साकिब सलीम
आसफ अली के कई संभावित परिचय हैं. उन्हें भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त, आज़ाद हिंद फौज के सैनिकों, रेल मंत्री, जिन्होंने पानी के जहाजों के धार्मिक अलगाव को समाप्त किया, और संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले भारतीय राजदूतहो होने के लिए जाना जाता है. लेकिन, इस धरती के महान सपूत का एक पहलू जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, वह था वीर सावरकर और लंदन में इंडिया हाउस के अन्य क्रांतिकारियों के साथ उनका जुड़ाव.
1909में, जब आसफ उच्च शिक्षा के लिए लंदन की यात्रा पर थे, एक प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता सैयद हैदर रज़ा उनके साथ थे. रज़ा ने पहले ही पंजाब में सरदार अजीत सिंह और लाला लाजपत राय के नेतृत्व में आंदोलन के नेताओं में से एक के रूप में अपना नाम बना लिया था. रज़ा को वित्तीय मदद श्यामजी कृष्ण वर्मा दे रहे थे, जिन्होंने पहले ही 1906में वीर सावरकर को इसी तरह की फेलोशिप के साथ बुलाया था.
रज़ा सावरकर की अध्यक्षता वाले समूह का एक महत्वपूर्ण सदस्य बनने वाले थे.
आसफ की पहली मुलाकात पेरिस में कट्टरपंथी क्रांतिकारी राजनीति से हुई, जहां वे लंदन के रास्ते में रुके थे. वह श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिले, जो भारतीय क्रांतिकारियों के जनक थे, जो राष्ट्रवादियों को अंग्रेजी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए धन दे रहे थे.
वर्मा ने सुनिश्चित किया कि लंदन में उनका पहला प्रवास इंडिया हाउस में होगा, एक ऐसा आवास जहां वर्मा द्वारा वित्त पोषित भारतीय छात्र अध्ययन करते थे. यह भारतीय सदन था जहां सावरकर रहते थे और राजनीतिक विकास पर चर्चा करने के लिए क्रांतिकारी हर हफ्ते मिलते थे.
आसफ ने बाद में याद करते हुए लिखा, "मुझे आश्चर्य है कि एक व्यक्ति (1909में सावरकर) ने उनके संपर्क में आने वाले लगभग सभी लोगों की इच्छा को कैसे पूरा किया... और न ही यह कहना अतिशयोक्ति है कि सावरकर मेरे कुछ प्रभावी वक्ताओं में से एक हैं. यहां या इंग्लैंड में शायद ही पहली कतार का कोई वक्ता हो, जिसे सुनने का मुझे सौभाग्य न मिला हो.”
उस समय इंडिया हाउस में बिपिन चंद्र पाल, निरंजन पाल, डॉ. के.पी जायसवाल, डब्ल्यू.वी. फड़के, सिकंदर हयात, सकलतवाला, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय और मदन लाल ढींगरा जैसे कई अन्य क्रांतिकारियों का आना जाना लगा रहता था. वे सभी रविवार को मिलते थे और सावरकर अपने वक्तृत्व कौशल के कारण एक नेता माने जाते थे.
आसफ ने लिखा, "सावरकर इंडिया हाउस के पीठासीन देवता थे और पहले से ही अच्छी तरह से स्थापित थे". उन्होंने आगे याद किया, "सावरकर... अपनी लापरवाह अंग्रेजी के बावजूद, अपने भाषण में ईमानदारी की इतनी वास्तविकता से बात करते थे कि उन्होंने श्रोचाओं पर लगभग हमेशा एक यादगार प्रभाव डाला."
आसफ ने अपने लेखन में इंडिया हाउस के लोगों द्वारा आयोजित 1909के दशहरे को याद किया जहां महात्मा गांधी को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. उन्होंने लिखा, "अगस्त 1909में बेज़वाटर में निज़ामुद्दीन के भारतीय रेस्तरां में आयोजित दशहरा रात्रिभोज एक उल्लेखनीय घटना थी, जहाँ दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों द्वारा नागरिक प्रतिरोध अभियान के नायक श्री (अभी तक महात्मा नहीं) गांधी थे. वह ब्रिटिश सरकार के सामने भारतीय बसने वालों की आसानी को पेश करने के लिए लंदन आए थे. लेकिन उनका भाषण बहुत संक्षिप्त था –शायद एकाध दर्जन वाक्य-और उतने ही तीखे उदारवादी. उन्होंने अचानक इन शब्दों के साथ भाषण खत्म कर दिया, 'मैं आपके और आज की शाम के वक्ताश्री सावरकर के बीच नहीं आऊंगा.'
उस शाम सावरकर का भाषण शानदार था. उनका विषय राम और रावण के बीच, धार्मिकता और अधर्म के बीच संघर्ष था. उन्होंने इसकी तुलना इसके आधुनिक समकक्ष, ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधीन भारत के संघर्ष से की.
मदन लाल ढींगरा द्वारा कर्जन की हत्या के बाद की गिरफ्तारी तक आसफ सावरकर और उनके समूह के साथ निकट संपर्क में रहे. इंडिया हाउस और सावरकर की बैठकों के बारे में उन्होंने लिखा, “कभी-कभी सावरकर के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से रीडिंग दी जाती थी. उन्होंने भारतीय दृष्टिकोण से 1857की घटनाओं के अपने सर्वेक्षण के लिए सामग्री एकत्र करके इंडिया हाउस पुस्तकालय में काम करने के अपने अवसर का अच्छा फायदा उठाया, और सुंदर लेखन किया था.
ढींगरा द्वारा कर्जन की हत्या से पहले इंडिया हाउस में पिछली बैठक में आसफ ने रविवार की बैठक की अध्यक्षता की थी. आसफ ने ढींगरा की आखिरी मुलाकात को याद करते हुए कहा, "उस दिन वह (ढींगरा) अजीब मूड में था, और उसे किसी चीज की चाहत-सी लग रही थी. मैंने सोचा कि वह पुराने दिन याद कर रहा है. चूंकि नानू का बंगाली गीत, जिसके लिए मैं रुका था, ढींगरा की उर्दू गीत की लालसा को संतुष्ट नहीं करता था, उन्होंने अपने अनुरोध के साथ मेरी ओर रुख किया. मैं ऑर्गन तक गया, और गाया और एक उर्दू ग़ज़ल और एक ठुमरी बजाई. वह आनंद में गोते लगा रहा था, जो मुझे बहुत अधिक लग रहा था.
आसफ को कम ही पता था कि ढींगरा तीन दिन बाद सर कर्जन वायली को मारकर शहादत को गले लगाने जा रहे थे. सावरकर को जल्द ही पकड़ लिया गया और अंडमान भेज दिया गया.
आसफ ने बाद में 1948में अफसोस जताया, "किस तरह आज भाग्य का पहिया विपरीत दिशा में घूम गया है! महात्मा गांधी की हत्या के बाद, सावरकर के घर पर गुस्साई भीड़ ने हमला कर दिया, और पुलिस ने उन्हें बचाया और पहरा दिया. ऐसा प्रतीत होता है कि क्रोधित भीड़ को उन पर महात्माजी के हत्यारे के साथ कुछ संबंध होने का संदेह था.
आसफ अली का यह पहलू हमारे इतिहास की किताबों से हाशिए पर है क्योंकि यह कोई बड़ा राजनीतिक आख्यान खड़ा करने में मददगार नही है. लेकिन यह मिसाल है इस बात की कि भारत की स्वतंत्रता की कहानी मेंजहां हर धर्म, विचारधारा, क्षेत्र, रंग और भाषा के लोग मातृभूमि के सम्मान के लिए लड़े हैं.