तुर्की में कुर्दों का गढ़ है दियारबाकिर, बासाल्ट की मजबूत दीवारें बयां करती हैं इस दुर्ग के टूटने-बनने की कहानी

Story by  रावी द्विवेदी | Published by  [email protected] | Date 16-02-2023
दियारबाकिर
दियारबाकिर

 

 

रावी द्विवेदी

 

वैसे तो हालिया भूकंप से प्रभावित तुर्की-सीरिया के पूरे इलाके को ही ‘सभ्यताओं का देश’ कहा जाता है, क्योंकि यहां तमाम सभ्यताएं पनपीं और फली-फूलीं. लेकिन समय-समय पर इन सभ्यतों और इस क्षेत्र में शासन करने वाले साम्राज्यों ने जो निशान छोड़े, उन्हें संजोने में दियारबाकिर का कोई सानी नहीं हैं. दक्षिणपूर्व अनातोलिया के ऐतिहासिक केंद्रों में से एक दियाबाकिर की दीवार सदियों पहले से टिगरिस नदी के करीब बंदरगाह के तौर पर इस्तेमाल किए जाती रही, जो इस शहर की पहचान है. बासाल्ट पत्थरों से बनी दीवार पर इसकी पूरी कहानी दर्ज है कि उसे कब नुकसान पहुंचा और किसके शासनकाल में कब उसे फिर से बनवाया गया.


दीवार के शिलालेखों में दर्ज इबारतें और तमाम तरह के प्रतीक चिह्न इसकी गवाही देते हैं कि आखिर इसका इतिहास कितना पुराना है. दीवार में दर्जनों शिलालेख हैं, जिनमें न केवल निर्माण कराने वाले शासक का नाम है, बल्कि कई बार तो आर्किटेक्ट और इंजीनियर का नाम भी दर्ज मिलता है. बड़े पैमाने पर निर्माण के दौरान की तिथि भी इसमें अंकित मिलती है. दियारबाकिर की मजबूत दीवार के अंदर एक पूरा शहर बसा है और व्यापारिक केंद्र के तौर पर इसकी खास पहचान रही है. तुर्की का ये शहर वैसे तो कुर्दों का गढ़ है, जिसने हालिया दशकों में कुर्द विद्रोहियों का कहर भी झेला है लेकिन यह मिली-जुली संस्कृति के मामले में एक मिसाल भी पेश करता है.

 

चौथी शताब्दी से अस्तित्व में होने के मिलते हैं साक्ष्य

 

पुरातात्विक साक्ष्यों के मुताबिक, दियारबाकिर दीवार चौथी शताब्दी में अपने मौजूदा स्वरूप में पहुंची और मूलतः इसे शहर की सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया था. लेकिन माना जाता है कि यह 2000 साल ईसा पूर्व ही अस्तित्व में आ गई थी और 900 साल पूर्व बिट जमानी ट्राइब के नियंत्रण में रहने के दौरान पुरानी दीवार की मरम्मत कराई गई. रोमन सैनिक अम्मियानस मार्सेलिनस ने 324 से 337 ईसवी के बीच इसकी सीमाओं को बढ़ाकर नई दीवार निर्मित कराई. शहर की किलेबंदी के लिए दीवार में कुछ जगह पर बुर्ज खड़े करने का काम 505 से 505 ईसवी के बीच हुआ. 638 ईसवी में अरब सेनाओं के आक्रमण के दौरान शहर की दीवार अपनी मौजूदा सीमाओं के करीब पहुंच चुकी थी. निर्माण तकनीक और शिलालेखों पर दर्ज ब्योरा देखें, तो पता चलता है कि कौन-सा हिस्सा महान सम्राट सेल्जुक के समय बना और किसे अतुर्किदा ने बनवाया था.

 

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1232 में यहां कब्जा करने वाले अयूबिद शासक मलिक कामिल ने अंदर वाली दीवार को तुड़वा दिया और उससे निकले पत्थरों को बाहरी दीवार की मरम्मत कराने में इस्तेमाल किया. शिलालेखों से पता चलता है कि 909-910 से 1526-27 के बीच, खासकर ऑटोमन शासन के दौरान, यहां शासन करने वालों ने दीवार की मजबूती पर खास ध्यान दिया और उसे अभेद्य दुर्ग में तब्दील करने की हरसंभव कोशिश की. दियारबाकिर दीवार की कुल लंबाई 5500 मीटर के करीब है और कभी इसकी तुलना विश्व प्रसिद्ध चीन की दीवार से की जाती है.

 

भूकंप रोधी बुर्ज

 

प्राचीन शहर की दीवार कई बार टूटी और कई बार बनी. इसलिए इसमें अलग-अलग समय की वास्तुकला और निर्माण तकनीक का इस्तेमाल भी दिखता है. समय-समय पर पुनर्निर्माण के दौरान उसमें कई बुर्ज जोड़े गए. इसमें गोलाकार, चौकोर और बहुकोणीय तीनों तरह के बुर्ज बने हुए हैं. चूंकि, चौकोर बुर्ज के युद्ध या भूकंप आदि की स्थिति में जल्द तबाह होने की आशंका रहती है, इसलिए गोलाकार बुर्ज बनाने को तरजीह दी गई या फिर ऐसी बहुकोणीय बुर्ज बनाने पर ध्यान दिया गया, जिसमें समकोण न बनता हो.

 

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किसी संभावित हमले से बचाव को ध्यान में रखते हुए बनाए गए ज्यादातर बुर्ज तीन से चार मंजिलों के हैं. इसमें सबसे निचले तल का इस्तेमाल स्टोरेज के लिए किया जाता था और पहली और दूसरी मंजिल सैनिकों के रहने के लिए होती थी. निर्माण के लिए आमतौर पर बासाल्ट का इस्तेमाल किया गया. शहर बासाल्ट लावा पर ही बसा हुआ है. इसके इस्तेमाल की एक वजह यह भी रही है कि नजदीकी जगहों पर बासाल्ट की उपलब्धता से समय और लागत दोनों की बचत होती थी. बाहरी हिस्से में बड़े पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है जबकि अंदर की तरफ छोटे पत्थर लगे हैं. साथ में ईंटों का भी इस्तेमाल है, जो चौथी सदी में चलन में आ गई थीं. दीवार पर लगे पत्थरों में फूल-पत्ती, अनाज, शेर, बैल, बकरी जैसे कई जीवों के साथ-साथ हथियारों को भी उकेरा गया है. एक बुर्ज में ‘नेकेड वुमन’ वाली छवि भी उकेरी गई नजर आती है, जो कि इस्लामी कला में आमतौर पर नजर नहीं आती है.

 

दीवार के टूटे हिस्सों सेघर बनाने लगे लोग

 

20वीं सदी की शुरुआत में सुरक्षा के लिहाज से शहर में प्रवेश और निकास के मार्गों पर खास नजर रखी जाती थी और आने-जाने के रास्तों पर लगे दरवाजे रात में बंद कर दिए जाते थे. 1930 के दशक में एक ऐसा मौका भी आया, जब यह कहा जाने लगा कि शहर के विस्तार और खुली हवा के बहाव, खासकर गर्मियों के दिनों को ध्यान में रखते हुए इस दीवारों को गिरा दिया जाना चाहिए. यह तर्क भी दिया गया कि इससे वाहनों की आवाजाही आसान हो जाएगी, क्योंकि दरवाजे संकरे होने के कारण बड़े वाहनों का अंदर आना संभव नहीं हो पाता था.

 

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बस फिर क्या था, 1930-1932 के बीच दीवार के कुछ हिस्सों को डायनामाइट लगाकर उड़ा दिया गया. और आम लोगों को भी छूट दे दी गई कि वे चाहें तो यहां से निकलने वाले पत्थरों को इस्तेमाल कर सकते हैं. आम लोगों ने भी उन पत्थरों का इस्तेमाल अपने घर-दुकानें बनाने में करना शुरू कर दिए. आखिरकार, कुछ पुरातत्ववेत्ता और शहर के बुद्धिजीवी इस ऐतिहासक धरोहर को बचाने के लिए आगे आए. उन्होंने संबंधित प्रशासनिक अफसरों को समझाया कि यह दीवार कितना ऐतिहासिक महत्व रखती है और इसे तोड़ा जाना एक बड़ी गलती है, तब कहीं जाकर इसे रोका गया, लेकिन तब तक कई जगह दीवार का बड़ा हिस्सा और बीच-बीच में इसकी शोभा बढ़ाने वाले कुछ बुर्ज ढह चुके थे.

 

दियारबाकिर दीवार यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में

 

पर्यटन के लिहाज से दियारबाकिर दीवार के ऐतिहासिक महत्व और समझते हुए 1940 के दशक में इसकी मरम्मत और संरक्षण का काम शुरू हुआ. टूटे-फूटे हिस्सों को संवारा गया और जो बुर्ज ढहे थे, उन्हें भी फिर से निर्मित किया गया. शहर के अंदर भी विकास कार्यों को गति मिली और वाहनों की आवाजाही में कोई परेशानी न होना सुनिश्चित करने के लिए बाहर आने-जाने के रास्तों को ठीक किया गया.

 

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जरूरत के मुताबिक बाद में दो नए गेट भी बनाए गए. इसमें एक 1950 में निर्मित सिफ्ट गेट है और 1959 में टेक गेट बनाया गया और इससे पहले 1940 में पहले से इस्तेमाल हो रहे उर्फा गेट के दो पोर्ट के बीच एक बड़ा गेट बनाया गया था. पिछले कुछ दशकों के दौरान दीवार के संरक्षण के और भी प्रयास हुए हैं. तुर्की सरकार और यूनेस्को ने भी इसके लिए हाथ मिलाया और जुलाई 2015 में किले और इस दीवार से सटे हेवसेल गार्डन कल्चरल लैंडस्केप को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में जगह दी गई. हेवसले गार्डन करीब 7,000 साल पुराना और 700 हेक्टेयर में फैला हरा-भरा इलाका है. दियारबकीर का खलिहान कहे जाने वाले हेवसेल गार्डन का उपयोग फल-सब्जियां उगाने के लिए किया जाता है, न जाने कितनी किस्म के फूल इसके उद्यानों को शोभा बढ़ाते हैं और 180 से अधिक प्रजातियों के पक्षी भी पाए जाते हैं. कुल मिलाकर दियारबाकिर की दीवार और हेवसेल गार्डन पर्यटकों के बीच आकर्षण का एक बड़ा केंद्र हैं. यहां विभिन्न जातियों-समुदायों और संस्कृतियों के लोग बसे हैं, जो यहां की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है.

 

कुर्द विद्रोहियों और सरकारी सैनिकों के बीच जंग पड़ी भारी

 

दियारबाकिर को कुर्दों को गढ़ माना जाता है, और तुर्की में कुर्दों की सबसे ज्यादा आबादी इसी क्षेत्र में है. 2015 में कुर्दिस्तान की मांग को लेकर कुर्द विद्रोहियों और तुर्की सरकार के बीच छिड़े संघर्ष ने इस दुर्ग को खासी क्षति पहुंचाई. विद्रोहियों के खिलाफ तुर्की सेना की कार्रवाई के दौरान प्राचीन शहर का करीब एक तिहाई हिस्सा तबाह हो गया और ऐतिहासिक किले और दियारबाकिर दीवार के संरक्षण के प्रयासों को गहरा झटका लगा. इसके अलावा भी तमाम प्राकृतिक कारणों और प्रशासनिक अनदेखी की वजह से दियारबाकिर दीवार टूट-फूट की शिकार होती रही है. लोगों के इसके आसपास घर बना लेने और कई बार छिपा खजाना ढूंढ़ने की चाह में इसके बुर्जों की अवैध खुदाई किए जाने से भी काफी नुकसान पहुंचा है. और अब हालिया भूकंप ने प्राचीन शहर ही नहीं पूरे दियारबाकिर प्रांत को खासी क्षति पहुंचाई है. बहरहाल, दियारबाकिर के अभेद्ध दुर्ग की दीवार को शायद यही इंतजार होगा कि अब कौन उसके जख्मों पर मरहम लगाएगा. इसके साथ ही भविष्य में कुछ और नाम इस दीवार पर अपनी अमिट पहचान छोड़ जाएंगे.