Hindustan Meri Jaan : उन्होंने आजाद हिंदुस्तान में ली आखिरी सांस

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 14-08-2022
उन्होंने आजाद हिंदुस्तान में ली आखिरी सांस
उन्होंने आजाद हिंदुस्तान में ली आखिरी सांस

 

harjinderहरजिंदर
 
वे आजादी की जंग के सबसे ओजस्वी वक्ता थे. कहते हैं पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन के नायक अजीत सिंह जब भाषण देने के लिए खड़े होते तो दसों दिशाएं शांत हो जाती थीं. लोग खुद पर से नियंत्रण खो बैठते थे और उस धारा में बह जाते जो मंच से सरदार अजीत सिंह बहा रहे होते.

वे अपनी बात को पंजाब के किसानों के दुख दर्द से शुरू करते, फिर इटली के क्रांतिकारी मैजिनी और उसके शिष्य गैरीबाल्डी के उदाहरण देते और अंत में वे बाल गंगाधर तिलक का मूल मंत्र सबको याद दिलाते- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा.
 
स्वतंत्रता की अनकही कहानी

जब वे पंजाब की दारुण कथा कहते तो हर तरफ आंसुओं का सैलाब बह निकलता, जब वे क्रांति की बातें करते तो सभी में बैठे लोगों की भुजाएं फड़कने लगतीं. यह भी कहा जाता था कि अंग्रेजों को उतना डर किसी से नहीं लगता जितना कि अजीत सिंह के भाषणों से लगता है.
 
उनके भाषणों का खौफ इतना बढ़ गया था एक दिन मजबूर होकर पंजाब के गवर्नर लार्ड इब्बटसन ने वायसराय लार्ड हार्डिंग को एक टेलीग्राम भेजा. उसमें लिखा था.
 
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पंजाब में अजीत सिंह और उनकी पार्टी के नेतृत्व में बगावत होने वाली है. इसे रोकने के लिए तुरंत इंतजाम करने होंगे। इतना ही नहीं लंदन की ब्रिटिश संसद में लार्ड मैकाले ने बयान दिया.
 
एक मार्च 1907 से एक मई 1907 तक पंजाब में इस क्रांतिकारी नेता ने 28 सभाओं को संबोधित किया. इनमें से सिर्फ पांच में ही किसानों की समस्या पर विचार हुआ, बाकी सब में बगावत के ही भाषण थे.
 
सरकार को लगता था कि अगर अजित सिंह का मुंह बंद हो जाए तो सारी समस्या खत्म हो सकती है. लेकिन वे गलत थे. एक तो समस्या जमीन पर थी. उसका मूल कारण अंग्रेजों के बनाए तीन कृषि कानून थे जो पंजाब के किसानों फटेहाल बना रहे थे.

अजीत सिंह ने उन किसानों के गुस्से को संगठित करने का काम किया था. दूसरे तब तक अजीत सिंह की छवि लोगों के दिल दिमाग तक बस चुकी थी सिर्फ उनका मुंह बंद कराने से काम चलने वाला नहीं था.
 
यही हुआ भी। जब अजीत सिंह को लाला लाजपत राय के साथ गिरफ्तार करके बर्मा की मांडले जेल भेजा गया तो आंदोलन और ज्यादा भड़क उठा. बात इतनी बढ़ गई कि अंग्रेजों को तीनों कानून रद्द करने पड़े. इसके बाद सभी नेताओं को भी रिहा कर दिया गया.
 
वापस पंजाब पहुंच कर अजीत सिंह ने दुनिया भर में फैले भारतीयों को संगठित करके देश के बाहर से अंग्रेजों पर दबाव बनाने की रणनीति आजमाई. वे पहले ईरान गए और फिर तुर्की होते हुए यूरोप पहंुच गए.
 
इस दौरान वे दुनिया भर के बड़े नेताओं से मिले. इधर भारत में वे अपने भतीजे सरदार भगत सिंह से भी संपर्क बनाए हुए थे.अंग्रेजों में उनका डर इतना बैठ गया था कि वे जहां भी जाते जासूस उनका पीछा करते और राजनयिक संबंधित देशों से उन्हें गिरफ्तार करने की मांग करते। लेकिन इस सबसे से अजीत सिंह की गतिविधियां नहीं रुकी.

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब दुनिया के हालात काफी बदल गए थे तो ब्रिटेन ने उन्हें पहले फ्रांस और फिर जर्मनी की जेल में पहुंचा दिया. जब वे जर्मनी की जेल में थे तो उनका स्वास्थ्य काफी खराब हो गया.
 
ajit
 
यह खबर भारत में जवाहर लाल नेहरू को लगी तो उन्होंने अजीत सिंह को रिहा करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. मार्च 1947 में रिहा होने के बाद वे कराची होते हुए लाहौर पहुंचे और फिर इलाज के लिए दिल्ली आ गए.
दिल्ली में नेहरू के घर पर ही उनका इलाज चला। सेहत फिर भी नहीं सुधरी तो डॉक्टरों ने किसी ठंडी जगह जाने की सलाह दी.उन्हें आज के हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल डलहौजी भेज दिया गया.
 
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15 अगस्त 1947 की आधी रात को जब भारत को आजादी मिली तो उसकी अगली सुबह ही उन्होंने हमेशा के लिए आंखे मूंद ली.आज जब देश स्वतंत्रता की 75वीं जयंती मना रहा है तो सरदार अजीत सिंह की 75वीं पुण्यतिथि भी है.
 
समाप्त..... 

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )