मुग़ल दरबार में कई दिनों तक मनाया जाता था होली का जश्न

Story by  ज़ाहिद ख़ान | Published by  onikamaheshwari | Date 23-03-2024
Holi was celebrated for many days in the Mughal court
Holi was celebrated for many days in the Mughal court

 

ज़ाहिद ख़ान

हमारे देश में वैसे तो सभी त्यौहार, एक-दूसरे धर्म के लोग आपस में मिल-जुलकर मनाते हैं. एक-दूसरे के त्यौहार में उत्साह और उमंग से शामिल होते हैं. लेकिन देश में मनाए जाने वाले तमाम त्यौहारों में होली एक ऐसा त्यौहार है, जो अपनी धार्मिक मान्यताओं से इतर विभिन्न धर्मों के लोगों को आपस में जोड़ने का महत्वपूर्ण काम करता है. मुस्लिम, जैन और सिख जैसे अल्पसंख्यक समुदाय भी बिना किसी धार्मिक भेदभाव के अपने हिंदू भाईयों के साथ होली को जोश-ओ-ख़रोश से मनाते हैं.

आम हो या ख़ास होली पर्व हमेशा से ही सभी का पसंदीदा त्यौहार रहा है. मुग़ल सल्तनत काल में भी विभिन्न हिंदू एवं मुस्लिम त्यौहार ज़बर्दस्त उत्साह और बिना किसी भेदभाव के मनाए जाते थे. होली पर्व को मुग़ल शासकों ने राजकीय मान्यता दी थी. मुग़ल दरबार में कई दिनों तक होली का जश्न मनाया जाता था. अमीर उमराव भी राज्य के सामान्य जन के साथ होली में शामिल होते थे. मुग़ल शहंशाह न सिर्फ़ ख़ुद उत्साह से होली खेलते, बल्कि अपनी हिंदू रानियों को भी होली खेलने से नहीं रोकते थे.

धर्म को लेकर बेहद कट्टरपंथी माने जाने वाले मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की हुकूमत में होली का त्यौहार रंग और उमंग से मनाया जाता था. इस उत्सव में मुस्लिम कुलीन जन अपने हिंदू भाईयों के साथ खुले दिल से शामिल होते थे. औरंगज़ेब के जीवनी लेखक भीमसेन ने अपनी किताब में उल्लेख किया है, ‘औरंगज़ेब की हुकूमत के दौरान होली के पर्व पर ख़ान जहान बहादुर कोटलाशाह राजा सुब्बान सिंह, राय सिंह राठौर, राय अनूप सिंह और मोकहम सिंह चंद्रावत के घर जाकर रंग पर्व का आनंद उठाते थे.

जिसमें भी ख़ान बहादुर के बेटे मीर अहसान और मीर मुहसिन होली खेलते समय राजपूतों की बनिस्बत ज़्यादा जोश से भरे रहते थे.’ औरंगज़ेब के परिवार के मेंबर उनकी नाराज़गी के बावजूद होली समारोहों में जोश-ओ—ख़रोश से शामिल होते थे. मिर्ज़ा क़तील की किताब ‘हफ़्त तमाशा’ जो कि अठारहवीं सदी के आस-पास लिखी गई है. इसमें मिर्ज़ा क़तील ने होली पर्व पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. अपनी इस टिप्पणी में वे कहते हैं, ‘अफ़गानों और कुछ विद्वेष रखने वाले लोगों के अलावा सब मुसलमान होली खेलते थे. कोई छोटा-सा-छोटा व्यक्ति भी बड़े-से-बड़े संभ्रान्त आदमी पर रंग डालता था, तो वह उसका बुरा नहीं मानता था.’

मुग़ल बादशाहों में ही नहीं, बल्कि बंगाल में भी मुस्लिम नवाब मुर्शीद कुली ख़ान, अली वरदी, सिराजुद्दौला, और मीर जाफ़र होली का त्यौहार धूमधाम से मनाया करते थे. इतिहास की किताबों में यह साफ़-साफ़ ब्यौरा मिलता है कि अली वरदी के भतीजों शहमत जंग और सबलत जंग ने भी एक बार मोती झील के बगीचे में लगातार सात दिन तक होली मनाई. जहां रंगों का त्यौहार मनाने के लिए रंगीन पानी और अबीर का ढेर तथा केसर तैयार कर रखा गया था.

होली की बात हो और अवध का ज़िक्र ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. अवध के नवाब हमेशा विभिन्न उत्सवों में अपनी रियाया के साथ त्यौहारों में शामिल होते थे. उनके दरबार में कई दिन पहले से ही होली की महफ़िलें सजने लगतीं, जिसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते. यह तो बरतानवी इतिहासकार और हिंदू-मुस्लिम समुदाय में शामिल कट्टरपंथी थे, जिन्होंने यह सब कभी पसंद नहीं किया.

उन्होंने इतिहास का विकृतिकरण किया और समरसता के इस माहौल को मटियामेट कर दिया. वरना, धार्मिक समरसता का यह माहौल आगे चलकर हिंदू-मुस्लिम को आपस में एक-दूसरे से और भी अच्छी तरह से जोड़ता. सही बात तो यह है कि हिंदू और मुस्लिम के बीच एक-दूसरे के प्रति मन में जो भ्रांतियां और शक़ की दीवारें खड़ी की गईं, उसके पीछे धार्मिक असहिष्णुता नहीं, बल्कि सियासी मायने ज़्यादा हैं. जिसको मौजूदा पीढ़ी को जानने की बेहद ज़रूरत है.

होली पर्व के ज़ानिब मुस्लिम शासकों का ही अकेले उदार नज़रिया नहीं था, उर्दू अदीब भी इस त्यौहार से काफ़ी प्रभावित थे. यही वजह है कि उर्दू अदब में दीगर त्यौहारों की बनिस्बत होली पर ख़ूब लिखा गया है. होली, शायरों का पसंदीदा त्यौहार रहा है. उर्दू शायरों की ऐसी कई मस्नवियां मिल जाएंगी, जिनमें होली के तमाम रंग और त्यौहार का उल्लास बेहतरीन तरीक़े से सामने आया है.

मीर, कुली कुतबशाह, फ़ाएज़ देहलवी, नज़ीर अकबरावादी, महज़ूर और आतिश जैसे अनेक बड़े शायरों ने होली पर कई शाहकार रचनाएं लिखी हैं. उत्तर भारत के शायरों में अमूमन सभी ने होली के रंग की फुहारों को अपने शे'र—ओ—शायरी में बांधा है. अठारहवीं सदी की शुरुआत में दिल्ली में हुए शायर फ़ाएज़ देहलवी ने अपनी नज़्म ‘तारीफ़—ए-होली’ में दिल्ली की होली का मंज़र बयां करते हुए लिखा है...

ले अबीर और अरग़ज़ा भर कर रूमाल
छिड़कते हैं और उड़ाते हैं गुलाल

ज्यूं झड़ी हर सू है पिचकारी की धार
दौड़ती हैं नारियां बिजली की सार