फजल पठान
आज महाराष्ट्र में लाखों छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. कुछ लोग सफल होते हैं, जबकि कईयों को असफलता का सामना करना पड़ता है. लेकिन फिर भी वे हार नहीं मानते. इसलिए वे इस असफलता को सफलता की पहली सीढ़ी बनाते हैं, और दृढ़ निश्चय और ईमानदार मेहनत से सफलता प्राप्त करते हैं. ऐसी ही एक छात्रा हैं साजिदा अब्दुल रशीद मुल्ला, जो अकलुज के शंकरनगर की खाद्य सुरक्षा अधिकारी बन गई हैं.
महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग द्वारा 2023में आयोजित प्रतियोगी परीक्षा के परिणाम हाल ही में घोषित किए गए. हाँ. साजिदा इस परीक्षा में सफल हुई है. यही कारण है कि उनकी और उनके परिवार की हर स्तर पर प्रशंसा हो रही है.
साजिदा की सफलता के बारे में बात करते हुए उनके पिता अब्दुल रशीद मुल्ला कहते हैं, ‘‘साजिदा हमेशा से पढ़ाई में अच्छी थी. उसमें कुछ कर गुजरने का जज्बा था. प्रतियोगी परीक्षा देने का फैसला करने के बाद उसने बहुत जिद और लगातार पढ़ाई की. उसने बिना किसी दबाव के यह सफलता हासिल की है. एक पिता के रूप में, मुझे उस पर बहुत गर्व है और परिवार को भी उस पर बहुत गर्व है.’’
साजिदा को दिए गए सहयोग के बारे में वे कहते हैं, ‘‘मेरी पांच बेटियां हैं. साजिदा सबसे छोटी है. मैं पहले पोस्टमैन का काम करता था. लेकिन जब मेरी तीसरी बेटी की शादी हो गई, तो मैंने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के बाद मैंने अपनी बेटी की पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया. मेरे लिए लड़के और लड़कियां दोनों बराबर हैं. एक पिता के तौर पर, मुझे हमेशा लगता था कि लड़कियों को शिक्षा मिलनी चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए. मैंने हमेशा उन्हें शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया. मेरी सभी लड़कियां शिक्षित हैं. लड़कियों को शिक्षित होना चाहिए, शिक्षित बनें. हम सभी जानते हैं कि अगर एक लड़की शिक्षित होती है, तो वह पूरे परिवार को शिक्षित करती है.’’
साजिदा का परिवार और प्रारंभिक यात्रा
साजिदा अपने परिवार के बारे में जानकारी देते हुए कहती हैं, ‘‘मेरा जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ. हम पाँच बहनें हैं. मेरे पिता पोस्टमैन के तौर पर काम करते थे और फिर पोस्टमास्टर बन गए. उन्होंने इस्तीफा दे दिया है. वे घर पर ही रहते हैं. मेरी माँ घर पर काम करता है. चूँकि मेरे पिता डाकिया हैं, उनका तबादला होता रहता था. जब मेरे पिता का तबादला हुआ, तो हमें दूसरे गाँव में जाना पड़ता था.’’
वह आगे कहती हैं, ‘‘मैंने मालशिरस तालुका के जिला परिषद गर्ल्स स्कूल में चौथी कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की. उसके बाद मेरे पिताजी का तबादला अकलुज के यशवंतनगर में हो गया. फिर पांचवीं से दसवीं तक उन्होंने लक्ष्मीबाई गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की. मैं पांचवीं कक्षा से ही स्कूल में नंबर वन था. 10वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास करने के बाद मैंने मालशिरस तालुका के सदाशिवराव माने कॉलेज में प्रवेश लिया. मुझे 11वीं और 12वीं में भी अच्छे अंक मिले. यह कहना सही होगा कि इससे मैं अधिक बुद्धिमान बन गयी. इसके बाद मैं बीएचएमएस में दाखिला लेना चाहता था. इसके लिए मैंने छम्म्ज् की परीक्षा दी. वहां भी मुझे अच्छे अंक मिले लेकिन मुझे बीएचएमएस में प्रवेश नहीं मिल सका.’’
अधिकारी बनने की प्रेरणा
किसी भी लक्ष्य या सपने को प्राप्त करने के लिए ईमानदारी से काम करना, समर्पण और निरंतरता महत्वपूर्ण है. लेकिन हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी प्रेरणा की आवश्यकता है. अधिकारी बनने की अपनी प्रेरणा के बारे में बात करते हुए साजिदा कहती हैं, ‘‘मुझे बीएचएमएस में एडमिशन नहीं मिला. दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना जरूरी था. मेरे एक भाई ने बीएससी एग्रीकल्चर किया था. इसके बाद वह एग्रीकल्चरल ऑफिसर बन गए. उन्हें देखते हुए, मैंने भी बीएससी एग्री करने का फैसला किया. मेरे 12वीं में अच्छे पर्सेंटेज थे, इसलिए मैंने एग्री करने का फैसला किया. मुझे तुरंत कॉलेज में एडमिशन मिल गया. मैंने राजश्री छत्रपति शाहू महाराज में एडमिशन लिया. कोल्हापुर में कृषि महाविद्यालय, जो राहुरी में महात्मा फुले कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत आता है. मैंने इसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. फिर मैंने स्नातकोत्तर के लिए राहुरी में विश्वविद्यालय में फिर से प्रवेश लिया.’’
वह आगे कहती हैं, ‘‘हमारे विश्वविद्यालय में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक मंच है. छात्र यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. विश्वविद्यालय से स्नातक कर अधिकारी बने सभी लोग नए छात्रों का मार्गदर्शन करने के लिए वहां आते हैं. वहां व्याख्यान भी होते हैं. इन्हें देखते हुए अधिकारियों और मेरे भाई ने कहा, यह देखकर मुझे अधिकारी बनने की प्रेरणा मिली.’’
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी
आज लाखों छात्र पुणे, मुंबई, दिल्ली जैसी जगहों पर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. दूसरी ओर, ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के प्रति छात्रों का रुझान बढ़ रहा है. अपनी तैयारी के बारे में बात करते हुए साजिदा कहती हैं, ‘‘विश्वविद्यालय में दाखिला मिलने के बाद मैंने 2021में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. मैंने सुना था कि प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों को अपना प्लान बी मजबूत रखना चाहिए. इसलिए मुझे हमेशा लगता था कि मुझे अपने प्लान बी की जरूरत है. इसलिए मैंने यूनिवर्सिटी में रहकर पोस्ट-ग्रेजुएशन किया. और साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की पढ़ाई भी की. दोनों कोर्स एक साथ करना मुश्किल था. लेकिन अगर मैं प्रतियोगी परीक्षाओं में फेल हो जाता, तो मैंने तय कर लिया था कि मैं पूरी पढ़ाई करूंगी, तो मेरी एमएससी और नौकरी मिल जाएगी.’’
पढ़ाई के दौरान आने वाली कठिनाइयों के बारे में बात करते हुए साजिदा कहती हैं, ‘‘मैं पीसीओडी से पीड़ित हूं. दोनों विषयों का अध्ययन करने से शारीरिक और मानसिक कष्ट होता था.’’
वह आगे कहती हैं, “घर में भी कुछ समस्याएं थीं. मेरी माँ को मस्तिष्क ट्यूमर होने का पता चला. फिर मैं भी असफल हो गई. मैंने एग्री एमपीएससी परीक्षा दी थी. मैंने उसमें प्रारंभिक योग्यता प्राप्त कर ली थी. उसके बाद मुख्य भोजन परोसा गया. लेकिन उस समय मैं साक्षात्कार देने में असमर्थ था क्योंकि मेरे अंक पच्चीस अंक कम थे. मेरे सभी दोस्त इसमें पास हो गये थे. ये सारी बातें एक ही समय पर घटित हुईं. इससे बहुत तनाव पैदा होगा. लेकिन मैं स्थिर रहना चाहता था. मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहता था. ष्मैंने यही किया और फिर से पढ़ाई शुरू कर दी.’’
और साजिदा सफल हुई
साजिदा ने 2021में पहली बार एमपीएससी परीक्षा दी थी. उसने अपने पहले प्रयास में ही प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. जैसा कि उन्होंने बताया, वह साक्षात्कार देने में असमर्थ थीं, क्योंकि उनसे पच्चीस अंक कम थे. इस वजह से उन्होंने 2022में फिर से परीक्षा देने का फैसला किया. उसने भी परीक्षा दी थी, लेकिन मैं उस समय प्रारंभिक परीक्षा पास नहीं कर सका था. फिर 2023में उन्होंने खाद्य सुरक्षा विभाग के लिए परीक्षा दी. वह इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई है. अब साजिदा खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पद पर काम करेंगी.
छात्रों के लिए अनुभव से सलाह
प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों को असफलता से उबरने के लिए वह क्या सलाह देंगी, यह पूछे जाने पर साजिदा कहती हैं, ‘‘प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों के पास शुरुआत में ही एक मजबूत प्लान बी होना चाहिए. उन्हें उसी के अनुसार पढ़ाई करनी चाहिए. प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाले छात्रों को हर कोई सलाह देता है. छात्र बिना देखे ही अधिकारी बन जाते हैं. व्यक्तियों से मार्गदर्शन लेना चाहिए. उसी तरह से अध्ययन करना चाहिए.’’
वह आगे कहती हैं, ‘‘इस परीक्षा में बैठने वाले छात्र सालों तक अध्ययन करते हैं. इसके बजाय, मेरा मानना है कि उन्हें यह तय करना चाहिए कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं पर कितने साल खर्च करने चाहिए. हमें असफलता पर चिंतन करना चाहिए. हमें बुद्धिमानी से पढ़ाई करनी चाहिए, रटकर नहीं. इससे आप कम समय में अधिक अध्ययन कर सकेंगे. इससे हमें भी लाभ होता है.’’