नेपाल आमचुनाव: पुराने राजनीतिक दल और नेताओं के लिए खतरे की घंटी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 23-11-2022
नेपाल आमचुनाव: पुराने राजनीतिक दल और नेताओं के लिए खतरे की घंटी
नेपाल आमचुनाव: पुराने राजनीतिक दल और नेताओं के लिए खतरे की घंटी

 

पंकज दास /काठमांडू

नेपाल में 20 नवंबर को आमचुनाव के बाद अभी मतगणना का काम जारी है. अब तक प्राप्त रूझानों और नतीजों ने किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने की उम्मीद नहीं दिख रही है.राजनीतिक दलों के दावों और ओपिनियन पोल, एक्जिट पोल के सारे कयासों को झूठा साबित करते हुए एक नई राजनीतिक पार्टी ने सबके लिए खतरे की घंटी बजा दी है.

नेपाल के आम चुनाव के नतीजों में राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी की दमदार उपस्थिति ने पुरानी सभी पार्टियों और नेताओं की नींद हराम कर दी है. नेपाल के दो चार प्रमुख दलों के कुछ बडे़ नेताओं की मुठ्ठी में जकड़े नेपाल की राजनीति को उनके चंगुल से मुक्त कराने के लिए नेपाल स्वतंत्र पार्टी ने घंटी चुनाव चिह्न लेकर पहली बार अपनी उम्मीद्वारी दी थी.

महज छह महीने पहले नेपाल की राजनीति का चाल चरित्र और चेहरा बदलने के लिए कुछ युवाओं ने मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. इस चुनाव में जनता भले उन्हें अधिक सीटें न दे, पर उनके प्रयास की हौसलाअफजाई जरूर की गई है.

अब तक इस पार्टी को करीब एक दर्जन क्षेत्र में बढ़त मिली हुई है. राजधानी की तीन महत्वपूर्ण सीट इनके खाते में जा चुकी है और काठमांडू की ही चार अन्य सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. इतना ही नहीं समानुपातिक वोटों की गिनती में भी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी को कांग्रेस और एमाले के बाद तीसरा सबसे अधिक वोट मिल रहे हैं. माओवादी और अन्य पुरानी पार्टियां काफी पीछे चल रही हैं.

छह महीने पहले जब नेपाल में स्थानीय चुनाव हुआ तो काठमांडू महानगरपालिका के मेयर के पद पर बडे़ राजनीतिक दल के धुरंधर नेताओं को धूल चटाते हुए एक 34 वर्षीय युवा बालेेंद्र साह को भारी मत से विजय बनाया. किसी ने सोचा ही नहीं था कि तीन चार राजनीतिक दलों के चंगुल में फंसे राजनीति को युवाओं का इतना प्यार मिलेगा, लेकिन नेपाल के चर्चित रैपर कलाकार बालेेंद्र साह जो कि पेशे से स्ट्रकचरल इंजीनियर हैं. उन्होंने मेयर बनकर सभी राजनीतिक पंडितों के होश गायब कर दिए.

इससे उत्साहित होकर राजनीति में बदलाव चाहने वाले कुछ युवाओं ने जनता के नब्ज को टटोल लिया और परमपरागत और रूढ़ीवादी राजनीतिक दलों से निजात पाने के उनकी भूख को जानकर उनके सामने ताजा युवा चेहरा को चुनाव में परोस दिया.

इसकी अगुवाई की नेपाल के ही एक चर्चित पत्रकार ने जिसका नाम है रवि लामिछा ने, छह महीने पहले तक नेपाल के एक निजी टीवी चौनल पर जनता के साथ सीधा संवाद नाम का सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम चलाने वाले रवि हमेशा ही राजनीति में युवाओं की सहभागिता और वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति की वकालत करते रहे, लेकिन स्थानीय चुनाव में जब बालेन्द्र साह को उम्मीदों से कहीं बढ़कर जनता का प्यार मिला तो कुछ ही दिन के बाद पत्रकारिता को अलविदा कह कर वो राजनीति के मैदान में कूद गए.

रवि लामिछाने के इस प्रयास में देशभर के होनहार युवाओं ने साथ दिया. कोई डॉक्टरी पेशा छोड़ कर, कोई अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर, कोई सरकारी नौकरी छोड़ कर तो कोई निजी कंपनी के लाखों की कमाई को छोड़ कर चुनावी मैदान में कूद गया. इस चुनाव में करीब दर्जनभर स्थानों पर उनके उम्मीद्वार आगे चल रहे हैं. कई स्थानों पर स्वतंत्र पार्टी के उम्मीद्वार की वजह से बडे़ दल के नेताओं की हार हो रही है.

इस पार्टी के आने से सबसे अधिक नुकसान सत्तारुढ़ कांग्रेस, माओवादी और प्रतिपक्षी एमाले को हो रहा है. उनके बडे़-बडे़ नेता इसकी चपेट में आ गए हैं और चुनाव हार रहे हैं. काठमांडू की महत्वपूर्ण तीन सीटें जितने औरचार अन्य पर बढ़त बनाए जाने से यहां की पुरानी पार्टी के बडे़ चेहरे को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है.

माओवादी की दो दिग्गज महिला नेता पूर्व स्पीकर ओनसरी घर्ती और वर्तमान ऊर्जा मंत्री तथा माओवादी पार्टी की प्रवक्ता पम्फा भुषाल तक को हार का सामना करना पड़ रहा है.स्वतंत्र पार्टी के मैदान में होने से पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की पार्टी के दूसरे सबसे बडे़ नेता ईश्वर पोखरेल अपने ही क्षेत्र से चुनाव हार गए हैं.

जबकि ओली की पार्टी के महासचिव शंकर पोखरेल भी हार के करीब हैं. स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष रवि लामिछाने के खिलाफ चुनाव लड रहे नेपाल के शिक्षा मंत्री उमेश श्रेष्ठ बहुत पीछे चल रहे हैं. वैसे रवि लामिछाने ने पहले तो माओवादी पार्टी के अध्यक्ष प्रचंड के खिलाफ चुनाव लडने की घोषणा की थी लेकिन अंतिम समय में प्रचंड ने अपने गृह नगर चितवन से हारकी डर से मैदान छोड़ दिया और अपनी परंपरागत सीट छोड़ कर जीत सुनिश्चित करने के लिए चीन की सीमा से सटे गोरखा जिला चले गए.

रवि लामिछाने की पार्टी ने कांग्रेस एमाले माओवादी के बडे़ बडे़ नेताओं का खेल बिगाड़ दिया है. सरकार में मंत्री रहे कई नेताओं को हार का सामना करना पड़ सकता है. नेपाल में इस नए वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति के कारण एक बात तो तय है कि यहां की राजनीति अब बहुत दिनों तक 70 नेताओं के हाथ में नहीं रहने वाला है.