असम के मौलवी असदुल्लाह फारूक को स्केट्स पर दौड़ते देखेंगे तो रह जाएंगे दंग

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-05-2024
Maulvi Asadullah Farooq  on skates
Maulvi Asadullah Farooq on skates

 

मुन्नी बेगम / गुवाहाटी

हमारे समाज में रूढ़िवादी धारणा यह है कि हाफिज (इस्लामिक शिक्षा में डिग्री) या इमाम केवल धार्मिक कार्य करता है. हालांकि, असम के एक हाफिज ने इस धारणा को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया है. योग्यता से हाफिज असदुल्ला फारूक ने खेल मैदानों में स्केटिंग करके लोगों को चौंकाते रहते हैं. 

मध्य असम के दरांग जिले के खारुपेटिया के निवासी, फारूक अपने कौशल और चपलता से राहगीरों को मंत्रमुग्ध करते हुए गांव की सड़कों पर स्केटिंग करते हैं. किसी भी पेशेवर की तरह, फारूक़ स्केट्स पर उड़ते हुए, खड़े होकर, कूदते हुए और न जाने क्या-क्या करतब कर सकते हैं. एक पेशेवर स्केटर से एकमात्र अंतर यह है कि वह हेलमेट के बजाय खोपड़ी पर इस्लामिक टोपी और चड्डी के स्थान पर कुर्ता-पायजामा पहनते हैं और उनका ‘अनस्पोर्टिंग’ गियर उन्हें और भी अधिक आकर्षक बनाता है.

हाफिज और स्केटर असदुल्लाह फारूक़ ने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘‘मैं योग्यता से हाफिज हूं और मैंने जो शारीरिक शिक्षा सीखी है, उसके तहत मैं स्केटिंग भी करता हूं. मैंने बचपन से बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के खुद ही स्केटिंग सीखी है. लेकिन लगभग आठ साल पहले मैंने हैदराबाद में शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट्स से अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ औपचारिक स्केटिंग प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था भी.’’

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2014 में बेंगलुरु के जामिया इमाम अबू हनीफा से हाफिज पासआउट असदुल्ला फारूक ने कहा कि इस्लाम ने कभी भी शिक्षा, संस्कृति, खेल और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने पर रोक नहीं लगाई है. उन्होंने कहा, “इस्लामी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी हर कोई हर तरह का काम कर सकता है. धार्मिक शिक्षा अकादमिक है, जो आपके मन और मस्तिष्क की गंदगी को साफ करती है.”

फारूक बताते हैं, ‘‘इस्लाम ने हमें धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अन्य काम करने से कभी नहीं रोका है. इसमें कोई बंधन नहीं है कि हमारे पास केवल हाफिज या मौलाना के रूप में ही काम है. हम आजीविका के लिए कुछ भी नैतिक करने के लिए स्वतंत्र हैं. धार्मिक शिक्षा अकादमिक है और यह केवल हमें आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठाती है. हालाँकि, धार्मिक शिक्षा समाज में खुद को स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. हमारे समाज में एक गलत धारणा है कि एक हाफिज को अपने कार्यों तक ही सीमित रहना चाहिए. मैं इस धारणा को दूर करना चाहता हूं और धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ अन्य कार्यों को भी अच्छे से करना जारी रखना चाहता हूँ.’’

उन्होंने कहा, ‘‘धार्मिक शिक्षा हमें आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ सामाजिक व्यवहार भी सिखाती है. लेकिन, आजीविका के लिए अन्य काम करना और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. मेरा मानना है कि धार्मिक शिक्षा हम सभी के लिए जरूरी है, लेकिन यह बहुत जरूरी है कि हम धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ स्कूली शिक्षा भी लें. मैं बहुत गरीब परिवार से हूं. मेरे पिता एक कर्मचारी हैं और मेरी मां एक गृहिणी हैं. वह अपनी छोटी सी आय में मुश्किल से गुजारा कर पा रहे हैं. मेरा एक भाई और एक बहन है. मेरे पिता को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए मेरे भाई को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं मौलवी बनकर परिवार में थोड़े से योगदान से संतुष्ट नहीं हूं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘इस्लाम हमें दिन में पांच बार नमाज करने का आदेश देता है. यह हमारे शरीर के लिए व्यायाम के रूप में भी काम करता है. लेकिन अब हम अपनी आधुनिक जीवनशैली के कारण अकेले प्रार्थना करके खुद को स्वस्थ नहीं रख सकते हैं. इसलिए हमें नियमित रूप से योग या अन्य शारीरिक व्यायाम करना चाहिए. इसलिए, हम अपने शरीर को कई बीमारियों से बचा सकते हैं. अब बात यह है कि आजकल हम सभी अपने आप को बहुत व्यस्त रखते हैं. इसलिए हम सभी को जितना हो सके योग या व्यायाम करना चाहिए और अपनी सुविधा के अनुसार अन्य शारीरिक गतिविधियां करनी चाहिए. जेसे स्केटिंग का मतलब खुद को फिट रखना है.’’

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इस्लामिक शिक्षा में हाफिज की डिग्री हासिल करने वाले असदुल्ला फारूक ने कई जिला स्तरीय स्केटिंग टूर्नामेंट में भाग लिया और पदक जीते. वह वर्तमान में अपने परिवार को आर्थिक रूप से समर्थन देने के लिए हैदराबाद में मार्केटिंग अध्ययन कर रहे हैं. वह भविष्य में अवसर मिलने पर खेल के साथ-साथ अपने धार्मिक पहलुओं को भी आगे बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं.

फारूक ने कहा, ‘‘असम में आधिकारिक स्केटिंग प्रशिक्षण केंद्रों की कमी है. दो या तीन जिलों को छोड़कर, निचले असम में लगभग कोई स्केटिंग प्रशिक्षण केंद्र नहीं है. अगर बच्चे स्केटिंग करना चाहते हैं, तो उन्हें गुवाहाटी जाना पड़ता है. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चे समाज को अक्सर अपनी आकांक्षाओं को दफन करना पड़ता है, लेकिन, अन्य राज्यों में स्कूलों में स्केटिंग और अन्य खेलों के प्रशिक्षण की सुविधाएं हैं, जिससे बच्चों को स्कूल में ही खेल सीखने का अवसर मिलता है, मैं वर्तमान में हैदराबाद में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा हूं और आशा करता हूं अपने धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ अगर मुझे मौका मिला तो अपने खेल को भी विकसित करूंगा.’’

हालांकि, असम में रोलर स्केटिंग के अग्रणी भूमिधर बर्मन ने कहा, ‘‘मैं 2008 में असम में रोलर स्केटिंग लाया. अब यह असम के विभिन्न जिलों में लोकप्रिय हो गया है. अब रोलर स्केटिंग तिनसुकिया, डिब्रूगढ़ और अन्य जिलों में बहुत लोकप्रिय है. धुबरी, बोंगाईगांव और अन्य जिलों में रोलर स्केटिंग कोचिंग सेंटर हैं. पश्चिमी असम में भी रंगिया, मिर्जा, चायगांव आदि में कई खिलाड़ी हैं, जो सुविधाओं की कमी के कारण प्रशिक्षण के लिए गुवाहाटी आते हैं. हमारे यहां प्रशिक्षण केंद्र सरकारी स्कूलों में नहीं हैं. राज्य में रोलर स्केटिंग के लिए उचित बुनियादी ढांचे की कमी है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘स्केटिंग एक आधुनिक साहसिक खेल है. बहुत से बच्चे स्केटिंग का आनंद लेते हैं. पहले स्केटिंग की कोई सुविधा नहीं थी, बच्चे रोमांच के लिए छात्रावास के बरामदे पर स्केटिंग करते थे. लेकिन अब स्केटिंग एक खेल बन गया है और स्केटिंग सतह और एक कोच का उपलब्ध होना आवश्यक है.’’

बर्मन ने कहा, ‘‘अगर हाफिज असदुल्लाह फारूक हमसे संपर्क करते हैं, तो हम उन्हें हर तरह की सहायता प्रदान करेंगे. यदि वह बुनियादी ढाचा विकसित करते हैं, तो कई बच्चे उनके अधीन स्केटिंग सीख सकेंगे और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग ले सकेंगे. तभी खेल अपने आप विकसित होगा.’’