भारत की पहली महिला ट्रांस फोटो जर्नलिस्ट जिसने ट्रेन में भीख मांगकर कैमरा खरीदा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 14-07-2021
संघर्ष का रास्ताः जोया लोबो भारत की पहली ट्रांस महिला फोटो जर्नलिस्ट हैं
संघर्ष का रास्ताः जोया लोबो भारत की पहली ट्रांस महिला फोटो जर्नलिस्ट हैं

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

हमारे समाज में एलजीबीटीक्यूआइए प्लस समुदाय को लेकर एक अजीब-सी धारणा बनी हुई है. लेकिन अब वक्त आ गया है कि समाज में उन्हें लेकर भेदभाव और गैर-बराबरी खत्म की जाए. इस समुदाय के कई सारे लोग हैं जो समाज के दकियानूसी रवैए से लड़ते हुए अपने लिए बेहतर मुकाम तो तलाश ही रहे हैं, अपनी पहचान भी बना रहे हैं.

ऐसी ही एक ट्रांस महिला हैं जोया लोबो, जो भारत की पहली ट्रांस फोटो जर्नलिस्ट हैं.

जोया का जन्म मुंबई के एक सामान्य परिवार में हुआ था. वह काफी छोटी थीं तभी उनके पिता की मौत हो गई और जोया और उनकी बहन की जिम्मेदारी मां पर आ गई. समाज के दकियानूसी रवैए और एलजीबीटीक्यूएआइ प्लस समुदाय को लेकर बनी नकारात्मक धारणा की वजह से वह अपनी यौनिकता के बारे में परिवार में बताने से भी झिझक रही थीं. लेकिन 18 साल की उम्र में उनके लिए अपनी पहचान छिपा पाना मुश्किल हो गया, तब जाकर उन्होंने परिवार के साथ बात साझा की. इसके बाद उनके लिए जिंदगी मुश्किल होती चली गई.

उन्हें परिवार छोड़ना पड़ा और अपने समुदाय के ज्यादातर लोगों की तरह गुजारे के लिए उन्हें भी लोकल ट्रेनों में भीख मांगनी पड़ी.

मैक कॉस्मेटिक से अपने इंटरव्यू में जोया ने कहा, “आज जब मेरी बहन अखबारों में मेरे बारे में पढ़कर मुझे तारीफ भेजती है तो मुझे लगता है अब मैं स्वीकार की जा रही हूं. मैं परिवारों को बताना चाहती हूं कि अगर आपके घरों में कोई ट्रांस बच्चा है तो कृपया उसे अपना समर्थन दें. शिक्षित करें ताकि उन्हें लोकल ट्रेनों में भीख न मांगनी पड़े.”

बहरहाल, जिन दिनों वह लोकल ट्रेनों में भीख मांग रही थीं उसी दौरान उन्हें ‘हिजड़ा-शाप कि वरदान’ नामक शार्ट फ़िल्म में एक छोटी भूमिका निभाने का मौका मिला. इस फिल्म को काफी तारीफ मिली और इसके बाद उनकी पहचान बननी शुरू हुई.

फेमिनिज्म इन इंडिया नामक वेबसाइ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, “इसी कार्यक्रम में ‘कॉलेज टाइम्स’ के सह-संपादक से उनकी मुलाकात हुई जिसने इनकी क्षमताओं को पहचानते हुए इन्हें रिपोर्टर नियुक्त किया. हालांकि इस दौरान तक भी उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि आगे क्या बदलाव होने वाला है, फिर भी ज़ोया ने महसूस किया कि तस्वीरें खींचने और कैमरे को लेकर उन्हें एक खास तरह की दिलचस्पी है. उन्होंने भीख मांगते हुए अपनी जमा पूंजी जुटाई और पहली बार अपने लिए एक सेकंड-हैंड कैमरा ख़रीदा. वह लगातार तस्वीरें खींचते हुए इसमें पारंगत होने की कोशिश करती रहीं लेकिन अभी भी वह आजीविका चलाने के लिए ट्रेनों में भीख मांगती थीं.”

असल में, कोरोना महामारी की पहली लहर में लॉकडाउन के दौरान दिहाड़ी मज़दूरों और रोजाना कमाने वाले लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया. जाहिर है, इसका असर ट्रांस समुदाय के लोगों पर भी पड़ा.

ट्रेनें बंद थीं ऐसे में भीख का जरिया भी खत्म हो गया. जोया स्लम में एक किराए के मकान में रहती थीं. उनके पास रोटी के पैसे नहीं थे, किराया दूर की बात. इन्हीं दिनों, मुंबई से घरों को लौटने के लिए बेताब प्रवासी मजदूरों की त्रासदी को उन्होंने अपने कैमरे में कैद किया. उनकी मार्मिक तस्वीरों का कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों ने इस्तेमाल किया और हर बाइलाइन के साथ जोया के पहचान का संकट भी मिटता चला गया.

जोया अपनी तस्वीरों के जरिए दुनिया का सच सामने रखना चाहती हैं. वह ट्रांस समुदाय के लोगों को मीडिया और फोटोग्राफ़ी की ट्रेनिंग देना चाहती हैं. 26 साल की जोया अब एक स्वतंत्र फोटो जर्नलिस्ट की पहचान बना चुकी हैं. उन्हें बॉम्बे न्यूज़ फोटोग्राफर असोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में महाराष्ट्र के श्रम मंत्री द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. साथ ही क्वीयर समुदाय के लिए काम करनेवाली संस्था ‘हमसफ़र ट्रस्ट’ की ओर से उन्हें भारत की पहली महिला ट्रांस फोटोजर्नलिस्ट का तमगा भी दिया जा चुका है.