लंदन में गांधी बनाम गोडसे नाटक का मंचन

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
लंदन में गांधी बनाम गोडसे नाटक का मंचनGandhi vs Godse drama staged in London
लंदन में गांधी बनाम गोडसे नाटक का मंचनGandhi vs Godse drama staged in London

 

आशीष रे/लंदन

महात्मा गांधी की हत्या पर लंदन के प्रतिष्ठित नेशनल थिएटर में प्रदर्शन किए गए एक विवादास्पद नाटक ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया है और यहां तक कि ब्रिटिश प्रेस के एक हिस्से में समीक्षाओं में इसे प्रशंसा भी मिली है.

नेशनल थिएटर के एक प्रवक्ता ने संकेत दिया कि पिछले महीने से चल रहे स्टेज शो में '80 प्रतिशत दर्शक' पहुंच रहे हैं. इस नाटक में मुख्य किरदार गांधी नहीं, बल्कि उनका हत्यारा नाथूराम गोडसे है.

यह गांधी बनाम गोडसे की विचारधाराओं के चित्रण के रूप में सामने आता है. दर्शकों से गोडसे के किरदार को लेकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की उम्मीद नहीं की जाती है, बल्कि उसके बारे में कुछ टिप्पणियां अनुत्तरित छोड़ दी जाती हैं.

नाटक की लेखिका चेन्नई में जन्मीं अनुपमा चंद्रशेखर ने कार्यक्रम में एक तर्क दिया. उन्होंने कहा, "यह कहना उचित है कि इतिहास पर आधारित किसी भी नाटक के लिए नाटककार को कल्पनाशीलता लाइसेंस की एक डिग्री रखने की जरूरत होती है."

उन्होंने आगे कहा : "यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस नाटक को रचने मुख्य रूप से कल्पना का सहारा लिया गया है. बल्कि, मैंने इतिहास को उस फ्रेम के रूप में इस्तेमाल किया है, जिसके भीतर मैं भारत के संदर्भ में गांधी और गोडसे के बीच द्वंद को स्पष्ट कर सकूं."

बेशक, गांधी जैसे सार्वभौमिक व्यक्ति की तुलना में गोडसे के बारे में व्यापक रूप से ज्ञात नहीं है. लेकिन यह स्वाभाविक है। स्कूल छोड़ने के बाद एक दर्जी के सहायक के रूप में काम करने वाला शख्स, अनुपमा चंद्रशेखर के शब्दों में "कैसे हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 'कम समय के लिए कार्यकर्ता' बन गया और फिर भारत के राष्ट्रपिता के हत्यारे के रूप में कैसे सामने आया, यह जिज्ञासा किसी के मन में भी हो सकती है, उसके अकथनीय अपराध के अलावा भी."

अनुपमा ने इसे 'अहिंसा के चैंपियन और उनके विपरीत विचार रखने वालों के बीच की लड़ाई' के रूप में वर्णित किया है. क्या नफरत और हिंसा, गांधी की शांति और अहिंसा के बाराबर पायदान पर हो सकते हैं ?

उन्होंने भारत के विभाजन के समय मरने वाले बीस लाख लोगों के संदर्भ में स्वीकार किया, "यह तथ्य कि बंगाल काफी शांतिपूर्ण था, इस बात का प्रमाण है कि लोग गांधी का कितना सम्मान करते थे - और उनकी मृत्यु से भारत की कितनी बड़ी क्षति हुई थी."

फिर भी, वह मंच पर अनुत्तरित प्रश्न छोड़ देती हैं और वास्तव में गोडसे को अंतिम शब्द कहने की अनुमति देती हैं. अशिक्षित लोग सही और गलत, नायक और खलनायक के बीच थोड़ा भ्रमित होकर हॉल को छोड़ सकते थे.

वे यह भी सोच सकते थे कि गोडसे को दी गई मौत की सजा के कारण आज का कितना अतिवाद उचित है। अनुपमा चंद्रशेखर गोडसे को उसके माता-पिता द्वारा एक लड़की के रूप में पाले जाने की कहानी पर प्रकाश डालती हैं.

क्या यह माना जाए कि बचपन में पहुंची मानसिक चोट उसके भटकने का कारण थी? उसने जो किया उसका यही आधार है? यह वैज्ञानिक प्रमाण के बिना यह साबित करना एक जोखिम भरा काम है.

द गार्जियन के सिस्टर पेपर द ऑब्जर्वर ने रविवार को इसके प्रति उतना उत्साही नहीं दिखाया. उसने लिखा, "जब टैबू-बस्टिंग की बात आती है, तो अनुपमा चंद्रशेखर कहती हैं कि यह एक फस्र्ट-परसन नैरेटिव है, जिसे पूर्वाग्रह और अलंकरण के साथ लाया गया है."

फाइनेंशियल टाइम्स ने इसे 'प्राणपोषक, महाकाव्य नाटक' कहा. लेकिन डेली टेलीग्राफ ने इसे 'गांधी और उनके हत्यारे का नाटकीय रूप से मामूली अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया. न्यू यूरोपियन ने संक्षेप में कहा, "यह महसूस करना कठिन नहीं है कि अनुपमा चंद्रशेखर ने जितना चबाया है, उससे अधिक काट लिया है."

गोडसे के रूप में शुभम सराफ, गांधी के रूप में पॉल बजली और विनायक सावरकर के रूप में सागर आर्य, गोडसे की मां के रूप में आयशा धारकर और नारायण आप्टे के रूप में सिड सागर का उल्लेख नहीं करना आंख को पकड़ने जैसा होगा.

निर्देशक इंधु रुबासिंघम बहुत ही आकर्षक ढंग से स्क्रिप्ट को भागों में एक साथ लाते हैं. एक अफवाह यह थी कि भारत सरकार ने भारत में इस नाटक के मंचन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.

इसे राष्ट्रीय रंगमंच के यह कहकर खारिज कर दिया था : "यूके या विदेश में किसी अन्य स्थान पर नाटक का निर्माण करने की कोई योजना या इरादा कभी नहीं रहा." नाटक का मंचन इस सप्ताह के अंत में समाप्त होगा.