अपनी वाक्पटुता से लोगों को लोटपोट करने वाली ‘बुलबुल-ए-दक्कन‘ नहीं रहीं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 29-08-2021
 ‘बुलबुल-ए-दक्कन‘ नहीं रहीं
‘बुलबुल-ए-दक्कन‘ नहीं रहीं

 

आवाज द वाॅयस / हैदराबाद
 
प्रसिद्ध प्रोफेसर और उस्मानिया विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग की पूर्व अध्यक्ष  फातिमा बेगम परवीन का शुक्रवार को कोविड से संबंधित जटिलताओं के कारण निधन हो गया. वह 68 वर्ष की थीं. उन्हें ‘बुलबुल-ए-दक्कन’ भी कहा जाता था.
 
 
प्रो फातिमा बेगम परवीन का जन्म 30 दिसंबर, 1953 को हैदराबाद में हुआ था. उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय (ओयू) से स्नातक, परास्नातक और डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) किया. एमए में डिस्टिंगशन के साथ दो स्वर्ण पदक भी मिले थे.
 
अध्यापन के अपने करियर में- विभिन्न कॉलेजों में शामिल हुईं. बाद में वह ओयू में पहुंच गईं और विभाग अध्यक्ष बनी. उन्होंने ओयू में 17 साल तक सेवा की.प्रो फातिमा बेगम, जिन्हें ‘‘बुलबुल-ए-दक्कन‘‘ की उपाधि से सम्मानित किया गया था, अपने वाक्पटु भाषणों के लिए प्रसिद्ध थीं.
 
बेगम हैदराबाद में होने वाली हर अदीबी बैठक की अध्यक्षता करती थीं. वह सूचनात्मक और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर लंबे भाषण देती थी. उनका कहना था कि जब भी भाषण पूरा हो जाए तो कुछ शब्द अधूरे रह जाते हैं.
 
प्रो बेगम ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में कई लेख प्रस्तुत किए. अख्तर अंसारी की कविता, दृष्टिकोण और दक्कन साहित्य का अध्ययन उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है.उन्होंने हिंदी और तेलुगु पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद भी किया. आंध्र प्रदेश और बंगाल उर्दू अकादमी ने उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया था. वह वर्तमान हैदराबाद दक्कन की सबसे महान महिला वक्ता थीं.
 
उन्होंने अमीर खुसरो, मिर्जा गालिब, मीर, मिर्जा रफी सौदा, शेख इब्राहिम जौक, डेक्कनी कसीदा और मीर अनीस और दबीर के मर्सियाओं की कविताओं का विस्तृत मूल्यांकन भी किया. कुल मिलाकर, उन्होंने 23 पुस्तकें लिखीं.
 
उनके कुछ कामों में शामिल हैंः अख्तर अंसारी की शायरी का तन्किदी मुताला (1980), कर्बे कर्बला (1987), जवेये निगाह (2004), डेक्कनी अदब का मुतालिया (2005) और क्लासिकी शायरी का मुताला (2009). 2019 के दौरान, वह तीन और पुस्तकों के साथ आई - अशके गम (तीसरा भाग), प्रो। मोघनी तबस्सुम - एक रौशन चिराग था ना रहा और दक्कन अदब एक मुताला.