टोंक के अरबी-फारसी शोध संस्थान का दीदार करने दुनिया भर से आते हैं लोग

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 24-04-2024
 Tonk's Arabic-Persian Research Institute
Tonk's Arabic-Persian Research Institute

 

फरहान इसराइली / जयपुर

राजस्थान की राजधानी जयपुर से 103 किमी दक्षिण में मौजूद टोंक आजादी से पहले तत्कालीन राजपूताना में एकमात्र मुस्लिम रियासत थी. इसे कला और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र माना जाता था, क्योंकि नवाबों ने विद्वानों को संरक्षण दिया था और उन्हें शहर में रहने के लिए आमंत्रित किया था. परिणामस्वरूप, कई कवि, कलाकार और इतिहासकार टोंक में रहने आए और इसे बुद्धिजीवियों और पेशेवरों का केंद्र बना दिया. इसके अलावा, इस्लामी धार्मिक प्रचारकों ने शहर में कुरान के उपदेशों और शिक्षाओं की संस्कृति की स्थापना की.

टोंक में स्थापित राजस्थान सरकार के मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी और फारसी अनुसंधान संस्थान (एपीआरआई) में ऐतिहासिक इस्लामी पांडुलिपियों, दस्तावेजों, पुस्तकों और दुर्लभ कलाकृतियों का भंडार ध्यान आकर्षित कर रहा है. दुनिया की प्राचीन कुरान की प्रतिलिपि हो या महाभारत का फारसी अनुवाद. ईरान के 74 बादशाहों की जीवनी एक पुस्तक में और बगदाद के मशहूर डाकू हलाकू की ओर से दजला नदी में पुस्तकों से बनाए गए पुल में, डाली गई किताबों में से एक, मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान में रखी गई पुस्तकों में शामिल हैं, जो आज भी लोगों को खासी पसंद आ रही है.

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मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी-फारसी शोध संस्थान का म्यूजियम दुनिया भर में मशहूर है. यहां साहित्य और इतिहास का खजाना होने पर दुनियाभर के स्कॉलर्स आते रहते हैं. एपीआरआई इस्लामी अध्ययन के दुर्लभ संग्रह का दावा करता है और इसमें 8,000 से अधिक हस्तलिखित खंड हैं. मध्यकाल से संबंधित पांडुलिपियों का अध्ययन करने के लिए भारत और विदेशों से शोधकर्ता संस्थान का दौरा करते रहे हैं. इसके अलावा, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल और केंद्रीय मंत्रियों जैसे प्रमुख लोगों ने संस्थान का दौरा किया है और इसके समृद्ध संग्रह को देखा है.

ऐतिहासिक पुस्तकों के खजाने में, मुख्य आकर्षणों में मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा हस्ताक्षरित बोल्ड नक्श सुलेख में पवित्र कुरान की 17वीं शताब्दी की प्रति, 11वीं शताब्दी के हामेल शरीफ (पवित्र कुरान पर टिप्पणी) और उनवान-उल-शरीफ शामिल हैं. 19वीं सदी का, जिसमें एक ही चालू पाठ के साथ पांच विषय शामिल हैं. एपीआरआई के पास 2014 में टोंक में तैयार की गई दुनिया की सबसे बड़ी कुरान भी मौजूद है.

संस्थान में अधिकांश दुर्लभ पुस्तकें और पांडुलिपियां 1961 के बाद तत्कालीन टोंक रियासत की सईदिया लाइब्रेरी से स्थानांतरित की गई हैं, जब इसे राजस्थान ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के जिला कार्यालय के रूप में स्थापित किया गया था. किताबें टोंक के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खान द्वारा एकत्र की एपीआरआई में पुस्तकों के संग्रह को उत्तर प्रदेश के रामपुर में प्रसिद्ध रजा लाइब्रेरी और पटना में खुदा बख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के बराबर स्थान दिया जा सकता है.

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मुगल काल की प्रसिद्ध पुस्तकों शाहजहांनामा और  तुजुक-ए-जहांगीरी की प्रतियां भी इसके संग्रह में हैं. इसके अलावा, संस्थान के पास टोंक की अदालत शरह शरीफ (विहित अदालतों) के लगभग एक लाख फैसले हैं, जो कई खंडों में प्रकाशित हुए हैं. इसके अलावा, टोंक राज्य के विशेष संदर्भ में राजस्थान के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास से संबंधित दस्तावेज भी हैं.

संस्थान में एक लाख पैंतीस हजार पुस्तकें हैं. यहां सूफिज्म, उर्दू, अरबी एवं फारसी साहित्य, केटेलाग्स, यूनानी चिकित्सा, स्वानेह हयात (आत्म कथा), मध्य कालीन इतिहास, स्वतन्त्रता अभियान पर साहित्य, खत्ताती, रीमिया, कीमिया, सीमिया, दर्शन, तर्कशास्त्र, विधि शास्त्र, विज्ञान एवं शिकार आदि विषयों पर असीम साहित्य उपलब्ध है.

संस्थान में संधारित धरोहर में 8053 दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ, 27785 मुद्रित पुस्तकें, 10239 कदीम रसाइल, 674 फरामीन एवं भूतपूर्व रियासत टोंक के महकमा शरीअत के 65000 फैसलों की पत्रावलियों के अतिरिक्त हजारों अनमोल अभिलेख, प्रमाण-पत्र, तुगरे और वसलियां उपलब्ध हैं. यहां हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण, महाभारत, भगवद् गीता, सिंहासन बत्तीसी आदि की भी फारसी भाषा में अनुवादित पुस्तकें मौजूद हैं. यहां ज्योतिष, भूगोल, जीव विज्ञान, इतिहास, सूफिज्म आदि की पुस्तकें मौजूद हैं.

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25 हजार दुर्लभ ग्रंथों का जखीरा

जानकारी के मुताबिक टोंक रियासत के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खां ने बनारस में रहकर करीब 25 हजार दुर्लभ एवं हस्तलिखित ग्रंथ आदि एकत्रित किए थे, जिसका बड़ा जखीरा टोंक एपीआरआई में अब तक महफूज है. संस्थान में हस्तलिखित करीब 8513 ग्रंथ, 31432 पुस्तकें, 17701 जनरल पत्रिकाएं, 719 फरमान, 65000 शरा के दस्तावेज, 9699 पांडुलिपियां, 65032 बेतुल हिकमत और 50647 प्रिंटेड पुस्तकें संग्रहित हैं, जिससे दुनियाभर के शोधकर्ता लाभान्वित हो रहे हैं. यहां दुनिया का सबसे बड़ा कुरआन-पाक भी मौजूद है. संस्थान के दुर्लभ ग्रंथों की महत्ता को समझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने 4 दिसंबर 1978 को राज्य सरकार के निर्णयानुसार इस संस्था को निदेशालय के रूप में स्थापित किया. जो आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है.

50 से अधिक देशों के आ चुके हैं विद्वान

यहां अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, मिस्र, इजराइल, ऑस्ट्रेलिया, ईरान सहित करीब 50 देशों के शोधकर्ता एवं पर्यटक यहां पहुंच चुके हैं. विभिन्न देशों के मंत्री, राज्यों के राज्यपाल, न्यायिक अधिकारी एवं अन्य देशी-विदेशी विद्वान यहां का दौरा चुके हैं.

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इस तरह चला इस विरासत का कारवां

टोंक के तीसरे नवाब मोहम्मद अली खां ने बनारस में अदीबों से पुस्तकें लिखवाने का कार्य करवाया. नवाब साहब ने पश्चिम एशिया के मुल्कों, ईरान, ईराक, मिस्र, अरब सल्तनतों, देश के विभिन्न शहरों से समय समय पर विद्वानों को बुलवाया और किताबों, धार्मिक ऐतिहासिक पुस्तकों के लेखन एवं अनुवाद करवाए तथा कई पुस्तकों को संग्रहित किया. उस संग्रह को उनके पुत्र अब्दुल रहीम खां टोंक लाए. उसके बाद 4 दिसंबर 1978को राज्य सरकार के निर्णयानुसार अरबी फारसी शोध संस्थान की स्थापना हुई. वहां उक्त संग्रह आदि रखे गए. इसकी स्थापना में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरुसिंह शेखावत व संस्थापक निदेशक साहबजादा शौकत अली खां का अहम रोल रहा.

कुरान देखने आते हैं लोग

दुनिया की सबसे बड़ी व वजनी कुरान मजीद भी टोंक में बनाई गई है. उसे अरबी-फारसी में लिखा गया है. जिला चित्तौडगढ़़ निवासी मोहम्मद शेर खां की मारफत एपीआरआई के फारसी विभाग के अनुवादक मौलाना जमील अहमद के निर्देशन में हाफिज कारी गुलाम अहमद ने कुरान मजीद लिखी है. अब तक इस कुरान को 5 लाख लोग देख चुके हैं. इसकी लागत एक करोड़ रुपए है. बनने में पूरे 2 साल लगे. कुरान 32 पन्नों की है. इसकी चौड़ाई 90 इंच, लम्बाई 125 इंच, वजन 250 किलो तथा इसका कागज 400 साल तक खराब नहीं होगा.

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