तुरंगजई के हाजी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व किया

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 03-08-2024
Haji of Turangzai led the Indian revolutionary movement against the British
Haji of Turangzai led the Indian revolutionary movement against the British

 

साकिब सलीम

मई 1930 में, यूनाइटेड प्रेस ने रिपोर्ट किया, "ब्रिटिश सैनिकों और बमबारी करने वाले दस्तों के मोबाइल स्क्वाड्रन आज अफगान आदिवासी नेता हाजी तुरंगजई पर हमला करने के लिए आगे बढ़े, जो पेशावर के पास अपने सैनिकों के साथ डेरा डाले हुए थे." उसी वर्ष अगस्त में, यह रिपोर्ट किया गया, "भारतीय सीमा पर आज वर्षों में सबसे बड़ा आक्रमण हुआ.हजारों जंगली अफगान आदिवासी पेशावर और अन्य सीमावर्ती शहरों के खिलाफ खैबर दर्रे के माध्यम से आगे बढ़ने के लिए एकत्र हुए.

शक्तिशाली विद्रोही नेता, तुरंगजई के हाजी के नेतृत्व में, जंगली योद्धा भारत के मैदानों के ऊपर पहाड़ियों में बड़ी संख्या में इकट्ठा हो रहे थे."यूनाइटेड प्रेस ने 10 मार्च 1932 को रिपोर्ट की, "आज बॉम्बे में रिपोर्ट में कहा गया कि बुजुर्ग सरदार तुरंगजई की कमान में 40,000 आदिवासी पेशावर की ओर मार्च कर रहे,ताकि भारत सरकार से महात्मा गांधी को जेल से रिहा करने का आग्रह किया जा सके.

रिपोर्ट में कहा गया कि आदिवासी पेशावर के पास पहाड़ी इलाकों से रॉयल एयर फोर्स के विमानों पर गोलीबारी कर रहे थे." तुरंगजई का यह हाजी कौन है? अंग्रेज उससे क्यों डरते थे? हमें अपनी पाठ्यपुस्तकों में उसका नाम क्यों नहीं मिलता ? तुरंगजई के हाजी का जन्म 1842 में उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत (NWFP) में फ़ज़ल वाहिद के रूप में हुआ था.

उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय मदरसे में हुई, जहाँ उनकी विचारधारा शाह वलीउल्लाह की ओर झुकाव थी.आगे की पढ़ाई के लिए वे दारुल उलूम में देवबंद (यूपी) गए.यहाँ उनकी दोस्ती शेख-उल-हिंद मौलाना महमूद उल हसन से हुई और वे उनके साथ मौलाना कासिम नानोतवी और रशीद अहमद गंगोही के साथ हज यात्रा पर गए.

यह ध्यान में रखना चाहिए कि देवबंद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र था.इसके दोनों संस्थापकों, नानोतवी और गंगोही ने 1857 में हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ़ हथियार उठाए थे.मौलाना महमूद एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे और उन्हें प्रथम विश्व युद्ध के दौरान माल्टा में युद्ध बंदी के रूप में रखा गया था.

तुरंगजई के हाजी ने अरब में हाजी इमाददुल्लाह से मुलाकात की और उनके मिशन के प्रति अपनी निष्ठा का वादा किया.इमाददुल्लाह 1857 में भारतीय क्रांतिकारियों के नेता थे.उनका मिशन भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना था.तुरंगजई के हाजी ने हद्दा के मुल्ला नजमुद्दीन (मुल्ला हद्दा) से भी शिक्षा ली और उनके प्रति अपनी निष्ठा का वादा किया.

मुल्ला हद्दा एक प्रसिद्ध ब्रिटिश विरोधी विद्वान होने के साथ-साथ एक नेता भी थे.उन्होंने अपने जीवनकाल में विदेशी शासकों के खिलाफ कई सशस्त्र अभियानों का नेतृत्व किया.इसलिए, तुरंगजई के हाजी ने इस्लामी धर्मनिष्ठता, सूफीवाद और उपनिवेशवाद-विरोधी दो अलग-अलग लेकिन अभिसरित विचारधाराओं से प्रेरणा ली.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जबकि सना हारून ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि तुरंगजई के हाजी ने देवबंद से लौटने के बाद मुल्ला हाद्दा से मुलाकात की. तुरंगजई के हाजी पर एक विशेषज्ञ अल्ताफ कादिर के अनुसार मुल्ला हाद्दा के प्रति निष्ठा देवबंद और हज की यात्रा से पहले की है.

हाजी तुरंगजई ने 1870 के दशक से देवबंद स्थित भारतीय क्रांतिकारियों और मुल्ला हाद्दा जैसे सूफी क्रांतिकारियों के बीच एक कड़ी के रूप में काम किया.जब प्रथम विश्व युद्ध छिड़ा तो मौलाना उबैदुल्ला सिंधी अफगानिस्तान चले गए.हाजी तुरंगजई भी वहां चले गए.

 योजना यह थी कि हाजी तुरंगजई और उनके जैसे अन्य इस्लामी विद्वानों के नेतृत्व में आदिवासियों की एक सेना खड़ी की जाए, जिनकी इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों में लोकप्रियता हो.आर्य समाज के क्रांतिकारी राजा महेंद्र परताप और ग़दर पार्टी के नेता मौलवी बरकतुल्लाह भी अफगानिस्तान में उनके साथ शामिल हो गए.1915 में काबुल में एक अनंतिम सरकार का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष महेंद्र, प्रधानमंत्री बरकतुल्लाह और गृह मंत्री उबैदुल्लाह थे.

1916 में उबैदुल्लाह द्वारा लिखे गए पत्रों को अंग्रेजी खुफिया एजेंसियों द्वारा रोक दिए जाने के बाद यह आंदोलन विफल हो गया.कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और इस योजना को सिल्क लेटर षड्यंत्र कहा गया.तुरंगजई के हाजी ने अपना आंदोलन नहीं रोका और अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों को संगठित करना जारी रखा.

राष्ट्रीय एकता की जरूरत को समझते हुए वह चाहते थे कि हिंदू, मुसलमान और सिख एक साथ रहें.अल्ताफ कादिर लिखते हैं, “गाजियाबाद में आयोजित जरगाह में उन्होंने सभी हमलावरों को इस्लाम का दुश्मन करार दिया.स्थानीय मोहमंदन की दो शाखाओं कमाली और पांडियाली को भविष्य के लिए अपने बुरे चरित्र पर लगाम लगाने के लिए कहा.उन्होंने उनसे पेशावर जिले से अपहृत सभी हिंदुओं को रिहा करने के लिए कहा.

दोनों जनजातियों ने विरोध किया.लेकिन उनके निर्देशों के अनुसार मामले को सुलझाने के लिए मजबूर हो गए एक सच्चे मुसलमान के रूप में, हाजी साहिब तुरंगजई आदिवासियों की ऐसी हरकतों के खिलाफ थे.वह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन ब्रिटिश क्षेत्र के निवासियों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे.”

अल्ताफ यह भी बताते हैं, “साक्ष्य बताते हैं कि हाजी साहब गैर-मुसलमानों के नेतृत्व वाले क्रांतिकारी आंदोलनों के संपर्क में थे.इनमें नौजवान भारत सभा और ग़दर पार्टी शामिल थी. बाद वाले ने अपने दो सदस्यों को लकराई भेजा.आधिकारिक मुखबिरों को धोखा देने के लिए, उन्होंने सिख होने का नाटक किया जो इस्लाम को अपनाना चाहते थे.”

तुरंगजई के हाजी ने एक सशस्त्र मिलिशिया का गठन किया और 1915से 1937में अपनी मृत्यु तक कई चौकियों पर ब्रिटिश सेना पर हमला किया.उनका प्रभाव इतना अधिक था कि ब्रिटिश वायु सेना ने उन्हें दबाने के लिए उन पर बम गिराए.ब्रिटिश सरकार की एक आधिकारिक पत्रिका, डिफेंस ऑफ़ इंडिया ने बताया, “अगस्त (1915) में, तुरंगजई के हाजी साहब, एक कुख्यात ब्रिटिश-विरोधी मुल्ला, ने अम्बेला दर्रे में अपने आस-पास कई हज़ार लोगों को इकट्ठा किया और ब्रिटिश क्षेत्र पर आक्रमण करने की तैयारी की.

उसने अपने आस-पास जो लोग इकट्ठा किए थे, वे तुच्छ नहीं थे.उनमें से अधिकांश पठान पहाड़ी थे, जिन्हें बचपन से ही लड़ने का प्रशिक्षण दिया गया था.उनके बीच हिंदू कट्टरपंथियों का एक समूह बिखरा हुआ था.फिर वहाँ अनेक प्रकार के फकीर, प्रतिष्ठित चमत्कार करने वाले, असाधारण तपस्या करने वाले लोग थे - उग्र, दुबले-पतले, प्रखर धर्मावलम्बी.”

तुरंगजई के हाजी के नेतृत्व में आंदोलन देवबंद स्थित उलेमा के नेतृत्व वाले आंदोलन का एक हिस्सा था और पंजाब, बंगाल, NWFP आदि के अन्य क्रांतिकारी आंदोलनों से जुड़ा था.बहुत से लोग यह नहीं जानते कि खान अब्दुल गफ्फार खान तुरंगजई के हाजी के अनुयायियों में से एक थे.

गफ्फार खान और उनके खुदाई खिदमतगार तुरंगजई के हाजी के नेतृत्व वाले आंदोलन का हिस्सा थे.मुंबई के एक लोकप्रिय भारतीय नेता यूसुफ मेहरअली ने 1946 में लिखा था, "1911 में बहुत पहले, जब खान साहब इंग्लैंड में चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे थे, तुरंगजई के हाजी साहब ने राष्ट्रीय शिक्षा के लिए एक आंदोलन शुरू किया था, और स्कूलों की एक श्रृंखला स्थापित की थी.

तुरंगजई खान भाइयों के गांव से केवल दो मील की दूरी पर था.अब्दुल गफ्फार खान, जो उस समय केवल बीस वर्ष के थे, ने उत्साहपूर्वक इन लाभकारी प्रयासों के साथ खुद को जोड़ा उनका भारी हाथ सीधे हाजी साहब पर पड़ा, जो समय रहते आदिवासी इलाकों में भाग गए ताकि पकड़े जाने से बच सकें.

हालांकि, कई अन्य शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया गया और इस तरह स्कूलों को दबा दिया गया.यह आश्चर्यजनक लग सकता है, खान भाइयों को राजनीति में तभी लाया गया जब उन्हें यकीन हो गया कि राष्ट्र निर्माण का कोई भी काम करना या कोई भी गतिविधि संचालित करना असंभव है.चाहे वह अपने आप में कितना भी फायदेमंद और आपत्तिजनक क्यों न हो, जब तक कि मौजूदा शासन को मूल रूप से बदल नहीं दिया जाता.

तुरंगजई के हाजी द्वारा शुरू किया गया सशस्त्र आंदोलन भी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ा था.विस्कॉन्सिन मैडिसन विश्वविद्यालय के मिलान हाउनर लिखते हैं, "बोस ने वास्तव में अपनी व्यापक 'धुरी शक्तियों और भारत के बीच सहयोग की योजना' में जनजातीय क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी थी, जिसे उन्होंने बर्लिन पहुंचने के तुरंत बाद प्रस्तुत किया था... भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने के अपने एकमात्र जुनून में, बोस को यकीन था कि सीमा पर आधुनिक उपकरणों के साथ 50,000 सैनिकों की एक छोटी सी सेना की उपस्थिति ही अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए पर्याप्त होगी."