नवाबों के शहर लखनऊ की सभ्यता, संस्कृति, सुंदरता, नफासत और खान-पान का क्या है सबब, जानिए किस देश से आए थे नवाब

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 07-07-2023
नवाबों के शहर लखनऊ की सभ्यता, संस्कृति, सुंदरता, नफासत और खान-पान का क्या है सबब, जानिए किस देश से आए थे नवाब
नवाबों के शहर लखनऊ की सभ्यता, संस्कृति, सुंदरता, नफासत और खान-पान का क्या है सबब, जानिए किस देश से आए थे नवाब

 

एम मिश्रा / लखनऊ

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की संस्कृति, व्यंजन, परंपरा और चिकनकारी कपड़े नवाबों द्वारा लाए गए थे. नवाबों ने यह सब ईरान से लाया था. ये नवाब ही थे जिन्होंने लखनऊ में ईरानी संस्कृति को इस हद तक पोषित किया कि उनके जाने के इतने साल बाद भी लखनऊ को नवाबों का शहर कहा जाता है. आज भी लखनऊ ईरान की परंपरा का अनुसरण कर रहा है.

देश के जाने-माने इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि अवध में पहले नवाब 1722 में आए. उसका नाम मीर मुहम्मद अमीन था. उन्होंने अवध और लखनऊ में नवाब राजवंश की स्थापना की. उससे पहले नवाबों ने ही लखनऊ पर ईरानी परंपरा और संस्कृति तथा उसका रंग थोपा था.
 
उनके समय में ईरान से बड़ी संख्या में लोग नौकरी के लिए लखनऊ आते थे. वहां से आए ईरानी लोग भी ईरान की संस्कृति को सर्वोत्तम मानते हैं. इसीलिए उन्होंने यहां भी ईरान की संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने का काम किया. उन्होंने कहा कि अवध के आखिरी नवाब नवाब वाजिद अली शाह संस्कृति प्रेमी थे. उन्होंने ईरान की संस्कृति को भी बढ़ावा दिया.
 
तंदूर और पुलाऊ भी ईरानी हैं

डॉ. भट्ट ने कहा कि आज जो तंदूर और पुलाऊ लखनऊ में मौजूद हैं, वे ईरान से यहां लाए गए थे. नवाबों को बिरयानी पसंद नहीं थी. उसमें मसाले ज्यादा होते हैं. इसीलिए यहां पलाऊ की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी लोगों के घरों में बनाई जाती है.
 
उन्होंने कहा कि अवधी खाना लखनऊ समेत पूरे अवध में खाया जाता है. इसका निर्माण ईरानी शैली और मुगल शैली से ही किया गया है. इसमें स्थानीय व्यंजन मिलाए जाते हैं जिससे इसका स्वाद बढ़ जाता है.
 
ईरान की पहले आप की परंपरा

डॉ. रवि भट्ट ने कहा कि लखनऊ की खासियत यह है कि यह अपनी संस्कृति, सुंदरता और नफासत के साथ ईरान की परंपरा और संस्कृति भी है. आज लखनऊ की पहचान दुनिया भर में नवाबों के शहर और उसकी तहजीब के तौर पर होती है. ईरान में भी लोग खुद से ज्यादा दूसरों को महत्व देते हैं.
 
नूरजहां चिकन करी यहां लाए

डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि लखनऊ चिकनकारी की शुरुआत मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां ने की थी, जो ईरान से यह कला सीखकर भारत आई थीं. उस समय चिकनकारी पूरे कपड़ों पर नहीं बल्कि टोपी, दुपट्टे या छोटे कपड़ों पर ही की जाती थी. आज नूरजहां की ईरानी कला पूरी दुनिया में लखनवी कला के नाम से मशहूर है.