क्या उर्दू, हिन्दी दो प्यारी बहनें हैं ?

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  [email protected] | Date 09-11-2023
Are Urdu and Hindi two loving sisters?
Are Urdu and Hindi two loving sisters?

 

-ज़ाहिद ख़ान

9 नवम्बर, पूरी दुनिया में आलमी यौम-ए-उर्दू के तौर पर मनाया जाता है. ये ख़ूबसूरत और शींरी ज़बान अहम तौर पर दक्षिण एशिया में बोली जाती है. दुनिया भर में फ़िलवक़्त तक़रीबन 10 से 15 करोड़ लोग उर्दू बोलने वाले हैं. भारत, पाकिस्तान, मॉरिशस, दक्षिण अफ़्रीका, बहरीन, फ़िजी, क़तर, ओमान, संयुक्त अरब अमिरात, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ईरान, अफ़गानिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान वे मुल्क हैं, जहां उर्दू भाषी लोग बड़ी तादाद में मिल जाते हैं.

 इनमें भी सबसे अधिक भारत में पांच करोड़ से ज़्यादा लोग उर्दू भाषी हैं. इसके बाद पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में 1 करोड़ 87 लाख लोग इस ज़बान के बोलने वाले हैं. बांग्लादेश में 6 लाख 50 हज़ार लोग, तो संयुक्त अरब अमीरात-6 लाख और यूरोपीय देशों में सबसे ज्यादा ब्रिटेन में 4 लाख लोग उर्दू ज़बान के जानकार या बोलने वाले हैं.
 
 उर्दू हमारे देश की शासकीय भाषाओं में से एक है, वहीं पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। देश के जम्मू—कश्मीर सूबे की उर्दू, मुख्य प्रशासनिक भाषा है. यही नहीं तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की भी अतिरिक्त शासकीय भाषा है. पाकिस्तान के अनेक इलाकों, देश के उत्तरी हिस्सों, कश्मीर, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बहुत से लोगों की मादरी ज़बान उर्दू है.
 
उर्दू का मिज़ाज एक मख़्सूस गंगा-जमुनी तहज़ीब, मेल-जोल, मुहब्बत और ख़ुलूस का रहा है. शायर अजय सहाब के उर्दू ज़बान के बारे में ख़ूबसूरत अशआर हैं, ''इश्क़ का राग जो गाना हो मैं उर्दू बोलूँ/किसी रूठे को मनाना हो मैं उर्दू बोलूँ.'' उर्दू ज़बान, हिंदुस्तान में मुस्लिम हुक़ूमत के दौरान तुर्की सिपाहियों और मुक़ामी बाशिदों के बीच संवाद के सुविधाजनक माध्यम के तौर पर विकसित हुई.
 
''ख़ास हिन्दोस्तानी है उर्दू ज़बाँ/मेरी उर्दू ज़बाँ फ़ख़्र-ए-हिन्दोस्ताँ।''(बनो ताहिरा सईद) आगे चलकर यह ‘ज़बान—ए—उर्दू—ए—मुअल्ला’ यानी शाही पड़ाव की ज़बान कहलाई. शायर ग़ुलाम हमदान मुशफी ने तक़रीबन 1780 में पहली मर्तबा उर्दू लफ़्ज़ का इस्तेमाल किया. सूफ़ी शायर अमीर ख़ुसरो ने इस ज़बान को हिंदी, हिंदवी या ज़बान—ए—देहलवी के नाम से ख़िताब किया. यह ज़बान जब दक्षिण में पहुँची, तो दकिनी या दक्खिनी कहलाई, गुजरात में गुजरी यानी गुजराती उर्दू कही गई.
 
 दक्षिण के कुछ अदीबों ने इसे ज़बान—ए-अहल—ए—हिंदुस्तान यानी उत्तरी हिंदुस्तान के लोगों की ज़बान भी कहा. जब शायरी, ख़ास तौर से ग़ज़ल के लिए इस ज़बान का इस्तेमाल हुआ तो इसे रेख़्ता (मिली-जुली बोली) कहा गया. बाद में इसी को ज़बान—ए—उर्दू, उर्दू-ए-मुअल्ला या सिर्फ़ उर्दू कहा जाने लगा। यूरोपीय लेखकों ने इसे आम तौर पर हिंदुस्तानी कहा है.
 
 मुहम्मद हुसैन आज़ाद, उर्दू की उत्पत्ति ब्रजभाषा से मानते हैं. अपनी अहमतरीन किताब 'आब—ए—हयात' में वे लिखते हैं, ''हमारी ज़बान ब्रजभाषा से निकली है.''सच मायने में उर्दू, हिंदी का पूर्वगामी रूप है। फ़ारसी, अरबी, संस्कृत और अनेक स्थानीय बोलियों का मिश्रण है.
 
जिस ज़बान को उर्दू कहा जाता है, उसमें 85 फ़ीसद लफ़्ज़ वे ही हैं जिनका आधार हिंदी का कोई न कोई रूप है. बाक़ी 15 फ़ीसद में फ़ारसी, अरबी, तुर्की और अन्य ज़बानों के लफ़्ज़ शामिल हैं. जो सामाजिक, सांस्कृतिक कारणों से मुस्लिम शासकों के ज़माने में स्वाभाविक रूप से उर्दू में घुल-मिल गए थे.
 
 उर्दू ज़बान, मुकम्मल तौर पर खड़ी बोली पर आधारित है. जिसका व्याकरण हिंदी के समान है. भाषा विज्ञान के आधार पर हिन्दी और उर्दू एक ही भाषा है. ''उर्दू, हिन्दी प्यारी बहनें/प्यार का गहना दोनों पहनें.'' (जौहर रहमानी) सिर्फ़ इनकी लिपि अलग हैं.
 
 नस्तालीक़ लिपि में लिखी गई हिन्दी ज़बान को ही दरअसल, उर्दू कहा जाता है। 1857 क्रांति के दौरान उर्दू, प्रतिरोध की ज़बान बनकर उभरी. पत्रकारिता से लेकर तमाम क्रांतिकारी साहित्य इस ज़बान में लिखा गया. जिसका सबब अंग्रेज़ हुकूमत ने कई उर्दू अख़बारों पर पाबंदी लगा दी. उनको ज़ब्त कर लिया.
 
उर्दू ज़बान में इतिहास, दर्शन के अलावा काफ़ी साहित्य लिखा गया है. उर्दू का अदब, दुनिया की दीगर ज़बानों से कमतर नहीं. अमीर खुसरो, उर्दू के शुरुआती शायर हैं. मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के ज़माने में पंडित चन्द्रभान ने भी बाज़ारों में बोली जाने वाली इस अवामी ज़बान को आधार बनाकर अनेक बेशकीमती रचनाएँ कीं.
 
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