जेग्युमा मोजैक म्यूजियम: इस जिप्सी गर्ल की खूबसूरत आंखें हर किसी को कर देती हैं मंत्रमुग्ध

Story by  रावी द्विवेदी | Published by  onikamaheshwari | Date 14-02-2023
जेग्युमा मोजैक म्यूजियम: इस जिप्सी गर्ल की खूबसूरत आंखें हर किसी को कर देती हैं मंत्रमुग्ध
जेग्युमा मोजैक म्यूजियम: इस जिप्सी गर्ल की खूबसूरत आंखें हर किसी को कर देती हैं मंत्रमुग्ध

 

रावी द्विवेदी

तुर्की के गाजियांटेप में एक दशक पहले ही खुला जेग्युमा मोजैके म्यूजियम एक बेहद नायाब यूनानी और रोमन कला शैली से रू-ब-रू कराता है. प्राचीन शहर जेग्युमा में खुदाई के दौरान निकलीं जिन कलाकृतियों को यहां प्रदर्शित किया, वो दो हजार साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. मोजैक की इन कलाकृतियों को लोग अपने घरों की दीवारें, छत और फर्श आदि सजाने के लिए इस्तेमाल करते थे. हालांकि, ये अद्भुत कलाकारी सदियों तक दुनिया की नजरों से ओझल रही.

यहां तक कि जेग्युमा शहर के लोगों को भी नहीं पता था कि उनके आसपास पुरातात्विक महत्व का एक विशाल और समृद्ध खजाना बिखरा पड़ा है. इनके बारे में 2000 में पता चला तो युद्धस्तर पर संरक्षित करने का कार्य शुरू हुआ. म्यूजियम में जेग्युमा में मिली मोजैक कलाकृतियों के अलावा बड़ी संख्या में खंभों, फव्वारों और मूर्तियों को भी जगह दी गई है. लेकिन यहां आने वाले पर्यटकों को सबसे ज्यादा आकृष्ट करती है जिप्सी गर्ल. 
 
 
मोजैक से बनी जिप्सी गर्ल की आंखें बेहद खूबसूरत हैं. यूं लगता है कि बस अभी बोल देगी. यह तस्वीर किसकी है, इसे लेकर कुछ किवदंतियां प्रचलित हैं लेकिन इसमें कोई दो-राय नहीं दुनियाभर में ख्यात कृति मोनालिसा की तरह इस जिप्सी गर्ल के चेहरे के भाव भी रहस्यमय हैं. भूकंप से गाजियांटेप के इस म्यूजियम को क्षति पहुंची है लेकिन अभी तक इसकी सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई है कि नुकसान कितना बड़ा है.
 
2011 में खुलने के बाद से म्यूजियम बड़ी संख्या में पर्यटकों को लुभाता रहा है. 2021 में यहां करीब 2.42 लाख पर्यटक पहुंचे तो 2022 में पहले 10 महीनों में भी यह संख्या 3.81 का रिकॉर्ड आंकड़ा पार कर चुकी थी. म्यूजियम किस तरह से लोगों के दिलो-दिमाग में बसा है, यह सोशल मीडिया पर पूछे जा रहे सवालों से साफ पता लगता है. भूकंप आने के बाद से तमाम लोग यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि भूकंप के केंद्र के करीब रहे गाजियांटेप में स्थित इस म्यूजियम का क्या हुआ.
 
 
जब अचानक ही हाथ लग गया इतना बड़ा खजाना
जेग्युमा एक प्राचीन हेलेनिस्टिक ग्रीक शहर था, और फिर रोमनों के कब्जे में रहा. यह जगह आज के गाजियांटेप शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर है. माना जाता है कि अलेक्जेंडर द ग्रेट के बाद रोमन साम्राज्य के उत्तराधिकारी बने सेलुकस ने तीन शताब्दी ईसा पूर्व यहां अपना नियंत्रण स्थापित किया था. यह यूफ्रेटस या फरात नदी के नजदीक बसा था, यहां पर नदी का पानी काफी गहरा था और सेलुकस ने ही इस पर एक पुल का निर्माण कराया.
 
पुल से गुजरने के बदले अच्छा-खासा टैक्स वसूला जाता था. रोमनकाल में यह शहर काफी आबाद हो गया और लोग खासे समृद्ध भी होते थे. उन्होंने आलीशान हवेलियां बनवाई और उनकी दीवारों, फर्श और स्नानगृहों की सजावट के लिए इस्तेमाल के साथ मोजैक कला भी फली-फूली. यह शहर कई जंग का गवाह रहा और सातवीं शताब्दी में फारसियों और अरबों के बीच संघर्ष में एकदम नेस्तनाबूद हो गया.
 
सदियों तक लोगों को यहां की कलाकृतियों के बारे में कुछ पता ही नहीं था. जब करीब दो दशक पहले 2000 में फरात नदी पर बाइरेसिक बांध बनाने का काम शुरू हुआ तो खुदाई के दौरान ये कलाकृतियां सामने आईं या यूं कहें कि एक बेशकीमत खजाना हाथ लग गया. इसके बाद इनके संरक्षण के प्रयास शुरू किए. चूंकि जेग्युमा में इतनी कलाकृतियों को सहेजने की जगह नहीं थी, इसलिए इन्हें गाजियांटेप स्थित आर्कियोलॉजी म्यूजियम पहुंचाया गया और फिर 2011 में नवनिर्मित जेग्युमा मोजैक म्यूजियम में प्रदर्शित किया गया. जैसा अमूमन होता है, ऐसी कलाकृतियों की तस्करी आम बात है.
 
1960 के दशक में यहां से कई कलाकृतियां यूरोप, अमेरिका तक पहुंचा दी गई थीं. इसमें जिप्सी गर्ल के नाम से ख्यात कलाकृति के 12 टुकड़े भी शामिल थे, जिन्हें बाद में बॉलिंग ग्रीन यूनिवर्सिटी ने खरीद लिया था. लेकिन मोजैक म्यूजियम बनने और यह साबित होने के बाद कि ये टुकड़े जेग्युमा में मिली जिप्सी गर्ल के ही हैं, आखिरकार दिसंबर 2018 में यूनिवर्सिटी ने इन्हें तुर्की को लौटा दिया. 
 
 
कहीं अलेक्जेंडर की तस्वीर ही तो नहीं है जिप्सी गर्ल!
जेग्युमा में मिली जिप्सी गर्ल को जेग्युमा गर्ल, अवर गर्ल जैसे नामों से भी संबोधित किया जाता है. म्यूजियम में आने के बाद से जिप्सी गर्ल जेग्युमा शहर और तुर्की की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन चुकी हैं. न जाने कितने ही पोस्टरों और बोर्डों में सांकेतिक तौर पर इसे ही प्रदर्शित किया जाता रहा है. इसकी आंखें तो बेहद आकर्षक हैं ही, चेहरे के रहस्यमय भावों की वजह से इसकी तुलना मोनालिसा के साथ भी की जाती है.
 
इसके चेहरे पर खुशी और उदासी की छाया एक साथ नजर आती है. उसके सिर पर हल्के ग्रे और हरे रंग का स्कार्फ बंधा है, लटों में उलझे बाल चेहरे के आगे उड़ते नजर आते हैं. चेहरे पर रंगों के संयोजन को बहुत करीने से उकेरा गया है. एक कान में एक सोने का झुमका भी दिखता है. जो भी इसे देखता है, पहली नजर में शायद एक ही सवाल मन में आता होगा कि आखिर ये किसकी तस्वीर होगी.
 
इस बारे में माना जाता है कि जिप्सी गर्ल के शक्ल में दरअसल भूमि की देवी को उकेरा गया होगा. वहीं ऐसा भी माना जाता है कि यह महान सम्राट सिकंदर या अलेक्जेंडर द ग्रेट की भी हो सकती है. म्यूजियम में ग्रीक और रोमनकाल की मोजैक की कलाकृतियों के अलावा 4 रोमन फाउंटेन, 20 खंभे और चार लाइमस्टोन कलाकृतियां और तांबे की प्रतिमाएं आदि भी हैं.
 
म्यूजिमय में एक पूल के निचले हिस्से वाली कलाकृति ओशिनस एंड टेथिस भी है. ओशिनस यानी समुद्र के देवता और उनकी पत्नी टेथीस को जलीय जीवों के बीच बैठे देखा जा सकता है. इसमें मछली, केकड़े और सांप नजर आते हैं. ग्रीक पौराणिक गाथा में वर्णित अकिलिस भी यहां एक मोजैक कलाकृति में नजर आता है. ऐसा माना जाता है कि अगर ट्राय में अकिलिस हिस्सा नहीं लेता तो यह जंग नहीं जीती जा सकती थी.
 
 
यूनानियों ने की शुरुआत, रोमनकाल में दुनियाभर में पहुंची
रोमन साम्राज्य ने दुनिया के एक बड़े हिस्से पर शासन किया और जहां-जहां रोमन गए, उनके साथ यह कला भी वहां पहुंची. तुर्की के अलावा इटली, फ्रांस, उत्तरी अफ्रीका और सीरिया समेत तमाम देशों में मोजैक कला के निशान मिलते रहे हैं. विभिन्न देशों के म्यूजियमों में इस तरह की कलाकृतियां नजर आती हैं. यह अलग बात है कि एक के बाद एक कई जंग झेलने वाले जेग्युमा शहर में ये सदियों तक जमीन के अंदर छिपी रहीं.
 
वैसे, माना जाता है कि मोजैक का इस्तेमाल करके कलाकृतियां बनाना यूनानियों ने शुरू किया था लेकिन इसे वैज्ञानिक तरह से इस्तेमाल किया जाना तीन शताब्दी ईसा पूर्व रोमनकाल में शुरू हुआ. यूनानी जहां इसके लिए पत्थरों का इस्तेमाल करते थे, रोमन कलाकारों ने रंगबिरंगी डिजाइनें बनाने के लिए पत्थरों के अलावा सेरेमिक या कांच का भी इस्तेमाल किया.
 
मोजैक आर्टिस्ट वैसे तो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पत्थरों का इस्तेमाल करते लेकिन खास रंगों के संयोजन के लिए बाहर से नायाब पत्थर मंगाए जाते. चमकीले नीले और हरे रंगों को उभारने के लिए कांच का इस्तेमाल किया जाता था. पत्थरों और कांच से निर्मित ये कलाकृतियां कितनी टिकाऊ होती थीं, यह तो इसी से साबित होता है कि दो हजार साल तक मिट्टी में दबे रहने के बाद भी उनकी रंगत उसी तरह बरकरार है.
 
पहली शताब्दी के आसपास इटली और फ्रांस में रंगीन की जगह काले-सफेद मोजैक का प्रचलन बढ़ा. उस समय जिस तरह बारीकियों का ध्यान रखा जाता था, वह आश्चर्यचकित कर देता है. हर छोटी-छोटी चीज को उभारने के लिए रंगों के संयोजन का अद्भुत इस्तेमाल किया जाता था. विशेषज्ञों की मानें तो विभिन्न क्षेत्रों में इस कला शैली में थोड़ा-बहुत अंतर नजर आता है, जो अलग-अलग जगहों की अलग-अलग संस्कृतियों को भी दर्शाता है.
 
 
घर-आंगन में लगी कलाकृतियां रुतबे और समृद्धि की प्रतीक 
यह कला दर्शाती है कि आखिरकार प्राचीनकाल में रोमनों की जीवनशैली कैसी थी, वे कैसे रहते थे, कैसे दिखते थे और उन्हें क्या पसंद था या क्या नापसंद था. यह सिर्फ कांच और पत्थरों को तराशकर घर-आंगन सजाने तक ही केंद्रित नहीं था. बल्कि इसका परिचायक भी था कि संबंधित घर में रहने वाला कितना समृद्ध है और समाज में कैसा रुतबा रखता है. धनाढ्य रोमनों को अपने घरों की दीवारों के अलावा फर्श पर मोजैक का काम कराना बहुत भाता था.
 
साथ ही उनकी कोशिश होती कि उसमें ऐसी आकृतियां उकेरी जाएं जो उनके आला दर्जे को दिखाए. कुछ लोग खुद को पढ़ा-लिखा दिखाने के लिए पौराणिक गाथाओं वाले चरित्रों को बनवाते थे तो सार्वजनिक तौर पर खेलों से जुड़े लोग अपनी इसी तरह की अभिरुचियों का प्रदर्शन पसंद करते थे. इसमें जंगली जानवरों की लड़ाई काफी ज्यादा पसंदीदा विषय होता था. जानवरों की हिंसक लड़ाई, समुद्री जीव, अन्य वन्य जीव और पौराणिक देवी-देवताओं को उकेरे जाने के अलावा इन कलाकृतियों में सामान्य जीवन जीने वाले लोगों की भी झलक मिलती है.
 
 
सिर्फ तुर्की ही नहीं अन्य देशों में भी मिली मोजैक की कलाकृतियां दिखाती हैं कि समय के साथ इनमें बदलाव भी होते रहे हैं. पसंद-नापसंद में बदलाव के साथ खासकर समृद्ध लोग अपने घरों में लगी मोजैक की कृतियों में छोटे-मोटे बदलाव भी कराते रहते थे. कई बार पुरानी मोजैक हटाए बिना ही उसके ऊपर नई कलाकृति बना दी जाती थी. बहरहाल, भूमध्य सागर और उत्तरी अफ्रीका में मोजैक की तमाम कलाकृतियां अभी भी अपने मूल रूप में मौजूद हैं और उन्हें सहेजने का काम समय-समय पर होता रहता है.