दयाराम वशिष्ठ
कालीन के शहर भदोही ने दुनिया में अलग पहचान बनाई है.भदोही की हस्तनिर्मित कालीन की मांग पूरे विश्व में है. खास तौर से मखमली और कलात्मक हस्तनिर्मित कालीन का भदोही(मिर्जापुर)में उत्पादन होता है.
गंगा तट पर बसा भदोही हस्तनिर्मित मशहूर पर्शियन कारपेट के लिए अलग पहचान रखता है.मुगलों के समय भदोही में कालीन का निर्माण शुरू किया गया था.आज दुनिया भर में यहां के कालीन की मांग है.
दिल्ली में बनाए गए नए संसद भवन में भदोई के लगाए गए कालीन से इसकी खूबसूरती को और भी चार चांद लगे.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संसद भवन की खूबसूरती को देख भदोही के कालीन को सराहा था.इसके बाद से भदोई का यह कालीन बाजार और भी उछाल पर आ गया.
हालांकि रूस यूक्रेन युद्ध व इजरायल व हमास के बीच शुरू हुई लड़ाई के कारण कालीन कारोबारियों पर असर पडा है.भदोही के कालीन युवा कारोबारी मोहम्मद ताजिम ने आवाज दॉ वायस से बातचीत में बताया, “मुगलों के समय से यहां कालीन का निर्माण शुरू किया गया था.इसके बाद राजा महाराजा भी इसी कालीन के दिवाने थे.बाद में अंग्रेजों को भी यहां का कालीन खूब मन भाया.”
ताजिम ने बताया कि उनका कालीन का खानदानी काम है.पहले उनके पूर्वज मुगलों के समय से ही कालीन का काम करते थे.इसके बाद उनकी अगली पीढी इस कारोबार को देश दुनिया में बढ़ा रही है.पिछले सात वर्षों से वे सूरजकुंड मेले मे स्टॉल लगाते रहे हैं.कालीन की बढ़ती मांग के चलते उनके भाई शाहनवाज भी अलग से कारोबार को आगे बढा रहे हैं.
ईरान से कारपेट का हुआ जन्म
युवा कारोबारी मोहम्मद ताजिम ने बताया कि कॉरपेट का जन्म मुगलों के समय में ईरान से हुआ है.इसके बाद यह कारोबार यूपी के जिला भदोही मिर्जापुर में पहुंच गया.इस कारोबार के जरिए लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है.
उन्होंने भी बचपन से कॉरपेट की बुनाई, धुलाई, फिनसिंग व बिकते देखा.बीए कक्षा पास करने के साथ ही वह भी इसी कारोबार में हाथ बंटाने लगा.उन्होंने ईरान की कालीन दिखाते हुए कहा कि बाजार में इसकी मांग बहुत अधिक है.
युद्ध से कारोबार पर पड रहा है विपरीत असर
कारोबारी मोहम्मद ताजिम ने बताया कि विश्व पटल पर मची अफरातफरी व युद्ध उन्माद के बीच कालीन कारोबार पर विपरीत असर पड़ता है.इसे लेकर निर्यातकों की चिंता बढ़ी है.रुस व यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष का कालीन व्यवसाय पर काफी असर देखा जा रहा था क्योंकि रूस व यूक्रेन दोनों भारतीय कालीनों के अच्छे खासे आयातक देशों में गिने जाते हैं.
युद्ध के चलते दोनों देशों को होने वाले निर्यात पर काफी असर पड़ा है.उन्होंने बताया कि इजरायल व हमास के बीच शुरू हुई लड़ाई के कारण भी कालीन कारोबारियों की चिंताएं बढी हैं.ईरान से कॉरपेट दुबई के रास्ते होकर मुंबई पहुंचता है और तुर्की से कोलकाता के रास्ते यहां पहुंचता है.
युद्ध के चलते शिप समय से नहीं पहुंच पा रहे हैं.इसके चलते कारोबारी ऑर्डर देने में संकोच कर रहे हैं.
ऐसे बनाई जाती है विश्वविख्यात कालीन
कालीन का निर्माण करने में चार चरण होते हैं, तब जाकर सुंदर कालीन बन पाती है. सबसे पहले सुंदर और आकर्षक डिजाइन तैयार की जाती है. डिजाइन को कागज की चादर पर तैयार किया जाता है, जिसे बुनकर कालीन पर उकेरते हैं.
दूसरे चरण में उनकी रंगाई का काम होता है. व्यावसायिक रूप में यह काम कुशल शिल्पकार के द्वारा किया जाता है. रंगाई के बाद से 40डिग्री तापमान में सुखाया जाता है. इसके बाद शुरू होती है बुनाई की प्रक्रिया.
तैयार कालीन की धुलाई होती है. जिसके कारण कपास और ऊन की सफाई होती है.भदोही में बुनकर गुच्छेदार, तिब्बती कालीन, पर्शियन कालीन और दरी के निर्माण का काम होता है.कालीन का उत्पादन क्षेत्र में सबसे ज्यादा महिलाएं लगी हुई हैं.
35 सौ रूपये से लेकर ढाई लाख रुपये तक का है कॉरपेट
युवा कॉरपेट कारोबारी ने बताया कि उनके यहां 35सौ रुपये से लेकर ढाई लाख रुपये तक का कॉरपेट है.जिसमें अलग_अलग गुणवत्ता के कालीन लोगों के मन भा रहे हैं.