मकरानी के मार्गदर्शन में बुर्कानशीं महिलाएं करने लगीं योगा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 02-07-2021
बुर्कानशीं महिलाएं करने लगीं योगा
बुर्कानशीं महिलाएं करने लगीं योगा

 

आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली

उत्तराखंड के नैनीताल हल्दवानी जिले की 18साल की मुस्लिम लड़की मकरानी इन दिनों सुर्खियों में है. मकरानी भले ही उम्र में छोटी हैं, लेकिन पर्दानशीं महिलाओं को योग सिखाने में जुटी हुई हैं.

म्करानी बारहवीं कक्षा की छात्रा हैं. पिछले साल, जब भारत में कोरोना वायरस की पहली लहर के कारण तालाबंदी हुई, तो मकरानी का स्कूल भी बंद हो गया. उन्हें घर में रहना पड़ा, लेकिन उन्होंने लॉकडाउन को अवसर में बदलकर स्थिति का फायदा उठाया.

याद रहे कि मकरानी मुक्केबाज हैं, उन्होंने पटोरागढ़ जिले में भारतीय खेल प्राधिकरण से मुक्केबाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था.

लॉकडाउन के दौरान उन्हें अपनी फिटनेस पर ध्यान देना था. इसलिए वह रोजाना पार्क में प्रैक्टिस करने जाती थीं.

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योग करती बुर्कानशीं महिला


याद रखें कि मकरानी एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जहां महिलाएं हिजाब पहनती हैं, लेकिन मकरानी इसकी परवाह नहीं करतीं. 

कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दौरान मकरानी प्रतिदिन पार्क में व्यायाम करने जाती थीं, जहां उन्होंने देखा कि हर सुबह बुर्का पहने महिलाएं भी पार्क में आती हैं.

पार्क के अंदर वह बुर्के में महिलाओं से मिलीं, जिसके बाद उन्होंने स्टीरियोटाइप योग सिखाने का फैसला किया.

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योग का अभ्यास करती बुर्का पहने महिलाएं 


नेता मकरानी की मां आंगनबाड़ी में कार्यरत हैं. उन्होंने अपनी किशोर बेटी के विचारों को साझा किया. अपनी माँ की मदद से, उन्होंने बुर्का पहने महिलाओं को योग सिखाने का फैसला किया, ताकि उनका स्वास्थ्य बेहतर हो सके.

हालांकि यह निर्णय मकरानी के लिए चुनौतियों से भरा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दृढ़ता के साथ काम करना जारी रखा. क्षेत्र की महिलाएं योग करने के लिए राजी हुईं और मकरानी के मार्गदर्शन में कई महिलाएं योग करने लगीं.

इसके लिए मकरानी और उनकी मां ने जनसंपर्क साइट पर वाट्सएप ग्रुप बनाया और क्षेत्र की महिलाओं को ग्रुप में जोड़कर योग के बारे में सकारात्मक संदेश देने लगीं.

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बुर्का पहने महिलाएं योग कर रही हैं


हालांकि कई महिलाओं ने पहले तो उन पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन कई महिलाओं ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी.

मकरानी ने कहा, “मैंने अपने क्षेत्र में कई महिलाओं को देखा है, जो समाज के कल्याण के लिए काम करना चाहती हैं, लेकिन उन्हें अपने परिवार और मुस्लिम समुदाय से समर्थन नहीं मिलता है, इसलिए वे आगे नहीं बढ़ती हैं.”

उसने कहा कि अपने परिवार के पूर्ण समर्थन से, वह एक बॉक्सर बनने में सक्षम थी और योग सीखने के बाद, इसे दूसरों से परिचित कराना शुरू किया.

नेता ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी योग करना चाहिए ताकि वे न केवल स्वस्थ रहें बल्कि अपनी घरेलू जिम्मेदारियों को भी खुशी-खुशी निभा सकें.

नेता के मुताबिक शुरू में कुछ महिलाएं ही उनसे योग सीखने के लिए राजी हुईं, फिर यह इलाका योग सीखने वाली बुर्का पहने महिलाओं का कारवां बन गया.

अब पार्क में रोजाना तीन दर्जन से ज्यादा महिलाएं योग के लिए आती हैं. योग करने से उनमें कई बदलाव आए हैं.

वह रोजाना सुबह 5.30से 7.30बजे तक योगा सिखाती हैं. और यह अजीब संयोग है कि योग करने वाली ज्यादातर महिलाएं बुर्का पहनकर योग करती नजर आती हैं.

बुर्का पहने महिलाओं के समर्थन में मकरानी का कहना है कि बुर्का पहनना किसी भी महिला की पसंद का मामला होता है. इसलिए इस पर टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए.

जब मकरानी ने पार्क के अंदर बुर्का पहने महिलाओं को योग सिखाना शुरू किया, तो क्षेत्र के कुछ रूढ़िवादियों ने इसका विरोध किया और उनके काम को बाधित करने की कोशिश की.

इस पर मकरानी कहती हैं कि एक महिला को अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और उसे सच बोलने से कोई नहीं रोक सकता.

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योग का अभ्यास करती बुर्का पहने महिलाएं


उनकी मां शबनम का कहना है कि उनकी बेटी को बॉक्सिंग में वर्ल्ड चैंपियन बनना चाहिए और देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना चाहिए, ताकि देश और देश का नाम रोशन हो.

उन्होंने कहा, “मेरी बेटी अन्य मुस्लिम महिलाओं के लिए एक आदर्श है. मेरा मानना है कि महिलाएं किसी भी समाज की रीढ़ होती हैं, इसलिए उन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिए.”

यहां एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि मकरानी के पिता मुहम्मद कदीर एक ऑटो चालक हैं, वह हमेशा अपनी बेटी के प्रयासों और साहस का सम्मान करते हैं और उसका समर्थन करते हैं.

उनका सपना है कि उनकी बेटी नाइक अख्तर नेशनल और इंटरनेशनल चैंपियन बने. वह यह भी चाहते हैं कि नेता आईपीएस अधिकारी बने.

अब उनके क्षेत्र के अंदर और बाहर हर तरफ से मकरानी की तारीफ हो रही है. उनके काम की तारीफ हो रही है. उनके साहस और बहादुरी की हर तरफ तारीफ हो रही है.

मकरानी को अपने समुदाय से पूर्ण समर्थन मिला, जबकि रूढ़िवादियों ने उनके उत्साह को कम करने और उनके संकल्प को हिला देने की कोशिश की, लेकिन वे अडिग रहीं.

शायद इसलिए वे सफल हो रही हैं.