क्या कुरान में तुलसी का जिक्र है ? जानें, तुलसी विवाह कब और कैसे ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 18-11-2023
Tulsi Vivah
Tulsi Vivah

 

राकेश चौरासिया

सनातन वैदिक हिंदू धर्म में श्री तुलसी जी के आध्यात्मिक महत्व के अनेक संदर्भ मिलते हैं. वे न केवल श्री हरि की पत्नी के रूप प्रतिष्ठित हैं, बल्कि आयुर्वेद में उनके गुणों का भूरि-भूरि बखान किया गया है. वे आध्यात्मिक सुख के अतिरिक्त आरोग्य प्रदान करने वाली कही गई हैं. दिव्य स्त्रैण ऊर्जा की प्रतीक तुलसी जी को अरबी में रेहान कहा जाता है. इस्लाम में भी तुलसी जी को जन्नती बूटी कहा गया है. यहां तक कि कुरान करीम की दो आयतों में भी तुलसी जी यानी रेहान का जिक्र है. इस बार तुलसी विवाह 2023 भारतीय उप महाद्वीप में 24 नवंबर को आयोजित किया जाएगा.

तुलसी विवाह 2023 कब है?

  • हिंदू त्योहारों में तुलसी विवाह महत्वपूर्ण त्योहार है, जो दीपावली के बाद मनाया जाता है. इस वर्ष यह त्योहार 24 नवंबर को मनाया जाएगा. यह दिन भगवान विष्णु और तुलसी जी के पवित्र मिलन का प्रतीक है.
  • तुलसी विवाह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के बारहवें दिन आयोजित किया जाता है.
  • इस दिन को शुक्ल पक्ष द्वादशी कहा जाता है.
  • कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि 23 नवंबर 2023 को रात्रि 09.01 बजे से प्रारंभ होगी.
  • कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि 24 नवंबर 2023 को शाम 07.06 बजे समाप्त होगी.
  • इसलिए, उदयातिथि के अनुसार 24नवंबर 2023 को शाम 07.06 बजे से पहले तुलसी विवाहि आयोजित जाएगा.
  • तुलसी विवाह में तुलसी जी और श्री हरि के प्रतीक शालिग्राम का गठबंधन किया जाता है.

तुलसी विवाह की विधि क्या है?

  • तुलसी विवाह सामान्यतः सायंकालीन बेला में आयोजित होता है.
  • तुलसी विवाह के लिए चरणामृत और पंजीरी का प्रसाद बनाया जाता है. उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर सूखे मेवे या मीठी रोटियां बांटी जाती हैं. हर क्षेत्र में परंपरा के अनुसार प्रसाद बनता है. किंतु आवश्यक रूप से शालिग्राम और तुलसी जी को मिठाईयों का भोग लगता है.
  • तुलसी विवाह सर्वाधिक पुरानी तुलसी जी का किया जाता है, जो कम से कम एक वर्ष तो पुराना अवश्य हो.
  • तुलसी मंडप को नानाप्रकार सज्जा की जाती है. अब बिजली की लड़ियां भी लगाई जाती हैं.
  • तुलसी जी के तने को हल्दी लेप चढ़ाया जाता है.
  • तुलसी जी का नववधु की भांति सोलह श्रंगार किया जाता है. मंगलसूत्र भी बांधा जाता है.
  • तुलसी जी को दुल्हन और शालिग्राम को दूल्हा मानकर उनका लाल चुनरी से गठबंधन किया जाता है.
  • घी के दीपक से आरती की जाती है.
  • तुलसी मंडप में गन्ना, इमली और आंवल के फल या शाखाएं अर्पित की जाती है.
  • तुलसी विवाह की कहानी सुनी जाती है.
  • तुलसी जी का घर के बुजुर्ग दंपति द्वारा कन्यादान किया जाता है. उन्हें उपवास भी रखना होता है.
  • विवाह संपन्न होने पर लोग विशेषकर नवविवाहित जोड़े पर फूल और अक्षत की वर्षा करते हैं.
  • इस अवसर पर बंधु-बांधवों को पड़ोसियों सहित आमंत्रित किया जाता है.
  • महिलाएं भजन और मंगल गीत गाती हैं.
  • अंत में प्रसाद वितरण किया जाता है.

तुलसी पूजा मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमार्चि-तासि मुनीश्वरैः

नमो तुलसी पापं हर हरिप्रिये॥

तुलसी महारानी नमो-नमो,

जग की पटरानी नमो-नमो. 

तुलसी विवाह के मनोरथ:

  • तुलसी विवाह के आयोजन से दांपत्य जीवन सौहार्दपूर्ण और सुखद रहता है
  • समृद्धि और प्रचुरता बनी रहती है
  • परिवार के सदस्यों को उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्राप्त होती है
  • यह त्योहार सर्व बाधा निवारक उपय है.

तुलसी का जिक्र कुरान में है?

एवीजेड मुजफ्फरपुरी ने रेहान यानी तुलसी के बारे में लिखे एक ब्लॉग में बताया, ‘‘पवित्र कुरान में अनेक ऐसे वृक्ष, पौधे और फल इत्यादि का वर्णन आता है, जिसमें इंसानों के लिये फायदे ही फायदे हैं. कुरान में वर्णित इन बहुपयोगी पौधों में ‘तुलसी‘ का भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. कुरान में तुलसी का वर्णन दो स्थानों पर आया है, सूरह रहमान की 11वीं और सूरह वाकिया की 89वीं आयत में. सूरह रहमान की आयत में इस धरती पर पाये जाने वाले अल्लाह की नेमतों में तुलसी का नाम है, तो सूरह वाकिया में इसका वर्णन ‘जन्नती पौधे’ के रुप में हुआ है. यानि तुलसी उन बिशिष्ट पौधों में शामिल है, जो इस धरती पर भी है और जन्नत में भी है. उन्होंने कहा कि इसी से इस पौधे की फजीलत का पता चलता है. तुलसी को यह आला मुकाम हासिल हो भी क्यों न, क्योंकि इससे इंसान को तो हर तरह का फायदा तो पहुंचता ही है साथ ही यह पर्यावरण को भी स्वच्छ रखने में कारगर है.

कुरान के सूरह रहमान में तुलसी का जिक्रः

‘‘वल्अर्-ज व-ज-अहा लिल अनामि, फीहा फाकि हतुंव् वन्नख्लु जातुल् अक्मामि, वल्हब्बु जुल्-अस्फि वर्-रैहान, फबि-अय्यि आलाई रब्बिकुमा तुकज्जिबान !’’ यानि ‘और उसी ने खल्कत के लिये जमीन बिछायी, उसमें (धरती) मेवे और गिलाफ वाली खजूरें हैं, और भुस के साथ अनाज और रैहान (तुलसी), तो ऐ जिन्न और इंसान तुम दोनों अपने रब की कौन-2सी नेमतों को झुठलाओगे?‘ (सूरह रहमान, 10-12)

कुरान के सूरह वाकिया में तुलसी का जिक्रः

इसी तरह सूरह वाकिया में तुलसी का वर्णन जन्नती पौधे के रुप में है. ‘‘अम्मा इन् का-न मिनल मुकर्रबीन, फरौहुव्-व रैहानु व्-व जन्नतु नअीम.‘‘ अर्थात, ‘‘तो जो खुदा के निकटवर्ताी हैं (उनके लिये) आराम, खुश्बूदार फूल और रैहान (तुलसी) है.‘‘ (सूरह वाकिया, 88-89)

राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के मुस्लिम कार्यकर्ता अब तुलसी जी को लेकर मुस्लिम परिवारों के बीच जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं. वे मुस्लिम परिवारों में तुलसी के पौधे भेंट करते हैं. ताकि मुस्लिम परिवार भी तुलसी जी के औषधीय लाभ उठा सकें.

तुलसी कितनी उपयोगी है?

अंग्रेजी में तुलसी को सेक्रेड बासिल और उर्दू व अरबी में इसे ‘रैहान’ कहा जाता है. यह खेतों, बगीचों, परित्यक्त क्षेत्रों और कब्रिस्तानों में जंगली रूप से उगते हुई पाई जाती हैं. कुछ लोग औषधीय उपयोग के लिए इसकी खेती अपने बगीचों में भी करते हैं.

तुलसी पत्तियां छोटी-छोटी ग्रंथियों से युक्त सरल और हरी होती हैं, जो सुगंधित वाष्पशील तेल से भरी होती हैं, जिनमें बहुत सुखद गंध होती है. तुलसी मच्छरों और घरेलू मक्खियों को दूर भगाती है. छोटी-मोटी बीमारियों के लिए घरेलू उपचार प्रदान करने के लिए इसे घर के अंदर और बाहर, फूलों के गमलों में, फूलों की क्यारियों में या बॉर्डर प्लांट के रूप में आसानी से उगाया जा सकता है. सर्दी, खांसी, जुकाम की तो इसे रामबाण दवा माना जाता है. इसके अलावा मान्यता है कि यह चर्मरोग और कैंसर रोधी भी है.

प्राचीन आयुर्वेदिक और तिब्ब-ए-यूनानी उपचार प्रणालियों में, विभिन्न दवाओं के लिए कई महत्वपूर्ण तत्व तुलसी के पौधे की जड़ों, अंकुरों, छालों, कलियों, फूलों की पंखुड़ियों, फल, गोंद और बीजों से प्राप्त किए जाते हैं. इनका उपयोग ताजा और सूखे दोनों रूप में किया जाता है. माना जाता है कि तुलसी की चाय का अर्क सामान्य सर्दी, गले की खराश, गैस्ट्रिक विकारों और कई त्वचा समस्याओं के लिए एक उत्कृष्ट उपाय है. तुलसी चाय का स्वाद पारंपरिक हरी चाय की तरह होता है और यह किसी के दैनिक आहार के लिए एक आदर्श अतिरिक्त है.

भारत के प्रख्यात पादप वैज्ञानिक जे.एफ. दस्तूर के अनुसार, ‘‘तुलसी की पत्तियाँं वातनाशक, उत्तेजक, शोथहर, सर्दी रोधी, मूत्रवर्धक और सुगंधित हैं और मलेरिया, बच्चों में गैस्ट्रिक रोगों और यकृत विकारों के मामलों में इसका काढ़ा या आसव देने की सलाह दी जाती है.

दस्तूर का मानना है कि सुबह-सुबह या भोजन के बीच काली मिर्च के साथ ताजी तुलसी की पत्तियां मलेरिया के खिलाफ एक प्रभावी रोगनिरोधी है. वयस्कों के लिए वह सप्ताह में दो बार तीन काली मिर्च के साथ पांच ताजी तुलसी की पत्तियों की एक खुराक का सुझाव देते हैं. क्रोनिक बुखार, रक्तस्राव, पेचिश, अपच और उल्टी के इलाज में भी पत्तियों के रस की सिफारिश की जाती है.

हाल के कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यूजेनॉल की उच्च सांद्रता के कारण तुलसी में दर्द कम करने वाले गुण भी हो सकते हैं. ऐसा माना जाता है कि यह मधुमेह के इलाज में फायदेमंद है, क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करती है.

 

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