न्यूयॉर्क/वाशिंगटन
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक नई घोषणा की, जिसके तहत एच1बी वीजा शुल्क को सालाना 100,000 अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा दिया जाएगा। इस कदम से अमेरिका में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों और उच्च-कुशल कामगारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
व्हाइट हाउस के स्टाफ सचिव विल शार्फ ने बताया कि एच1बी वीजा देश की मौजूदा आव्रजन प्रणाली में “सबसे अधिक दुरुपयोग किए जाने वाले वीजा कार्यक्रमों” में से एक है। इसके तहत उन उच्च-कुशल कामगारों को अमेरिका आने की अनुमति दी जाती है, जो ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां अमेरिकी कामगार उपलब्ध नहीं होते।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि 1,00,000 डॉलर का शुल्क यह सुनिश्चित करेगा कि अमेरिका में लाए जाने वाले लोग वास्तव में उच्च-कुशल और असाधारण हों और अमेरिकी कामगारों के अवसरों पर असर न डालें। इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी कामगारों की सुरक्षा के साथ-साथ कंपनियों के लिए केवल “वास्तव में उत्कृष्ट” प्रतिभाओं को नियुक्त करने का रास्ता खोलना है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने ओवल ऑफिस में वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक की मौजूदगी में घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा, “हमें कामगारों की जरूरत है, हमें बेहतरीन कामगारों की जरूरत है और यह कदम सुनिश्चित करेगा कि केवल उच्च-कुशल लोग ही आएं।”
लुटनिक ने बताया कि वर्तमान रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड कार्यक्रम के तहत औसतन प्रति वर्ष 281,000 लोगों को प्रवेश मिलता है, जो औसतन 66,000 अमेरिकी डॉलर कमाते हैं और सरकारी सहायता कार्यक्रमों में शामिल होने की संभावना अधिक होती है। उन्होंने कहा कि अब से केवल शीर्ष दर्जे के असाधारण लोगों को ही वीजा मिलेगा, जिससे अमेरिकी खजाने में सालाना 100 अरब डॉलर से अधिक की राशि जुटाई जाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय का भारतीय आईटी पेशेवरों और अन्य उच्च-कुशल कर्मचारियों पर गहरा असर पड़ेगा, क्योंकि एच1बी वीजा तीन साल के लिए वैध होता है और इसे अगले तीन साल के लिए नवीनीकृत किया जा सकता है। इस नई नीति के लागू होने के बाद कंपनियों को अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजने में अधिक वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ सकता है।