हरजिंदर
जब भी हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई की बात होती है तो इतिहासकार आमतौर पर इसकी शुरुआत 1857से करते हैं.1857की क्रांति अंग्रेजों के खिलाफ बहुत बड़े पैमाने पर हुई शायद सबसे पहली बड़ी बगावत भी थी.लेकिन यह पहली बगावत नहीं थी.
पहली बगावत तो इससे चार दशक पहले ही शुरू हो चुकी थी.और जब 1857का स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ तब तक या उसके बहुत बाद तक यह जारी रही.यह था 1818 में शुरू हुआ भील विद्रोह जिसका समाधान अंग्रेज सबसे लंबे समय तक नहीं नहीं निकाल पाए.
भील एक ऐसी जनजाति है जो आज भी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कईं इलाकों में बसी हुई है.उनकी कुछ आबादी पूर्वोत्तर भारत में पाई जाती है.भील लोग सदियों से अपने इलाके में शांति के साथ रहते रहे हैं.
स्वतंत्रता की अनकही कहानी-5
जंगल ही उनका घर हैं और जंगल ही उनका सारा संसार.भील अपने जीवन की कल्पना इन जंगलों के बिना नहीं कर सकते.इसलिए पूरे इतिहास में जब भी किसी ने इन जंगलों पर कब्जा जमाने के प्रयास किए भीलों ने उसे न सिर्फ कड़ी टक्कर दी बल्कि कईं सबक भी सिखाए.
अंग्रेजों के पहले यह कोशिश अकबर के समय की गई और इस इलाके में मुगल सेना को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था.उनकी बहादुरी से महाराणा प्रताप इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अपनी फौज में भीलों को विशेष जगह दी थी.बाद के दौर में राजपूताना की तकरीबन सभी सेनाओं में भील सैनिकों का सबसे प्रमुख स्थान होता था.
देश की बागडोर जब ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में आई तो उसने ये सारे समीकरण बदल डाले.स्थानीय राजाओं की सेनाओं को भंग कर दिया गया और युद्ध का प्रशिक्षण पाए हुए ये सैनिक बेरोजगार होकर फिर जंगलों में लौट गए.
हालांकि इससे कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं पड़ा.वे जंगल इस पूरी आबादी का पेट पालने में समर्थ थे.मुश्किल तब खड़ी हुई जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके जंगलों से छेड़छाड़ शुरू की.भीलों के लिए वे जंगल ही उनका सब कुछ थे जबकि कंपनी के लिए वे सिर्फ संसाधन भर थे.कंपनी बड़े पैमाने पर जंगलों के उत्पादों का कारोबार करना चाहती थी.
धीरे-धीरे प्रशासनिक नियम कड़े किए गए और भील समुदाय से जंगल के सभी अधिकार छीन लिए गए.ऐसी नियम कायदे बनाए गए कि सरकार किसी भी आदिवासी से जबरन उसकी मर्जी के खिलाफ जाकर भी काम करवा सकती थी.
उनके लिए यहां तक जंगल से अपनी जरूरत का सामान लाने पर भी पाबंदी लगा दी गई.वे वहां न लकड़ियां बीन सकते थे और न घास काट सकते थे.जनजातियों के शराब बनाने पर भी रोक लगा दी गई क्योंकि सरकार का मकसद शराब को राजस्व का बड़ा स्रोत बनाना था.हालांकि इस इलाके के कुछ हिस्से में अंग्रेजों ने जंगल काट कर अफीम की खेती भी शुरू करवा दी.वहां अफीम के व्यापारी सक्रिय हुए तो तमाम दूसरी बुराइयां भी आने लगीं.
इसका विरोध शुरू हुआ तो पहले तो इस पर ध्यान नहीं दिया गया.यह भी सोचा गया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के पास इतनी ताकत है कि वह इन जनजातियों को आसानी से दबा देगी.लेकिन जल्द ही इस विरोध ने इतना बड़ा आकार ले लिया कि कंपनी को बड़े पैमाने पर अपनी फौज इन जंगलों में भेजनी पड़ी.
हालांकि इस फौज के पास उस दौर की सबसे अच्छी बंदूकें थीं लेकिन पहाड़ों पर छुपे आदिवासियों के तीरों के सामने अक्सर वे बेकार ही साबित होती थीं. कारोबार के चक्कर में ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक पूरे इलाके को अपना दुशमन बना लिया था.
यह ठीक है कि भीलों का यह विद्रोह किसी बहुत बड़े तख्ता पलट की स्थिति में नहीं था लेकिन यह एक ऐसा सिरदर्द बन गया जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद ब्रिटिश सरकार को भी भुगतना पड़ा.
उनके लिए परेशानियां किस तरह से खड़ी होती थीं इसे हम कैप्टन हेनरी बोडेन स्मिथ के उदाहरण से समझ सकते हैं.वे बंगाल नेटिव इन्फैंटरी की 37वीं रेजीमेंट के अधिकारी के तौर पर नीमच में तैनात थे.अक्तूबर 1833में यह खबर आई कि भील आदिवासियों ने एक अफीम व्यापारी को मार गिराया है.
यह भी पता चला कि उसका हत्यारा बांसवाड़ा के घने जंगल में एक गांव में छुपा हुआ है.उन्होंने अपने दल बल के साथ उस गांव को घेर लिया.इधर से गोलियां चलीं और उधर से तीर.दोनों तरफ से कईं लोग घायल हुए.आरोपी घायल हो चुका था उसे गिरफ्तार कर लिया गया, उसके अलावा 20अन्य लोगों को भी हिरासत में लेकर पुलिस बल वहां से चल पड़ा.
रास्ते में पहाड़ों के बीच एक संकरा सा रास्ता था.कटे हुए पेड़ डालकर इस रास्ते को रोक दिया गया था.जब तक वे पूरा माजरा समझ पाते पता पड़ा कि भील उन्हें चारों तरफ से घेर चुके हैं.इस बार उनकी बंदूके काम नहीं आईं। भीलों ने तकरीबन सभी को घायल किया और बंदियों को छुड़ाकर ले गए.दो तीर कैप्टन स्मिथ के सिर पर लगे और कुछ ही समय बाद उनका निधन हो गया.
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इस क्षेत्र का पूरा इतिहास ऐसी कहानियों से भरा पड़ा है. 1872 में ब्रिटिश सरकार ने एक कानून पास किया जिसमें कुछ जनजातियों को जरायम पेशा यानी अपराधी प्रवृत्ति की घोषित कर दिया.इन जनजातियों में भील भी शामिल थे.इस कानून से सरकार को जनजातियों के दमन का और अधिकार मिल गया.लेकिन भीलों के विद्रोह को दबाने में न ऐसे कानून किसी काम आए और न ही यह दमन.
जारी.....
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )