हरजिंदर
जब बीसवीं सदी शुरू हुई तो भारत की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी.एक तरफ प्लेग की महामारी ने समाज को कईं तरह से जर्जर कर दिया था.बाकी कसर ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने निकाल ली थी.परंपरागत उद्योग धंधे लगातार नष्ट किए जा रहे थे.लैंड एक्ट जैसे कानून सभी राज्यों में लागू किए गए थे और इन सबका एक ही मकसद था खेती से ज्यादा से ज्यादा राजस्व वसूलना.
पंजाब जैसे राज्यों में जहां कृषि उत्पादन काफी ज्यादा था वहां एक तरफ तो उसके लिए नहरों का जाल बिछाया गया.दूसरी तरफ नहरों से सिंचाई पर टैक्स लगा दिया गया.इतना ही नहीं नहरों के किनारों के खेतों के लिए कुएं और रहट वगैरह से सिंचाई पर रोक लगा दी गई.इन कदमों से खेती घाटे का सौदा बन गई.
अब पंजाब के नौजवानों के सामने दो ही विकल्प थे.या तो वे फौज में भर्ती हो जाएं जहां उन्हें एक निश्चित तनख्वाह मिलती रहेगी.या फिर अपनी किस्मत आजमाने के लिए विदेश चले जाएं.यूरोप महंगा था और वहां अवसर भी सीमित होते जा रहे थे.
स्वतंत्रता की अनकही कहानी-6
इसके मुकाबले अमेरिका और कनाडा जाना सस्ता था और वहां के खुले समाज में मौके भी काफी थे.कनाडा को तो रेल लाइन बिछाने से लेकर बहुत से कामों के लिए मजदूरों की भी जरूरत थी.बहुत से लोगों ने तो अमेरिका जाकर खेती किसानी भी शुरू कर दी.
सिर्फ पंजाब से ही देश के अन्य हिस्सों से भी लोग अमेरिका और कनाडा पहुंच रहे थे.इनमें किसान ही नहीं पढ़े लिखे लोग भी थे.जैसे दिल्ली से लाल हरदयाल गए, भोपाल से मौलाना मोहम्मद बरकतुल्लाह गए, बंगाल से रास बिहारी बोस और तारक नाथ दास, पुणे से विष्णु गणेश पिंगले वगैरह देश भर से वहां पहुंचे थे.बहुत से छात्र भी वहां पढ़ाई के लिए पहुंच रहे थे.
अभी तक भारत के बाहर यूरोप भारतीय क्रांतिकारियों का केंद्र था अब धीरे-धीरे अमेरिका इसका केंद्र बनने लग गया.अमेरिका में भारत की राष्ट्रवादी चेतना का प्रसार सबसे पहले तब शुरू हुआ जब स्वामी रामतीर्थ अमेरिका की यात्रा पर गए.
एक बार जब यह शुरू हुआ तो लगातार बढ़ता ही गया.दिलचस्प बात यह है कि इसमें भारतीयों की सबसे ज्यादा मदद की आयरिश विद्रोहियों ने.आयरलैंड में ब्रिटिश दमन के कारण वहां के बहुत से विद्रोही नेता भाग कर अमेरिका आ गए थे और वे कईं मौकों पर भारतीय राष्ट्रवादियों के साथ खड़े दिखाई दिए.
इन लोगों ने सबसे पहले कईं छोटे-छोटे संगठन बनाए लेकिन इसके बाद जो संगठन बना उसका नाम था- गदर पार्टी.15 जुलाई 1913 को ओरेगान में गदर पार्टी की स्थापना हुई.सोहन सिंह भाकना को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया.जल्द ही सनफ्रैंसिस्को में इसका मुख्यालय भी बना दिया गया.यह पार्टी भारत में लोकतंत्र स्थापित करना चाहती थी और इसने भारत के संविधान का मसौदा तक तैयार किया था.
गदर पार्टी ने बहुत सारे जलसे किए, कईं रिसाले निकाले.इन अखबारों और पर्चों को तरह-तरह से भारत भेजा जाता था.कोशिश यह थी कि किसी तरह से भारत में भी संगठन खड़ा किया जाए.भारत में भले ही काम धीमा रहा हो लेकिन जल्द ही अमेरिका में गदर पार्टी भारतीयों का सबसे बड़ा संगठन बन गई.
इतना बड़ा कि जर्मनी तक को लगा कि उनकी ताकत का लाभ उठाया जा सकता है.कुछ ही समय में पार्टी का नेटवर्क अमेरिका और कनाडा के अलावा मैक्सिको, जर्मनी, चीन, जापान, थाईलैंड, सिंगापुर, मलय और दक्षिण अफ्रीका तक फैल गया.
पहला विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था और इस दौरान मौके का फायदा उठाकर गदर पार्टी ने 1917 में भारत में बड़े पैमाने पर बगावत करने की योजना बनाई.इसके लिए पार्टी के कईं नेता भारत आ गए.यह योजना में जर्मनी उनके साथ था.
जर्मनी ने इस लड़ाई के लिए दो लाख डाॅलर कीमत के छोटे हथियार दिए.ये हथियार एनी लार्सन नाम के एक जहाज पर लाद कर बर्मा भेजे गए.इसके बाद इन्हें तस्करी से भारत पहंुचाने की योजना थी.लेकिन बीच में ही यह जहाज पकड़ लिया गया और सारी योजना का भंडाफोड़ हो गया.
इस योजना को बाद में हिंदू जर्मन कास्पिरेसी कहा गया और अमेरिका में इसके लिए काफी लंबा मुकदमा चला.इसे तब अमेरिका के इतिहास का सबसे महंगा मुकदमा भी कहा गया था.पूरी योजना में सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि योजना अमेरिका में जर्मनी की मदद से बनी थी.विश्वयुद्ध में अमेरिका और जर्मनी एक दूसरे के शत्रु देश थे। और यह योजना जिस ब्रिटेन के खिलाफ थी वह युद्ध में अमेरिका का दोस्त था.
इस योजना के तहत जो लोग भारत में पकड़े गए उन पर लाहौर में मुकदमा चला.उसे लाहौर कांस्पिरेसी केस कहा गया.291 लोगों पर मुकदमा चला। 42 को फांसी दे दी गई.114 को आजीवन कारावास में भेज दिय गया और 93 लोगों को अलग-अलग अवधि की सजा मिली.
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आजादी के बाद पंजाब में गदर पार्टी के लोगों को काफी सम्मान से देखा जाता था.वे तब तक बूढ़े हो चुके थे और उन्हें गदरी बाबा कहा जाता था.यह एक ऐसी कोशिश थी जो भले ही सिरे न चढ़ी हो लेकिन इसने बता दिया कि आजादी के लिए भारत के लोग किस हद तक जा सकते हैं.
जारी.....
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )