहारे जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.

प्रसिद्ध हिंदू कव्वाल शंकर-शंभु द्वारा गाई गई कव्वालियों ने भी यह साबिक किया है कि भारतीय संगीत में कभी भी हिंदू-मुस्लिम का बंटवारा नहीं रहा है.

द क्विंट की एक रिपोर्ट में कुलदीप कुमार ने लिखा है कि राग पूर्वी सूफी संत निजामुद्दीन औलिया को बहुत पसंद था, और इस राग में हर दिन उनके यहां गायन होता था. ध्रुपद शैली के सबसे बड़े विशारद डागर खानदान वाले हैं, जो मुस्लिम हैं. ख्याल गायकी के जितने भी घराने हैं, सबकी शुरुआत मुस्लिम संगीतज्ञ परिवारों से हुआ है. बिस्लिमल्ला खान, उस्ताद अमजद अली खान, फैयाज खान, अब्दुल करीम खान, अल्लादिया खान, अलाउद्दीन ख़ान, विलायत ख़ान—बीसवीं सदी के मुस्लिम संगीतज्ञों की अगर सूची अंतहीन है.

जौनपुर के शासक सुल्तान हुसैन शाह शरकी को भोर के राग जौनपुरी की रचना का श्रेय दिया जाता है. दरबारी, मियां की तोड़ी और मियां की मल्हार जैसे अमर रागों का निर्माण तानसेन ने किया, जो कि मुगल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे.

रसखान के बारे में तो कहना ही क्या, हाल में, मौलाना हसरत मोहानी मथुरा और कृष्ण के प्रशंसकों के तौर पर सामने आते हैं. यहां तक कि इकबाल ने भी राम पर कसीदा लिखा है.

आपको ध्यान होगा कि बीबीसी ने हिंदुओं के बीच सबसे लोकप्रिय भजनों पर एक सर्वे कराया था. इस सर्वे में पूरी दुनिया में रहने वाले 30 लाख हिंदुओं को शामिल किया गया था.

इस सर्वे का नतीजा कट्टरपंथियों को करारा जवाब है. 10 शीर्ष गीतों में से कई सारे गीतों में किसी न किसी मुस्लिम का योगदान है.

ये गाने हैं, मन तडपत हरि दर्शन को आज. इसके गीतकार, शकील बदायुंनी, गायक मोहम्मद रफी और संगीतकार नौशाद हैं. एक अन्य गीत है फिल्म अमर का इंसाफ का मंदिर है, ये भगवान का घर है. इसमें भी वही टीम है. 1968 में रिलीज फिल्म नीलकमल का गीत हे रोम रोम में बसने वाले राम,  के गीतकार साहिर हैं और इसमें आवाज दी है आशा भोंसले और रफी ने. इसी तरह लगान का गीत ओ पालनहारे निर्गुण और न्यारे को लिखा है जावेद अख्तर ने और संगीत दिया है ए आर रहमान ने.

1961 में आई फिल्म घराना के गीत जय रघुनन्दन जय सियाराम के गीतकार शकील साहब थे और इसको मोहम्मद रफ़ी ने गाया था. फिल्म नया दौर के संगीतकार ओपी नैय्यर और खैयाम थे और साहिर का लिखा गीत था आना है तो आ राह में, इसको गाया था मोहम्मद रफ़ी ने.

जावेद अख्तर के पिता जांनिसार अख्तर ने उस्ताद नाम की फिल्म में एक भजन लिखा था जान सके तो जान, तेरे मन में छुपे भगवान और इसे मोहम्मद रफी ने आवाज दी थी.

ऐसे में, लगता यही है कि यूट्यूबर और सिंगर फरमानी नाज के भजन गाने को देवबंद के मौलाना ने जिस तरह गैर-इस्लामी करार दिया है वह धार्मिक कट्टरता का नया आयाम है और इसका भारत की गंगा जमुनी विरासत से कोई लेना देना नहीं है.