जावेद अख्तर/कोलकाता
कोलकाता की संकरी गलियों में बसे ग्रांट लेन में एक अनोखी परंपरा को हर साल जीवित रखा जाता है. यहां के निवासी और खासतौर पर एक व्यक्ति इस परंपरा को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. ये हैं रिजवान अहमद सिद्दीकी, जिन्हें लोग प्यार से "मामा" के नाम से जानते हैं.
मामा एक मुस्लिम हैं, लेकिन काली पूजा का आयोजन करने वाले एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में उनकी पहचान कोलकाता के हर वर्ग में खास जगह बनाए हुए है. 60 वर्ष की उम्र के करीब पहुंचे मामा का जीवन न केवल भाईचारे का प्रतीक है, हिंदू-मुस्लिम एकता की एक मिसाल भी है.
काली पूजा का आयोजन और 25 वर्षों की सेवा
रिजवान अहमद सिद्दीकी साल 1999 से काली पूजा का आयोजन करते आ रहे हैं, जो अब अपनी पच्चीसवीं वर्षगांठ मना रहा है. हर साल वे इस पूजा को उतनी ही श्रद्धा और धूमधाम से करते हैं, जैसे यह किसी की निजी आस्था का हिस्सा हो.
पूजा का आयोजन पुलिस मुख्यालय लाल बाजार के पास ग्रांट लेन में किया जाता है. यह पूजा उनके और उनके सहयोगियों के लिए केवल धार्मिक गतिविधि नहीं है, बल्कि समाज सेवा और भाईचारे का एक जरिया है. पूजा के दौरान न केवल इलाके के हिंदू बल्कि मुसलमान भी बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं.
उनकी यह पहल एक ऐसा अद्भुत दृश्य पेश करती है, जिसमें विभिन्न समुदाय एक ही जगह पर मिलकर भगवान की आराधना और मानवीयता के सिद्धांतों को जीते हैं.
पूजा से शुरू हुई सेवा की राह
रिजवान की काली पूजा का आयोजन तब शुरू हुआ था जब एक बार इलाके के बच्चों के बीच झगड़ा हुआ. चाटा स्ट्रीट और ग्रांट लेन के बच्चों के बीच विवाद के कारण बच्चे पूजा का आयोजन नहीं कर पाए. तब मामा ने हस्तक्षेप किया.
उन्होंने बच्चों का हौसला बढ़ाया. पूजा का आयोजन खुद शुरू कर दिया. इसके बाद से हर साल इस पूजा का आयोजन निरंतर होता आ रहा है. पूजा की शुरुआत से लेकर विसर्जन तक का सारा इंतजाम मामा और उनके साथी मिलकर करते हैं.वे कहते हैं, "इस पूजा से लोगों को जो खुशी मिलती है, वही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है. हम लोग यहां गरीबों के बीच कपड़े बांटते हैं, लड़कियों की शादी में मदद करते हैं और सर्दियों में कंबल बांटते हैं."
शबनम गोल्डन वेलफेयर सोसायटी: मानवता की सेवा का एक प्लेटफॉर्म
रिजवान अहमद सिद्दीकी का एक संगठन भी है, जिसका नाम है "शबनम गोल्डन वेलफेयर सोसायटी". इस संस्था के माध्यम से वे विभिन्न समाजसेवी गतिविधियों को अंजाम देते हैं. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देना और गरीबों की सहायता करना है.
इसका मुख्यालय उनके केबल बिजनेस के कार्यालय में ही स्थित है, जहां वे निःशुल्क चिकित्सा शिविर भी चलाते हैं. इसमें प्रतिदिन लोग अपना इलाज करवाते हैं . मुफ्त दवाइयां प्राप्त करते हैं. इस शिविर की देखरेख डॉ. पांडे करते हैं. मामा का कहना है कि यह सेवा लोगों के बीच एकता और विश्वास बढ़ाने का काम करती है.
केबल बिजनेस: आजीविका का जरिया, समाज सेवा का आधार
मामा का व्यवसाय केबल नेटवर्क का है, जो उनके परिवार और समाज सेवा की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करता है. वे कहते हैं, "केबल के किराये से घर चलता है. समाज सेवा में भी कुछ हद तक मदद मिल जाती है." हालांकि, मामा का उद्देश्य सिर्फ पैसे कमाना नहीं है.
वे अपने इस व्यवसाय से जो भी अतिरिक्त पैसा कमाते हैं, उसे लोगों की सेवा में लगा देते हैं. काली पूजा के दौरान दान देने की कोई बाध्यता नहीं होती. यदि कोई इच्छा से योगदान करना चाहता है तो उनका स्वागत होता है. बाकी सभी खर्च वे खुद और उनके साथी उठाते हैं.
सामाजिक और राजनीतिक नेटवर्क: एकता का माध्यम
रिजवान अहमद सिद्दीकी का मानना है कि सामाजिक कार्य करने के लिए राजनैतिक लोगों से जुड़े रहना भी जरूरी है. वे कहते हैं, "राजनीतिक लोगों से जुड़े रहकर हम समाजसेवा के काम को आसानी से कर सकते हैं."
उनके कार्यालय में हमेशा लोगों की भीड़ लगी रहती है, जो अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मामा की मदद मांगते हैं. मामा का उद्देश्य समाज के हर वर्ग की समस्याओं को सुनना और उनका समाधान करना है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो.
भाईचारा और एकता की मिसाल
रिजवान की काली पूजा का आयोजन स्थानीय हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच भाईचारे और एकता का प्रतीक बन चुका है. हर साल लोग पूछते हैं कि क्या इस बार भी काली पूजा का आयोजन होगा. यह उनके प्रति लोगों के स्नेह और विश्वास को दर्शाता है.
मामा का कहना है, "हम सालों से साथ रहते आ रहे हैं . सभी त्योहारों को एक साथ मनाते हैं. जब ईद आती है, तो हमारे हिंदू दोस्त हमारे घर आते हैं. काली पूजा व दिवाली में हम एक साथ होते हैं."
सामाजिक उत्थान और सहयोग का संदेश
मामा की सोच सिर्फ पूजा तक ही सीमित नहीं है. वे हमेशा से ही समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए काम करते रहे हैं. वे गरीबों की मदद के लिए व्हीलचेयर की व्यवस्था करते हैं. जरूरतमंद लड़कियों की शादी कराते हैं. सर्दियों में कंबल वितरण करते हैं.
अपनी संस्था की सचिव सबिता सिंह के साथ मामा जी
उनके इस कार्य को कई लोग आलोचना की दृष्टि से भी देखते हैं, लेकिन मामा कहते हैं कि उनकी परवाह नहीं है कि लोग क्या कहते हैं. उनका उद्देश्य केवल मानवता की सेवा करना और हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखना है.
रिजवान अहमद सिद्दीकी यानी मामा आज के समय में धार्मिक भेदभाव को दरकिनार कर एक नयी राह पर चल रहे हैं. वे न केवल हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन चुके हैं, बल्कि समाज सेवा के कार्यों के माध्यम से समाज में भाईचारे और मानवता का संदेश भी फैला रहे हैं.