मंजीत ठाकुर
बिहार में छठ त्योहार के बारे में सब जानते हैं कि इसमें डूबते और उगते सूर्य की उपासना की जाती है. लेकिन, आपको यह जानकर हैरत होगी कि मिथिला क्षेत्र में उगते और डूबते सूर्य के साथ कलंकित चंद्रमा की पूजा होती है. यह पूजा भादो महीन के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होती है.
इसी दिन देश के बाकी हिस्सों में गणेश चतुर्थी की पूजा होती है और महाराष्ट्र में खासकर गणेश चतुर्थी के दिन घरों में गणपति विराजते हैं और अगले नौ दिनों तक, उनकी पूजा होती है और अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन होता है.
बहरहाल, बिहार के मिथिला क्षेत्र में सादगी और बिना शोरगुल के उसी गणेश चतुर्थी के दिन चौरचन या चौठचांद मनाया जाता है. चौरचन के बारे में पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इसी दिन चंद्रमा को कलंक लगा था इसलिए इस दिन चांद को खाली हाथ देखने की मनाही है.
खास बात यह कि छठ की तरह चौरचन (चौठचांद) पूजा भी महिलाएं ही करती हैं. सुबह से ही गाय के गोबर से लीपकर आंगन एवं घरों को शुद्ध करते हैं. कच्चे चावल को पीसकर बने पिठार से मिथिला की स्थानीय कला अरिपन (रंगोली) बनाई जाती है. इस पर्व में दही और केले का खास महत्व है. व्रती महिलायें चंद्रदेव को अर्घ्य देती हैं इसके बाद परिवार के सभी सदस्य हाथ में केला या अन्य फल लेकर चंद्रदेव का दर्शन करते हैं.
मिथिला क्षेत्र में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रदोष काल में (यानी सांझ में जब सूर्य अस्त हो चुका हो और रात्रि न हुई हो) पूजा करने के बाद हाथ में फल या दही लेकर चंद्र दर्शन करे तो उसका चंद्र दोष खत्म होता है और वह जीवन में किसी मिथ्या कलंक यानी झूठे आरोपों से मुक्त होता है.
चौरचन से जुड़ी एक पौराणिक कथा
कहा जाता है कि एक दिन भगवान गणेश अपने वाहन मूषक के साथ कैलाश का भ्रमण कर रहे थे. तभी अचानक उन्हें चंद्रदेव के हंसने की आवाज आई. भगवान गणेश ने उनसे हंसने का कारण पूछा तो चंद्रदेव ने कहा कि भगवान गणेश का विचित्र रूप देखकर उन्हें हंसी आ रही है, साथ ही उन्होंने अपने रूप की प्रशंसा करनी ही शुरू कर दी.
मजाक उड़ाने की इस प्रवृत्ति को देखकर गणेश जी को काफी गुस्सा आया. उन्होंने चंद्र देव को शाप दिया और कहा कि जिस रूप का उन्हें इतना अभिमान है वह रूप आज से करूप हो जाएगा. कोई भी व्यक्ति जो चंद्रदेव को इस दिन देखेगा, उसे झूठा कलंक लगेगा. भले ही व्यक्ति का कोई अपराध न भी हो, परंतु यदि वह इस दिन चंद्रदेव को देख लेगा तो वह अपराधी ही कहलाएगा.
ब्रह्मपुराण में इस त्योहार का एक उल्लेख मिलता है. कथा है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगा था. असल में यह मणि प्रसेन ने चोरी कर ली थी लेकिन आरोप भगवान कृष्ण पर मढ़ दिया. प्रसेन को एक सिंह ने मार दिया और जामवन्त ने उस सिंह का वध करके मणि अपने पास रख लिया.
बाद में, भगवान कृष्ण ने एक मल्ल युद्ध में जामवन्त को हरा दिया और स्यमंतक मणि हासिल करके इस कलंक से मुक्त हुए थे. इसलिए मिथिला में कहावत है कि चौठ का चंद्र देखने से खुद नारायण भी नहीं बच पाए तो आम आदमी कि बिसात ही क्या है.
14वीं सदी में रचित चंडेश्वर उपाध्याय लिखित ग्रंथ ‘कृत्य रत्नाकर’में इस त्योहार का उल्लेख है. लेकिन कई जानकार बताते हैं कि मिथिला का यह त्योहार पौराणिक कम और ऐतिहासिक अधिक है. क्योंकि इस पूजन को सिर्फ मिथिला में ही मनाया जाता है और देश के किसी हिस्से में चौरचन मनाने की प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता.
चौरचन से जुड़ी ऐतिहासिक कथा
1568 में मिथिला की गद्दी पर हेमांगद ठाकुर नामक महात्मा राजा बैठा. हेमांगद ठाकुर अपनी ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने 16वीं शताब्दी में महज बांस की खपच्चियों, पुआलों के तिनकों और जमीन पर कुछ गणनाएं करके अगले 500 वर्षों तक होनेवाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तिथियां बता दी थीं और इसके आगे के लिए गणना की सरल विधि भी निकाल ली.
हेमांगद ठाकुर ने यह सारा विवरण ‘ग्रहणमाला’नामक पुस्तक में संकलित किया है, जिसे उन्होंने कैद में रहते हुए रचा था.
बताया जाता है कि हेमांगद राजा तो बन गए, लेकिन अपने नरम स्वभाव की वजह से जनता से कर लेना, प्रताड़ित करना उनके बस की बात नहीं थी. दिल्ली के बादशाह को तो राजस्व समय पर नहीं मिल रहा था. उसने हेमांगद ठाकुर को तलब किया. उनसे पूछताछ हुई तो बोले, पूजा-पाठ में कर का ध्यान न रहा.
बादशाह को उनकी बात सच नहीं लगी और हेमांगद ठाकुर कर चोरी के आरोप में कैद में डाल दिए गए. हेमांगद ठाकुर कैद में यही खगोल गणना में जुट गए. बादशाह तक खबर पहुंची कि तिरहुत का राजा कैद में पागल हो गया है.
बादशाह ने तब राजा को तिनको से गणना करता देखा तो उनसे इस बारे में पूछा. हेमांगद ठाकुर ने कहा कि यह गणना चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए है. ऐसे में बादशाह ने कहा कि अगर आपकी गणना सही निकली तो आपकी सजा माफ कर दी जाएगी.
कुछ महीने बाद राजा की गणना के ही मुताबिक चंद्रग्रहण हुआ और बादशाह ने प्रसन्न होकर हेमांगद ठाकुर को उनका राज्य वापस करवा दिया.
जानकार बताते हैं कि वह बादशाह कोई और नहीं स्वयं मुगल बादशाह अकबर था और उसने न सिर्फ तिरहुत (मिथिला) का राज्य वापस किया बल्कि उस राज्य को करमुक्त (टैक्स-फ्री) भी घोषित कर दिया.
राजा के अपने राज्य की राजधानी लौटने पर रानी हेमलता ने घोषणा की कि अब मिथिला का चंद्रमा कलंकमुक्त हो गया है और उन्होंने पूरे राज्य में उत्सव मनाने को कहा. महारानी के आदेश से हर घर में पकवान बने और धीरे-धीरे इसी ने लोकपर्व चौरचन का रूप ले लिया.