पुण्यतिथि विशेष: ‘दाग देहलवी’ की नाकदरी उर्दू प्रेमियों को कर रही शर्मसार

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] • 2 Years ago
पुण्य तिथि विशेष: ‘दाग देहलवी’ की नाकदरी उर्दू प्रेमियों को कर रही शर्मशार
पुण्य तिथि विशेष: ‘दाग देहलवी’ की नाकदरी उर्दू प्रेमियों को कर रही शर्मशार

 

पुण्यतिथि विशेष
 
 
मोहम्मद अकरम/ हैदराबाद
 
उर्दू है जिसका नाम हमीं जानते हैं ‘दाग‘
हिन्दोस्तां में धूम हमारी जुबान की है

उर्दू के मशहूर शायर ‘दाग देहलवी’ का लिखा यह शेर पूरी दुनिया में उर्दू जुबान की मौजूदगी का पता देती है लेकिन उर्दू के शहर हैदराबाद में उनकी और उनके बहन की कब्र अपनी ना कदरी पर आंसू बहा रही हैं. शहर के यूसुफैन दरगाह के ठीक बाईं तरफ उनकी कब्र अहल-ए-हैदराबाद से बार बार पुकार कर शिकायत कर रही है लेकिन कोई इसकी सुध लेने वाला नहीं है.

दरगाह प्रशासन और तेलंगाना वक्फ बोर्ड के जिम्मेदार बड़े ही मासूमियत भरे अंदाज में कहते हैं कि हर साल दाग की कब्र पर फूल चढ़ाई जाती है, जबकि ठीक उसकी दाएं तरफ एक अल्लाह वाले की कब्र पर ऐसा प्रतीत होता है कि हर रोज नई चादर से अकीदत का इजहार किया जाता है.
 
यह संवाददाता उनकी पुण्यतिथि से एक दिन पहले जब दरगाह पहुंचा तो उसके अंदर रहने वाले ज्यादातर लोगों, फूल बेचने वालों से दाग की कब्र का पता पूछता रहा, पर उनमें से अधिकांश को इसका इल्म नहीं था. उनकी कब्र पर फूल चढ़ाने वाला तो दूर की बात है.
 
कुछ बातें दाग के बारे में

उर्दू शायरी को एक नए आयाम देने वाले शायर दाग देहलवी का वास्तविक नाम नवाब मिर्जा खां था. उनका जन्म 25 मई 1831 को दिल्ली में हुआ. उनके पिता का नाम शम्सुद्दीन अहमद खां और मां का नाम वजीर बेगम था.
 
जब वह पांच वर्ष के थे तो वालिद को अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई. उसके बाद 1856 में दाग अपनी मां के साथ दिल्ली को अलविदा कर रामपुर चले गए, जहां  नवाब यूसुफ अली ने उन्हें बहुत सम्मान से नवाजा. कुछ सालों के बाद दाग हैदराबाद लौट आए. उन्हें यहां के नवाब मीर महबूब अली खान से सम्मान मिला और उन्होंने दाग को अपना उस्ताद मुक्करर कर कई सौ रुपये महिने के तय कर दिए.
 
शायरी इश्क और कब्र की बेकदरी
 
इश्क और मोहब्बत की शायरी पेश कर लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले इस अजीम शायर की मौत 17 मार्च 1905 में हुई और यूसुफैन दरगाह के पास दफनाया गया.दाग की कब्र से लगे फूल दुकानदार अदनान शेख कहते हैं कि दाग की कब्र पर हमेशा दुनिया के कोने कोने से लोग आते हैं, अमेरिका, सऊदी अरब, पाकिस्तान से लोग रिसर्च करने पहुंचते हैं. मगर कब्र की नाकदरी पर वह चुप हो जाता है.
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लावारिस मजार 
 
सालों से दरगाह की खिदमत कर रहे मोहम्मद जहूर ने बताया कि ‘‘ये बहुत पुरानी मजार है. दुकान उनकी कब्र से हट कर है. साल में एक बार बरसी पर लोग चादर चढ़ाते हैं. सरकार की तरफ से ‘दाग‘ के ऊपर या उनकी कब्र पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया गया है.
 
उनकी वसीयत के मुताबिक मजार को ऊँची नहीं की गई है. हम लोगों ने कब्र के चारों तरफ से जाली डाल रखी है. यहां अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई और दुनिया भर से मुरीद पहुंच कर चादर और फूल चढ़ाते हैं. जब राज्य के मंत्री महमूद अली साहब दरगाह आते हैं तो दाग की कब्र पर भी फूल चढ़ा जाते हैं‘‘.
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उर्दू वाले ही अंजान
 
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया के रिटार्य डायरेक्टर मुशर्रफ इकबाल तौसीफी कहते है ‘‘दाग एक बेहतरीन शायर थे. जुबान को खूबसूरत अंदाज में पेश करते थे. हम सब के लिए जरूरी है कि उन्हें जानें. वह जुबान की सलासत अच्छे से किया है. आप (दाग देहलवी) से आज भी बहुत कुछ सिखा जा सकता है. ‘‘
 
कब्र के सवाल पर कहा,‘‘ये एक तरह से हमारी महरूमी है. दाग के अलावा कई शायरों के कब्र हैं, हर साल बर्सी पर लोग पहुंच कर फूल और चादर चढ़ाते हैं.‘‘तेलंगाना वक्फ बोर्ड की तरफ से दरगाह शरीफ मे कार्यरत सैयद हैदर की बात से लगा कि उन्हें दाग देहलवी के बारे कुछ भी पता नहीं है. एक दूसरे शख्स ने बताया तो फिर वह दाग की कब्र पर ले गए और कहा कि इसे चारों तरफ से घेर दिया गया है और साल में एक बार रंग रोगन किया जाता है.
 
दक्कन हेरिटेज के उप मैनेजिंग ट्रस्टी डॉक्टर मोहम्मद सैफुल्लाह ने बताया कि दाग देहलवी के बारे में बहुत सारे लोगों को पता नहीं हैं, क्योंकि उस वक्त लिख कर रखने का काम बहुत कम होता था. उनके बारे में जब मैंने एक लाइब्रेरी में ज्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो नाकाम रहा. मेरे पास उनसे जुड़ी कई तस्वीरें हैं.
 
वहीं दरगाह में रहने वाले मोहम्मद आजम सिद्दीकी जो करीब 40 सालों से यहां क निवासी है. कहते हैं कि लोग अपने पुरखों को भूल गए हैं. दाग देहलवी की कब्र पर साल मंे एकबार चादर चढ़ाया जाता है. इनके खानदान, रिश्तेदार के लोग कहां हैं, कुछ नहीं मालूम हैं. दाग बहुत बड़े शायर थे. वह हमारी सोच से कई आला पैमाने के शायर थे. हमारी कौम की बदकिस्मती कह लीजिए की, नई नस्ल के बच्चे दाग देहलवी से नावाकिफ हैं.
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दाग की चर्चित रचनाएं

उनकी रचनाएं जो मशहूर हैं उनमें ‘‘गुलजारे दाग‘‘, ‘‘महताबे दाग‘‘ ‘‘आफताबे दाग‘‘ ‘‘यादगारे दाग‘‘ ‘‘यादगारे दाग भाग 2‘‘ शामिल हैं.

 
121 साल पहले दुनिया को छोड़कर चले जाने वाले दाग देहलवी की कब्र पर बतौर पहचान के एक कुतबा (नेम पलेट) जरूर लगा दिया गया है,लेकिन उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला हैं. हद यह कि उनकी मजार पर लगी तख्ती के अक्षर भी बहुत हद तक मिट गए हैं. मजार की हालत देखकर नहीं लगता कि इसपर हर साल रंग-रोगन चढ़ाया जाता है.
 
जरुरत है कि दाग जैसे अजीम शायर के बारे में नई नस्ल को बताया जाए. उर्दू के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों खर्च हर साल किए जाते हैं, दाग की जिंदगी पर किताब लिख कर दूर तक लोगों को वाकफियत कराई जाए.
 
कोई नामो-निशां पूछे तो ऐ कासिद बता देना
तखल्लुस दाग है और आशिकों के दिल में रहते हैं