शारदीय नवरात्रि 2025 कब से कब तक? पढ़ें पूरी पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 21-09-2025
When will Sharadiya Navratri 2025 begin, know the auspicious time for Ghat Sthapana and the method of worshipping the goddesses.
When will Sharadiya Navratri 2025 begin, know the auspicious time for Ghat Sthapana and the method of worshipping the goddesses.

 

अनीता

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में ’’नवरात्रि’’ का विशेष महत्व है. यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, चैत्र और शारदीय नवरात्रि. शारदीय नवरात्रि को विशेष रूप से शक्तिपूजा, व्रत, उपवास और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है. नवरात्रि के नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है और भक्त शक्ति, ज्ञान, भक्ति और समृद्धि की कामना करते हैं.

शारदीय नवरात्रि 2025 कब से शुरू होंगे?

सनातन वैदिक हिंदू पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि सोमवार, 22 सितंबर 2025 से प्रारंभ होकर गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 तक चलेंगे. इन नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होगी और दसवें दिन विजयादशमी (दशहरा) मनाया जाएगा.

नवरात्रि पूजा विधि 2025 Easy Navratri Puja Vidhi 2025 Shardiye navratri  puja vidhi | Navratri puja,

घट स्थापना (कलश स्थापना) का शुभ मुहूर्त

नवरात्रि का शुभारंभ ’’घट स्थापना’’ से होता है, जिसे शक्ति की आराधना का प्रथम चरण माना गया है.

तिथि: 22 सितंबर 2025 (प्रतिपदा तिथि)

पहला शुभ मुहूर्त: प्रातः 6.09 बजे से 8.06 बजे तक

दूसरा मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11.49 बजे से दोपहर 12.38 बजे तक है.

इन दोनों में से किसी भी मुहूर्त घटस्थापना कर सकते हैं. प्रतिपदा तिथि के दौरान सूर्योदय के बाद घट स्थापना करना सबसे उत्तम माना जाता है.

घट स्थापना विधि

- पूजा स्थान को स्वच्छ करें और लाल या पीले कपड़े का आसन बिछाएं.
- मिट्टी से वेदी तैयार करके उस पर जौ या गेहूं बोएं.
- एक कलश में जल, सुपारी, अक्षत, सिक्के आदि डालकर उस पर नारियल रखें और आम्रपल्लव लगाएं.
- कलश पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर देवी की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करें.
- दीप प्रज्वलित करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें.

 

Nine Forms Of Goddess Durga


नौ देवियां और उनकी पूजा विधि

नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है. प्रत्येक दिन एक देवी का विशेष महत्व होता है.

प्रथम दिन: माँ शैलपुत्री’

- पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती का यह रूप शैलपुत्री कहलाता है. उनके हाथों में त्रिशूल और कमल रहता है, और वाहन वृषभ (बैल) है. उन्हें सफेद फूल अर्पित करें और घी का दीपक जलाएं. उनकी आराधना से आरोग्य और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है.

द्वितीय दिन: माँ ब्रह्मचारिणी

माता का यह रूप तपस्विनी का है. माता ने कठिन तप कर भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त किया. दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल है. उन्हें शुद्ध घी और शक्कर का भोग लगाएं. उनकी पूजा से तप, संयम और ज्ञान की प्राप्ति होती है.

तृतीय दिन: माँ चंद्रघंटा

विवाह के पश्चात मैया पार्वती ने अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया, जिससे वे चंद्रघंटा कहलाईं. उनके दस हाथ हैं और सिंह पर विराजमान रहती हैं. उन्हें दूध, खीर या मिठाई का भोग अर्पित करें. उनके जप से भय और रोगों का नाश होता है.

चतुर्थ दिन: माँ कूष्मांडा

देवी के इस रूप ने ब्रह्मांड की रचना की. कूष्मांड शब्द का अर्थ है - कुम्हड़े का दान, अतः इनका प्रिय भोग कुम्हड़ा है. उनकी आठ भुजाएं और सिंह वाहन है. उन्हें मालपुए और कुम्हड़े का भोग अर्पित करें. उनकी पूजा से आयु, स्वास्थ्य और बल मिलता है.

पंचम दिन: माँ स्कंदमाता

देवी को भगवान कार्तिकेय पुत्र के रूप में प्राप्त हुए. इसलिए वे स्कंद माता कहलाईं. वे गोद में स्कंद को लिए हुए, सिंह पर विराजमान रहती हैं. उन्हें केले का भोग अर्पित करें. उनके चिंतन-मनन से संतान सुख और परिवारिक उन्नति होती है.

षष्ठम दिन: माँ कात्यायनी

ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रकट होने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाता है.वे सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली हैं. उन्हें शहद का भोग चढ़ाएं. विवाह की बाधा दूर होती है.

सप्तम दिन: माँ कालरात्रि

माता का यह रूप अत्यंत उग्र और भयानक है, लेकिन भक्तों के लिए शुभकारी है. वे काले वर्ण, चार भुजाओं वाली और गधे पर सवार हैं. उन्हें गुड़ और जौ का भोग लगाएं. उनकी पूजा से विनाश और अकाल मृत्यु से रक्षा होती है.

अष्टम दिन: माँ महागौरी

गौर वर्ण वाली यह देवी शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या करने के बाद प्रकट हुईं. इसलिए महागौरी के नाम से जाना गया. वे बैल पर सवार और चार भुजाओं वाली हैं. उन्हें नारियल और हलवे का भोग लगाएं. उनकी पूजा से दरिद्रता और पाप नष्ट होते हैं.

नवम दिन: माँ सिद्धिदात्री

यह देवी सिद्धियों और शक्तियों की दात्री हैं. वे कमल पर विराजमान है. और चार भुजाधारी हैं. उन्हें तिल और मिठाइयों का भोग लगाएं. उनकी पूजा से सभी प्रकार की सिद्धियां और दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है.

मंत्रों का जप

देवी की आराधना के लिए इन मंत्रों का जप कर सकते हैं-

- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै
-सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते..
- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी. दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते..

9 days, 9 places: Temples dedicated to different Durga avatars | Times of  India Travel

सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

नवरात्रि नारी शक्ति की आराधना का पर्व है. नौ दिनों तक उपवास करके लोग आत्मिक शुद्धि और संयम का अभ्यास करते हैं. गरबा और डांडिया जैसे नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस पर्व का विशेष हिस्सा हैं, खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में. नवरात्रि समाज को एक सूत्र में पिरोने वाला पर्व है, जिसमें हर वर्ग और क्षेत्र के लोग शामिल होते हैं. देवी के मंदिरों, मेले, और सजावट से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है.

शारदीय नवरात्रि 2025 का आगमन भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का महापर्व लेकर आ रहा है. 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलने वाले इस महोत्सव में भक्तजन नौ देवियों की आराधना करेंगे. घट स्थापना के शुभ मुहूर्त पर कलश स्थापित कर नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और शक्ति का संचार होता है.