इस्लामाबाद. विशेषज्ञों ने पाकिस्तान को तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगानिस्तान में हालिया घटनाओं के मद्देनजर सावधानी से चलने के लिए आगाह किया और इस्लामाबाद को अफगान मुद्दे की निगरानी से बचने के लिए कहा.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में ‘ग्रेट गेम’ का कोई अंत नहीं है और पाकिस्तान को सावधान रहना चाहिए और रूस, चीन, ईरान और यहां तक कि मध्य एशियाई राज्यों सहित क्षेत्रीय देशों को अफगानिस्तान के मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए ‘क्षेत्रीय दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए.
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज (पीआईपीएस) द्वारा आयोजित ‘अफगान शांति प्रक्रिया का समर्थनः पाकिस्तान की स्थिति, हित और नीति विकल्प’ नामक एक परामर्श में विशेषज्ञों द्वारा ये विचार व्यक्त किए गए थे.
विश्लेषकों में मौजूदा और पूर्व सांसद, शिक्षाविद, पूर्व राजदूत, पूर्व सैन्य अधिकारी, वरिष्ठ पत्रकार और विभिन्न धार्मिक और राजनीतिक दलों के पदाधिकारी और अन्य शामिल थे.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पेशावर विश्वविद्यालय के एक शिक्षक सैयद इरफान अशरफ ने कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के इतिहास, पश्तूनों की पहचान और वहां से उत्पन्न होने वाले खतरे सहित अफगानिस्तान के बारे में कई चीजों की निगरानी कर रहा है.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, कायद-ए-आजम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जफर नवाज जसपाल ने कहा, “यह अतार्किक है, अगर आपको लगता है कि अफगानिस्तान में कोई प्रॉक्सी वार नहीं है ... युद्ध आधारित अर्थव्यवस्था है.”
उन्होंने याद दिलाया कि टीटीपी और अन्य आतंकवादी समूह तालिबान के पूर्व सहयोगी थे.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के लिए सबसे अच्छा विकल्प अपनी सीमाओं की सुरक्षा को मजबूत करना है.
पूर्व सीनेटर अफरासियाब खट्टक ने भविष्यवाणी की कि अफगानिस्तान को और अधिक अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि वहां एक नया ‘ग्रेट गेम’ शुरू हो गया है.
इस्लामिक विचारधारा परिषद के अध्यक्ष किबला अयाज ने तालिबान को शामिल करने के लिए धार्मिक और उलेमा कूटनीति की आवश्यकता पर बल दिया.
पूर्व सीनेटर और पीपीपी नेता फरहतुल्ला बाबर ने कहा कि पाकिस्तान को तालिबान को मान्यता नहीं देनी चाहिए, लेकिन पड़ोसी देश के लोगों को अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए, नहीं तो उस पर छलकाव का असर होगा.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व विदेश सचिव इनाम-उल-हक ने कहा कि पाकिस्तान को यह धारणा देने से बचना चाहिए कि ‘तालिबान की जीत उसकी अपनी जीत थी,ख् क्योंकि इस मोर्चे पर उसके पास अफगानिस्तान में मानवीय संकट से निपटने सहित कुछ विकल्प हैं.
हक ने कहा, “पाकिस्तान को दुनिया को बताना चाहिए कि न तो हम वार्ताकार हैं और न ही तालिबान के संदेश वाहक.”