स्लम के बच्चों की जिंदगी के रहनुमा बने अबुल हसन

Story by  संदेश तिवारी | Published by  [email protected] | Date 06-07-2021
स्लम के बच्चों की जिंदगी के रहनुमा बने अबुल हसन
स्लम के बच्चों की जिंदगी के रहनुमा बने अबुल हसन

 

सन्देश तिवारी / कानपुर
 
स्लम के बच्चों की जिंदगी में रोशनी भरने का काम करना हर किसी के वश की बात नहीं. इस नेक काम के साथ गरीब परिवार के बच्चों की मुफ्त शिक्षा का बीड़ा उठाया जाए तो सभ्य समाज में इससे बड़ा उदाहरण कोई और नहीं हो सकता.
 
इसकी जीती-जागती तस्वीर हैं ह्यूमन काइंड संस्था के फाउंडर अबुल हसन. जो अपने बच्चों की तरह गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा से लेकर पहनने- ओढ़ने तक का खर्चा उठाकर उनकी जिंदगी में रोशन भर रहे हैं. 
 
ऐसे शिक्षक , समाजसेवी या यूं कहे कि रहनुमा या अगर इन्हें रियल जिंदगी का हीरो कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. ये उन बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का उजियारा भर रहे हैं जो हमारे ही बीच तो रहते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी अलग है.
 
कभी इन बच्चों के दिन की शुरुआत भिक्षावृत्ति से होती थी. कभी पन्नी और कबाड़ बीनने से.  लेकिन, कानपुर के जूही मील बांग्ला निवासी अबुल हसन के एक प्रयास ने नगर के स्लम की जिंदगी पूरी तरह बदल दी है. हाथों में किताबें लिए ये बच्चे उज्जवल भविष्य का सपना संजो रहे हैं.
 
अबुल हसन के एक प्रयास ने अब तक करीब 500 बच्चों की जिंदगी बदली है. जो बच्चे पहले भीख मांगते थे या कबाड़ बीनते थे वो आज सरकारी स्कूलों में जिंदगी का पाठ सीख रहे हैं. अबुल हसन का प्रयास लगातार जारी है.
 
वो आज भी शहर के स्लम एरिया में गरीब बच्चों को रोजाना पढ़ाते हैं. वह बताते हैं, शहर की जिन बस्तियों में लोग जाने से कतराते हैं नाक-भौं सिकोड़ते हैं. उन बस्तियों के बच्चों का भविष्य अगर उनके थोड़े से प्रयास से संवरता है तो वह जिंदगी भर ऐसे प्रयास को करने के लिए तैयार हैं.
 
 

3 साल पहले शुरु हुई स्लम एरिया ‘क्लास‘

 

स्लम एरिया में शिक्षा का उजियारा फैलाने का ये प्रयास अबुल हसन ने करीब 3 साल पहले शुरु किया था.  बताते हैं कि एक दिन जब उन्होनें शिक्षा से दूर बच्चों को भिक्षावृत्ति करते, पन्नी और कबाड़ा बीनते, बाल मजबूरी करते देखा तो मन इनको शिक्षा देने और इन बच्चों की भविष्य की दिशा बदलने का हुआ.
 
बस फिर क्या था वो हाथ में टाटपट्टी और बोर्ड लेकर झुग्गी बस्तियों में निकल पड़े. बच्चों को आवाज देकर इकहट्ठा किया. उनके माता-पिता को समझाया और स्लम एरिया जूही में पहली क्लास लगाई. धीरे धीरे क्लासेस की नई और पुरानी बस्ती के साथ ही चल पड़ीं. दिन बीतते गए.
 
हर रोज की क्लास हर रोज का नया अनुभव. कभी सुखद तो कभी मन में खटास पैदा करने वाला, लेकिन वह रुके नहीं. वक्त के साथ उनके डॉ मित्र रफीकुद्दीन ने उनका साथ दिया.उनके साथ स्लम के बच्चों के दर्द की दास्तां कही. हम दोनों ने ये कसम खाई कि स्लम कबच लिए कुछ करके दिखाएंगे. फिर जूही कालोनी में ही साल 201ह्यूमन काइंड नाम की संस्था की स्थापना की .
 
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500 बच्चे ले चुके हैं प्रवेश

 

करीब 3 साल पहले किया गया अबुल हसन के प्रयास का परिणाम है कि अभी तक 500 से ज्यादा बच्चों को पढ़ाई करवा कर वे सरकारी स्कूल में प्रवेश दिला चुके हैं. हसन बताते हैं कि उन्हें ये पता है कि इन बच्चों के माता-पिता भी इन्हें पढ़ाई के लिए सामग्री उपलब्ध नहीं करा सकते, कुछ जागरुकता की कमी के कारण और कुछ गरीबी के कारण इसलिए हसन ने पहले अपनी सफल शिक्षा समिति ह्यूमन काइंड के माध्यम से इनके लिए पढाई की सामग्री जुटाई और फिर सेवाभावी मित्र रफुकुद्दीन के सहयोग से यहां स्कूल के लिए जरूरी हर सामग्री दी जाने लगी.
 
हम लोग अपना त्यौहार, जन्मदिन मनाने इन्हीं बस्तियों में इन्हीं बच्चों के पास पहुंचते हैं और वहीं उत्सव मनाकर इन बच्चों को उपहार भी बांटते हैं. बच्चों की क्लास भी ऐसी हो गईं हैं कि किसी भी आगंतुक के आते ही सब खड़े होकर गुड मार्निंग सर कहना नहीं भूलते.अंकों की भाषा, अंग्रेजी और हर विषय को समझाने में हसन बच्चों के साथ बच्चे बन जाते हैं.
 
इस दौरान बच्चों को गणित , इंग्लिश , हिंदी , सामान्य जानकारी , सामान्य इतिहास , सामान्य भूगोल की तालीम दे रहे हैं .वह कहते हैं कि किसी बात को समझने के लिए पहले बच्चों को अनुभव की जरूरत होती है. अनुभव में चीजों को देखना, सुनना, छूना, चखना, सूंघना आदि कुशलताएं शामिल हैं.
 
बच्चों में नया कुछ करने की हमेशा चाहत रहती है. वे बताते हैं कि झारखड में वहां के बच्चे दो माचिस की डिब्बियों की मदद से वह डम्पर ट्रक बनाकर खेल रहे थे. उसमें लीवर का काम करने के लिए तीली का इस्तेमाल किया गया था. इसे देखकर हम आश्चर्यचकित हुए.
 
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क्रिकेट खेल से प्रेरणा

 

अबुल हसन कहते हैं कि संस्था के डॉ रफीकुद्दीन और हम , दोनों ही जूही कालोनी के मैदान में रोज क्रिकेट खेलने जाते थे .यही पर स्लम के बच्चे आकर क्रिकेट का खेल देखते थे .ये बच्चे कूड़ा , पन्नी की बोरी लेकर मैदान के किनारे खड़े होकर खेल देखते थे .
 
उस दौरान मै और रफीक वीरेंद स्वरुप शिक्षा संसथान में पढाई कर रहे थे .मेरे मन में इन बच्चों के लिए हमदर्दी रही .रफीक ने भी कुछ ऐसा ही बोला कि मेरे मन में इन्हें शिक्षित कर स्कूल में दाखिले की अलख जागी. शुरूआत में बच्चों की हालत और उनके रहनसहन को देखकर यह बात जहन में आ गई थी कि इन बच्चों को यदि बेहतर तालीम मिल जाए तो उनका भविष्य बन सकता है.
 
लिहाजा जूही क्षेत्र में कक्षा शुरू करने का विचार किया. ह्यूमन काइंड की स्थापना के साथ सभी साथियों ने स्लम क्षेत्रों का भ्रमण किया.  आसपास बच्चों को मार्गदर्शन की आवश्यकता है. बच्चों और उनके पालकों से संपर्क किया गया, जिसमें वे सब तैयार हो गए और हमने कक्षाएं शुरू कर दी.
 
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बच्चे नहीं जाते थे स्कूल

 

 
कक्षाएं लगाने के बाद यह सामने आया कि बच्चों को शिक्षा के साथ सर्वागिण विकास की आवश्यकता है. कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो स्कूल में नाम लिखे होने के बावजूद स्कूल नहीं जाते थे. कक्षाएं शुरू होने से यह हुआ कि बच्चे धीरे-धीरे स्कूल जाने लगे. बच्चे पढ़ाई के लिए एकत्र होने लगे.बच्चों के पालक भी उन्हें भेजने लगे.
 
 

शुरू में हुई कठिनाई


कक्षाएं शुरू होने के दौरान बच्चों से घुलने मिलने में कुछ कठिनाई सामने आई लेकिन पढ़ाई का तरीका बदल दिया गया.प्रारम्भ में कहानी, कविता, ज्ञानवर्धक खेलों से बच्चों को जोड़ा गया. 
 
 

ये है मुख्य उद्देश्य

 

ह्यूमन काइंड संस्था का प्रमुख उददेश्य बच्चों को शिक्षा देने के साथ आंतरिक प्रतिभा, कला कौशल विभिन्न क्रियाकलाप जैसे  नाट्य, नृत्य, कौशल, कार्य कुशलता, क्रियात्मकता का विकास हो.उन्हें इस स्तर तक शिक्षित करें कि वे अच्छे स्कूल में प्रवेश पा सके.
 
 

सिखाई जा रही जीवन जीने की कला

 

 
वर्तमान में बच्चों को जीवन जीने की कला, हिंदी एवं अंग्रेजी पाठन, लिखना आदि पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. बच्चों के मस्तिष्क विकास हेतु नाटक, योगा ध्यान पर फोकस करते हुए विभिन्न क्रियाकलाप कराए जा रहे है. जिससे उनका कौशल विकास हो सके.
 
 

ये हैं टीम के सदस्य

 

हसन बतातें है कि उनके अलावा उनके साथ डॉ मोहम्मद शकील, हब्बीब खान भी है जो संस्था के जरिये स्लम में रोशनी कर रहे हैं.डॉ मोहम्मद शकील का कहना है कि बच्चों का भविष्य संवारने के लिए हम उन्हें शिक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. पाठन सामग्री आदि की मदद हमें हेल्पिंग हैंडस संस्था से मिल रही है.
 
 

 4 राज्यों के प्रेरणा स्रोत 

 

एक शख्स अबुल हसन ने स्लम के गरीब बच्चों को पढ़ने और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का बीड़ा उठाया है.  उनकी चिंता है कि हमारे देश में बल्कि दुनिया के कई देशों में स्लम के बच्चे पढ़ नहीं सकते. जब वे कचरे या बेकार सामान से अपने खेलते हैं, तो इससे उन्हें बेहद खुशी होती है.
 
ऐसे में इन बच्चों को पढ़ाने के लिए उनकी संस्था ने झारखण्ड, बिहार , पंजाब और उत्तर प्रदेश में स्कूल खोले हुए है . यहां उनकी टीम के कुल 14 लोग और 400 वालेंटियर काम कर रहे हैं.यूपी में बुलंदशहर,  इलाहाबाद में भी  अबुल हसन द्वारा स्लम के बच्चों को मुफ्त तालीम देकर उन्हें शिक्षित किया जा रहा है.
 
ऐसे बच्चों को शिक्षा के साथ उनके रहन सहन में भी बदलाव कर रहे है . साथ ही कौशल विकास और नैतिक ज्ञान की ओर अग्रसर किया जा रहा है. यह प्रयास वर्ष 2018 से किया जा रहा है. शुरूआती दौर में बच्चों को कानपुर के स्कूल लाने का प्रयास किया गया. इसके लिए बच्चों के पालकों से बातचीत कर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया गया गया.लेकिन अब संस्था ने यूपी के बुलंदशहर , इलाहाबाद में भी स्लम के बच्चों को शिक्षित करने का काम शुरू किया है .
 
लोगों की जागरूकता का नतीजा यह सामने आया कि लोग अपने बच्चों को शिक्षा के लिए खुद ब खुद भेज रहे है.  इस दौरान  अंग्रेजी और हिन्दी मीडियम है . हुनरमंद बच्चों की कला को तराशा भी जाता है. इसमें बच्चों को ड्राइंग, कॉफ्ट वर्क, राखी मेकिंग आदि सहित खेल में आगे बढ़ाया जाता है. हर दूसरे वर्ष खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. ये सब शिक्षा पूरी तरह से निःशुल्क शिक्षा दी जा रही है.
 

वरदान से कम नहीं 

 

हसन गरीब अभिभावकों के लिए वरदान से कम नहीं है. कई ऐसे बच्चे सामने आए, जिन्होंने कभी सामान्य बच्चों की तरह जीवन जी पाने की बात सोची ही नहीं थी. आज स्वस्थ्य होकर अब मुस्कुरा रहे हैं. बच्चों को नई जिंदगी मिल रही है. इसके तहत हर साल बच्चों का चिह्नांकन कर उन्हें स्वस्थ्य  सुविधा दी जा रही है.  इस जिम्मेदारी को डॉ रफीक बखूबी निभा रहे है .