विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि चीन से संबंध नाजुक दौर में

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 20-02-2022
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि चीन से संबंध नाजुक दौर में
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि चीन से संबंध नाजुक दौर में

 

आवाज द वाॅयस /म्यूनिख
 
विश्व मंच पर भारत ने एक बार फिर चीन के खिलाफ अपनी बात रखी है. भारतीय विदेश मंत्री एसजे शंकर ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में स्पष्ट किया कि चीन के साथ भारत के संबंध इस समय बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं और यह चीन द्वारा सीमा समझौते के उल्लंघन के कारण है. 
 
एसजे शंकर ने दो टूक कहा कि सीमा की स्थिति दोनों देशों के संबंधों को निर्धारित करेगी.सुरक्षा सम्मेलन में पैनल चर्चा के दौरान एसजे शंकर ने कहा कि भारत को चीन से दिक्कत है. समस्या यह है कि 45 साल तक भारत और चीन के बीच शांति रही. 1975 के बाद से कोई सैनिक नहीं मारा गया है.
 
ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारे बीच सैन्य समझौते थे, लेकिन चीन ने उन समझौतों का उल्लंघन किया. जय शंकर ने कहा कि सीमा पर स्थिति समान होगी. दोनों के बीच संबंध समान होंगे. स्वाभाविक है. 
 
गौरतलब है कि चीन के साथ संबंध इस समय बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं.विदेश मंत्री जे. शंकर लद्दाख सीमा पर चीन के साथ हुई झड़प का जिक्र कर रहे थे. चीन ने पुरानी संधि को दरकिनार कर भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया है.
 
भारत ने भी जवाब दिया. दोनों देशों के लाखों सैनिक सीमा पर जम गए. यह तनाव 15 जून, 2020 को अपने चरम पर पहुंच गया था, जब ग्लवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी लड़ाई छिड़ गई.
 
उसके बाद से भारत-चीन संबंध पटरी पर नहीं आ रहे हैं. दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों और राजनयिक स्तर पर बातचीत चल रही है, लेकिन चीन उनके बीच हुए समझौतों का पालन नहीं कर रहा है. इस वजह से रिश्ते में कड़वाहट आ जाती है.
 
म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के दौरान, विदेश मंत्री जय शंकर ने भी भारतीय प्रांत पर एक पैनल चर्चा में भाग लिया, जिसका उद्देश्य यूक्रेन पर नाटो देशों और रूस के बीच बढ़ते तनाव पर व्यापक चर्चा करना था.
 
इंडो-पैसिफिक और ट्रांस-अटलांटिक में स्थिति बिल्कुल वैसी ही है. यह मान लेना उचित नहीं होगा कि यदि कोई देश प्रशांत महासागर में कुछ करता है, तो आप बदले में वही करेंगे. मुझे नहीं लगता कि अंतरराष्ट्रीय संबंध इस तरह से काम करते हैं. अगर ऐसा होता तो कई यूरोपीय ताकतें भारतीय प्रशांत क्षेत्र में आक्रामक रुख अख्तियार कर लेतीं, लेकिन 2009 के बाद से ऐसा नहीं हुआ है.
 
 
ध्यान रहे कि चीन लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर दावा करता रहा है, जबकि ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम असहमत हैं. यह क्षेत्र रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और दुनिया का लगभग एक तिहाई समुद्री व्यापार दक्षिणी चीन से होकर गुजरता है.