मोमिन कॉन्फ्रेंस के संस्थापक और आजादी के दीवाने अब्दुल कयूम अंसारी को याद रखना जरूरी

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 09-07-2022
स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल कयूम अंसारी
स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल कयूम अंसारी

 

डॉ अभिषेक कुमार सिंह / पटना

देश अपनी आजादी के अमृत महोत्सव काल में है. ऐसे में, उन महत्वपूर्ण लोगों को याद करना जरूरी है, जिन्होंने इस देश की आजादी के लिए बड़ा योगदान दिया. ऐसे ही नामों में एक हैं, अब्दुल कयूम अंसारी. अब्दुल कयूम अंसारी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने सामाजिक संगठन मोमीन कॉन्फ्रेंस की अगुआई भी की. लेकिन आज उन्हें उनके ही संगठन ने भुला दिया है.

अब्दुल कयूम अंसारी ने देश की आजादी की लड़ाई अहम भूमिका निभाई. वह खुद लोगों के बीच जाते थे और देश की आजादी के लिए जागरूकता फैलाते थे. अब्दुल कयूम अंसारी का जन्म बिहार के डेहरी ऑन सोन में 1 जुलाई, 1905 को हुआ था. उनका परिवार बेहद साधारण था.

स्थानीय स्तर पर अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद अब्दुल कयूम अंसारी ने उच्चतर शिक्षा के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय का रुख किया. महज 16 की उम्र में उन्हें अंग्रेजी सियासत के विरुद्ध प्रदर्शन करने के जुर्म में जेल जाना पड़ा था. 1919 में जब महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का आह्वान किया तो उसमें उनकी भूमिका काफी सक्रिय रही. 1920 में राष्ट्रपिता गांधी जी के आह्वान पर, अब्दुल कयूम अंसारी ने बिहार राज्य से असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया.

1927 में उन्होंने साइमन कमीशन के भारत आगमन पर जमकर विरोध प्रदर्शन किया. 1937-38 में अब्दुल कय्यूम अंसारी ने मोमिन आंदोलन की शुरुआत की. 1940 में उन्होंने मुस्लिम लीग की अलगाववादी नीतियों और पाकिस्तान की मांग का जमकर विरोध किया. उन्होंने 1942 में गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका निभाई.

भारत के बंटवारे का उन्होंने विरोध किया था. अब्दुल कय्यूम अंसारी ने 1947 में भारत के बंटवारे की मुखालफत की और मुस्लिम समुदाय से अपील की कि वे भारत को छोड़कर पाकिस्तान न जाएं.

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत बिहार में जब श्रीकृष्ण सिंह की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया गया. 1953 में आल इंडिया बैकवर्ड क्लास कमीशन का गठन करवाना अंसारी का एक बहुत बड़ा कदम था. अपने जीवन काल में उन्होंने देश के कमज़ोर वर्गों के विकास के लिए बहुत जोर दिया. अब्दुल कय्यूम अंसारी भारत के हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे.

अब्दुल कय्यूम अंसारी ने 18 जनवरी, 1973 को अंतिम सांस ली, वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. भारतीय डाक सेवा ने 2005 में उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया. कयूम अंसारी ने शुरुआत से ही जिन्ना की टू-नेशन थ्योरी का विरोध किया.

मुस्लिम लीग एक अलगाववादी संगठन है, उनका ऐसा मानना था. अब्दुल कयूम अंसारी हमेशा भारत की एकता और अखंडता पर जोर देते रहे. उनका मानना था कि भारत माता की दो आंखें है हिंदू और मुस्लिम. दोनों आंखें हमेशा एक जैसी रहनी चाहिए ताकि देश की अखंडता और एकता बचाई जा सके.

इनके नेतृत्व में पहली बिहार विधानसभा चुनाव में कई मोमिन कॉन्फ्रेंस के नेता चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचे. मोमिन कॉन्फ्रेंस की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने इनका विलय अपनी पार्टी में कर लिया.

बाद में, मोमिन कॉन्फ्रेंस को सामाजिक सरोकार का संगठन कांग्रेस पार्टी द्वारा बना दिया गया. आगे चलकर आज भी यह संगठन पूरे देश में हमारे समाज के दबे-कुचले पिछले वर्गों के उन्नति-उत्थान के लिए कार्य कर रहा है. आज अगर उसी मोमिन कॉन्फ्रेंस की बात करें तो कई नेता लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद और कई राजनैतिक पदों पर आसीन रहे,  लेकिन संसद और विधानसभा में आसीन होते ही उस महान स्वतंत्रता सेनानी और मोमिन कॉन्फ्रेंस की बुनियाद रखने वाले अब्दुल कयूम अंसारी की कुर्बानी को विस्मृत कर दिया गया.