एहसान फाजिली/श्रीनगर
पहले से पांच किताबें प्रकाशित करने के बाद, नवगठित केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के कारगिल जिले के एकमात्र पद्मश्री बाल्टी लेखकअखोन असगर अली बशारत संसाधनों की कमी के कारण देशी कविता के अपने संकलन को प्रकाशित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.उन्हें गणतंत्र दिवस के अवसर पर साहित्य और शिक्षा की श्रेणी में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.इसे 2022में भारत के राष्ट्रपति के हाथों प्राप्त किया था.
कारगिल शहर से 13 किलोमीटर दूर कार्किट त्चू में अपने घर से बात करते हुए, बशारत ने कहा कि वह बाल्टी भाषा में अपनी कविता संग्रह प्रकाशित करने की कोशिश कर रहे है, जिसके लिए वह सब्सिडी के साधन की तलाश में है."यह बाल्टी भाषा में मेरी कविताओं का विशाल संग्रह है", जो भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा द्वारा विभाजित भाषा और संस्कृति के कई पहलुओं को उजागर कर सकता है.
बाल्टी की अधिकांश आबादी पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में है.जब Awaz the voiceने पिछले साल उनसे बात की, तो वह "ऐना-ए-कारगिल" (कारगिल पर विचार) पर काम कर रहे थे, जिसमें इसके इतिहास, भूगोल, संस्कृति, लेखकों और कवियों, लोगों के जीवन, उनकी पोशाक, घर, आम भोजन, का खुलासा किया गया था.
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 28, 2022
ऐना-ए-कारगिल"इस्लाम धर्म का पालन करने वाले धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठन.किताब इसी साल प्रकाशित हुई है. उन्होंने कहा, इसमें डोगरा शासन के दौरान क्षेत्र की दुर्दशा, आजादी के बाद के कई अन्य अछूते मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है.
जीवन के ये सभी क्षेत्र अलग-अलग खंडों में विभाजित होकर 320 पृष्ठों में फैले हुए हैं.
15 वर्षों से अधिक की अवधि में सभी विवरणों को संकलित करने के उनके प्रयासों की स्थानीय स्तर पर सराहना की गई है. एक स्थानीय उर्दू कवि, अशरफ अली सागर, भारत के हिमालयी लद्दाख क्षेत्र, कारगिल, लद्दाख में बाल्टिस एसोसिएशन के महासचिव, ने बशारत के प्रयासों की सराहना में एक कविता लिखी है.
यह कविता किताब के पीछे की जैकेट पर भी छपी हुई है.कविता के एक दोहे में सागर लिखते हैं:
“किस तरह पुर सोज़ है तारीख-ए-कारगिल क्या खबर.”
ये बशारत तेरी महन्नत का समर होने को है.”
(कितना जीवंत है कारगिल का इतिहास, कौन जानता था; बशारत यही तुम्हारी मेहनत का फल देने वाला है.)।
अखोन असगर अली बशारत (72) ने औपचारिक शिक्षा के लिए किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं लिया, लेकिन उन्होंने अपने विद्वान पिता शेख गुलाम हुसैन से बाल्टी, उर्दू, फारसी और अरबी सीखी, जिन्होंने 1972 में अपने घर में एक मदरसा स्थापित किया था.
उनके पिता नेसभी स्थानीय लोगों को पढ़ाया था.बिना किसी मूल्य के अपने पिता से प्रेरित होकर, वह विभिन्न भाषाओं को सीखने, पढ़ने और लिखने के प्रति आकर्षित हुए, जिससे उन्हें 1980 के दशक की शुरुआत में नात (पैगंबर मुहम्मद की प्रशंसा में) और मनकबत (अल्लाह की प्रशंसा में) का पहला संकलन निकला.
उनका दूसरा प्रकाशन, कविताओं का एक संकलन, 2002 में प्रकाशित हुआ. उसके बाद फ़ारसी से अनुवाद के आधार पर वसीलाई नजात प्रकाशित हुआ, जो चार साल बाद 2006 में गद्य रूप में प्रकाशित हुआ. इसमेंबज़्मे-बशारत सहित नात, मनकबत और अन्य मुद्दों पर कविताएँ शामिल थीं.इसका प्रकाशन 2011 में हुआ.
बाल्टी भाषा कारगिल के कुछ हिस्सों में बोली जाती है,जबकि यह नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी भाषा है.यह केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले के नुब्रा क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है.
कारगिल के कुछ बाल्टी भाषी परिवार दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल इलाके में बस गए हैं.पाकिस्तान में 3.79 लाख बाल्टी बोलने वाले हैं, जबकि दुनिया भर में कुल बाल्टी बोलने वाले लोगों की संख्या 4.91लाख है.
पिछले कुछ दशकों में भारत में बाल्टी बोलने वालों की संख्या में गिरावट देखी गई है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार घटकर 13774 होने का अनुमान है.2001 की जनगणना के अनुसार यह 20053 और 1981में 48498 अनुमानित थी.
अखोन असगर अली बशारत को लोकप्रियता तब मिली,जब वह रेडियो कारगिल से बाल्टी भाषा में अपनी कविता सुनाने वाले नियमित आवाज बन गए. यहसिलसिला 1999 में शुरू हुआ.वह स्थानीय उर्दू मुशायरों और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में नियमित भागीदार बन गए.